Tuesday, 25 August 2015

अनहद नाद (osho)

अनहद नाद कृपया समझाएं कि अनाहत नाद एक प्रकार की ध्वनि है या कि वह समग्रत: निर्ध्‍वनि है। और यह भी बताने की कृपा करें कि समग्र ध्वनि और समय निध्र्वर्नि की अवस्थाएं समान कैसे हो सकती हैं?
अनाहत नाद कोई ध्वनि नहीं है। यह निर्ध्वनि है, यह मौन है। लेकिन यह मौन सुना जा सकता है। इसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है, क्योंकि तब यह तर्कसम्मत प्रश्न उठता है कि निर्ध्वनि कैसे सुनी जा सकती है!
यह बात समझने जैसी है। मैं इस कुर्सी पर बैठा हूं। अगर मैं कुर्सी छोड़कर चला जाऊं तो क्या तुम कुर्सी में मेरी अनुपस्थिति नहीं देखो? जिसने मुझे इस कुर्सी में बैठा नहीं देखा है उसे मेरी अनुपस्‍थिति नहीं दिखाई पड़ सकती है। उसे सिर्फ कुर्सी दिखाई पड़ेगी। लेकिन एक क्षण पहले मैं यहां बैठा था और तुमने यह देखा है। अगर मैं हट जाऊं और तुम कुर्सी को देखो तो तुम्हें एक साथ दो चीजें दिखाई देंगी : कुर्सी और मेरी अनुपस्थिति। लेकिन मेरी अनुपस्थिति तभी दिखाई देगी जब तुमने मुझे देखा है और तुम्हें स्मरण है कि मैं यहां था।
वैसे ही हम ध्वनि को सुनते हैं, ध्वनि को जानते हैं; और जब निर्ध्वनि आती है, अनाहत नाद आता है तो हमें अनुभव होता है कि ध्वनि खो गई और उसकी अनुपस्थिति अनुभव होती है। इसीलिए इसे अनाहत नाद कहते हैं। इसे नाद भी कहते हैं, लेकिन अनाहत नाद होना नाद की गुणवत्ता को बदल देता है। अनाहत का अर्थ है. जो अनिर्मित है। वह अनिर्मित, असृष्ट ध्वनि है। प्रत्येक ध्वनि पैदा की गई ध्वनि है। जो भी ध्वनि तुम सुनते हो सब पैदा की हुई है। और जो ध्वनि पैदा की गई है वह नष्ट होगी। मैं हाथ की ताली बजाता हूं तो ध्वनि पैदा होती है। एक क्षण पहले वह नहीं थी और अब फिर वह नहीं है। वह पैदा हुई और मर गई। निर्मित की गई ध्वनि को आहत नाद कहते हैं, अनिर्मित ध्वनि को अनाहत नाद कहते हैं। अनाहत नाद वह है जो सदा है। सदा रहने वाला नाद कौन सा है? दरअसल यह नाद नहीं है, हम उसे नाद इसलिए कहते हैं क्योंकि अनुपस्थिति सुनी जाती है।
अगर तुम रेलवे स्टेशन के पास रहते हो और किसी दिन मजदूर संघ हड़ताल कर दे तो तुम्हें कुछ ऐसा सुनाई देगा जो किसी दूसरे को नहीं सुनाई देगा। तुम्हें आती—जाती रेलगाड़ियों की अनुपस्थिति सुनाई देगी।
पहले मैं हर महीने कम से कम तीन हफ्ते यात्रा पर रहा करता था। शुरू—शुरू में रेलगाड़ी में सोना कठिन होता था, पर पीछे चलकर घर पर सोना कठिन हो गया। फिर जब—जब मुझे गाड़ी में नहीं सोना पड़े, गाड़ी की आवाज की अनुपस्थिति महसूस होती थी। जब मैं घर आता था तो वहां सोना कठिन लगता था, क्योंकि मुझे लगे कि कुछ चूक रहा हूं। मुझे रेल की आवाज की अनुपस्थिति अनुभव होने लगी।
हम ध्वनियों के आदी हैं। प्रत्येक क्षण ध्वनि से भरा है। हमारी खोपड़ी निरंतर ध्वनि से लबालब है। लेकिन जब तुम्हारा मन विदा हो जाता है—अतिक्रमण कर जाता है या नीचे उतर जाता है—जब तुम ध्वनियों के संसार में नहीं होते हो, तब तुम ध्वनियों की अनुपस्थिति को सुन सकते हो। वह अनुपस्थिति निर्ध्वनि है। लेकिन हमने इसे अनाहत नाद कहा है। क्योंकि यह सुना जाता है, इसलिए इसे नाद कहते हैं। और क्योंकि यह ध्वनि नहीं है, इसलिए इसे अनाहत नाद कहते हैं। अनाहत नाद विरोधाभासी शब्द है। ध्वनि तो आहत ही होती है, अनाहत कहना विरोधाभासी है।
पर जीवन के सभी गहन अनुभव विरोधाभासों में व्यक्त किए जाते हैं। अगर तुम इकहार्ट या जेकब बोहमे जैसे गुरुओं से पूछो, या हयाकुजो, उबाकू और बोधिधर्म जैसे झेन गुरुओं से पूछो, या नागार्जुन से पूछो, या वेदांत और उपनिषदों से पूछो, तो सभी जगह गहन अनुभवों की अभिव्यक्ति परस्पर विरोधी शब्दों में मिलेगी।
वेद ईश्वर के संबंध में कहते हैं कि वह है और वह नहीं है। अब इससे अधिक नास्तिक वक्तव्य और क्या होगा? वह है और नहीं है! वे कहते हैं : वह दूर से दूर है और
निकट से निकट। ऐसे विरोधी वक्तव्य क्यों? उपनिषद कहते हैं. तुम उसे नहीं देख सकते, लेकिन जब तक तुमने उसे नहीं देखा तब तक कुछ भी नहीं देखा। यह किस तरह की भाषा है?

लाओत्‍सु कहता है कि सत्‍य नहीं कहा जा सकता है और वह कह भी रहा है। यह भी तो कहना ही हुआ। वह कहता है कि सत्य नहीं कहा जा सकता और जो कहा जाए वह सत्य नहीं है। और फिर वह एक किताब लिखता है, जिसमें सत्य के संबंध में कुछ कहता है। यह विरोधाभासी है।
एक महान वृद्ध संत के पास एक दिन एक विद्यार्थी आया। विद्यार्थी ने कहा गुरुदेव अगर आप मुझे क्षमा कर दें तो मैं अपने संबंध में आपको कुछ बताना चाहता हूं। मैं नास्तिक हो गया हूं अब मैं ईश्वर में विश्वास नहीं करता। के संत ने पूछा : कितने दिनों से तुम धर्मशास्त्रों का अध्ययन कर रहे हो? कितने दिनों से? उस साधक ने, उस विद्यार्थी ने कहा. कोई बीस वर्षों से मैं वेदों का, शास्त्रों का अध्ययन कर रहा हूं। के संत ने आह भरकर कहा : सिर्फ बीस वर्ष और तुम्हें यह कहने की हिम्मत आ गई कि मैं नास्तिक हूं?
युवक तो हैरान रह गया। उसने सोचा, यह बूढ़ा आदमी क्या कह रहा है? उसने पूछा मैं समझा नहीं कि आप क्या कह रहे हैं। आपने तो मुझे और भी उलझन में डाल दिया। इस पर संत ने कहा वेदों का अध्ययन जारी रखो। आरंभ में आदमी कहता है कि ईश्वर है, केवल अंत में वह कहता है कि ईश्वर नहीं है। ईश्वर आरंभ में है, अंत में ईश्वर नहीं है। जल्दी मत करो। वह युवक तो और भी बिगचन में पड़ गया।
ईश्वर है और ईश्वर नहीं है—यह वक्तव्य उनका है जो जानते हैं। जो नहीं जानते हैं वे कहते हैं कि ईश्वर है। जो नहीं जानते हैं वे यह भी कहते हैं कि ईश्वर नहीं है। जो जानते हैं वे दोनों बातें साथ—साथ कहते हैं ईश्वर है और ईश्वर नहीं है।
अनाहत नाद विरोधाभासी वक्तव्य है, लेकिन जानकर, बहुत सोच—विचार के साथ उसका उपयोग किया गया है। वह अर्थपूर्ण है। वह कहता है कि वह ध्वनि जैसी लगती है और वह ध्वनि नहीं है। वह ध्वनि जैसी लगती है, क्योंकि तुमने केवल ध्वनि ही जानी है। कोई दूसरी भाषा तुम नहीं जानते, केवल ध्वनियों की भाषा जानते हो। यही कारण है कि वह ध्वनि जैसी लगती है। लेकिन असल में वह मौन है, ध्वनि नहीं। तंत्र सूत्र भाग 2

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