एक बड़ी पुरानी हिंदू कहानी मुझे बहुत प्रीतिकर रही है कि नारद स्वर्ग जा रहे हैं। और उन्होंने एक बूढ़े संन्यासी को पूछा, कुछ खबर-वबर तो नहीं पूछनी है? तो उस बूढ़े संन्यासी ने कहा कि परमात्मा से मिलना हो तो जरा पूछ लेना कि कितनी देर और है? क्योंकि मैं तीन जन्मों से साधना कर रहा हूं।
वह बड़ा पुराना तपस्वी था। नारद ने कहा, जरूर पूछ लूंगा।
उसके ही पास एक दूसरे वृक्ष के नीचे एक जवान युवक बैठा हुआ अपना एकतारा बजा रहा था। गीत गा रहा था। नारद ने सिर्फ मजाक में उससे पूछा कि क्यों भाई, तुम्हें भी तो कोई बात नहीं पुछवानी है भगवान से? मैं जा रहा हूं स्वर्ग। वह अपना गीत ही गाता रहा। उसने नारद की तरह आंख उठा कर भी न देखा। नारद ने उसको हिलाया तो उसने कहा कि नहीं, उसकी कृपा अपरंपार है। जो चाहिए वह मुझे हमेशा मिला ही हुआ है। कुछ पूछना नहीं है। मेरी तरफ से उसे कोई तकलीफ मत देना। मेरी बात ही मत उठाना, मैं राजी हूं। और सभी मिला हुआ है। बन सके तो मेरी तरफ से धन्यवाद दे देना।
नारद वापस लौटे। उस बूढ़े संन्यासी को जा कर कहा कि क्षमा करना भाई! मैंने पूछा था वह। उन्होंने कहा कि वह बूढ़ा संन्यासी जिस वृक्ष के नीचे बैठा है, उसमें जितने पत्ते हैं, उतने ही जन्म अभी और लगेंगे। बूढ़ा तो बहुत नाराज हो गया। वह जो पोथी पढ़ रहा था फेंक दी, माला तोड़ दी, गुस्से में चिल्लाया कि हद हो गयी! अन्याय है। यह कैसा न्याय? तीन जन्म से तप रहा हूं, कष्ट पा रहा हूं, उपवास कर रहा हूं, अभी और इतने? यह नहीं हो सकता।
उस युवक के पास भी जा कर नारद ने कहा कि मैंने पूछा था, तुमने नहीं चाहा था फिर भी मैंने पूछा था। उन्होंने कहा कि वह जिस वृक्ष के नीचे बैठा है, उसमें जितने पत्ते हैं–वह युवक तत्क्षण उठा, अपना एकतारा ले कर नाचने लगा और उसने कहा, गजब हो गया। मेरी इतनी पात्रता कहां? इतने जल्दी? जमीन पर कितने वृक्ष हैं! उन वृक्षों में कितने पत्ते हैं! सिर्फ इस वृक्ष के पत्ते? इतने ही जन्मों में हो जाएगा? यह तो बहुत जल्दी हो गया, यह मेरी पात्रता से मुझे ज्यादा देना है। इसको मैं कैसे झेल पाऊंगा? इस अनुग्रह को मैं कैसे प्रगट कर पाऊंगा?
वह नाचने लगा खुशी में। और कहानी कहती है, वह उसी तरह नाचते-नाचते समाधि को उपलब्ध हो गया। उसका शरीर छूट गया। जो अनंत जन्मों में होने को था, वह उसी क्षण हो गया। जिसकी इतनी प्रतीक्षा हो, उसी क्षण हो ही जाएगा।
नानक कहते हैं, ‘धीरज सुनार, बुद्धि निहाई, ज्ञान हथौड़ा।’
नानक कहते हैं कि ज्ञान तो चोट है, हथौड़ा है। और जब भी तुम्हें ज्ञान होगा, कोई भी छोटा सा भी ज्ञान होगा, तो तुम्हारा रोआं-रोआं कंप जाएगा उस चोट से। इसलिए तो हम ज्ञान से बचते हैं, क्योंकि वह शॉक है। उस धक्के को हम नहीं सहना चाहते। हम तो सूचनाएं इकट्ठी करते हैं। सूचनाएं इकट्ठी करने में कोई भी धक्का नहीं है। तुम शास्त्र में पढ़ लेते हो कि परमात्मा परम सत्य है। इसमें कौन सा धक्का है? तुम शास्त्र में पढ़ लेते हो, ध्यान मार्ग है। इसमें कौन सा धक्का है? पढ़ लिया, याद कर लिया, दूसरे को बता दिया।
एक ओंकार सतनाम एक ओंकार सतनाम (गुरू नानक) प्रवचन–20
Monday, 24 August 2015
एक ओंकार सतनाम एक ओंकार सतनाम (गुरू नानक) प्रवचन–20
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