एक मित्र ने मुझे सवाल पूछा है कि यह जो यहां कीर्तन होता है, यह बहुत खतरनाक चीज है। और यह तो ऐसा मालूम पड़ता है कि कीर्तन करने वाले साधु, संन्यासी, संन्यासिनिया कामवासना निकाल रहे हैं अपनी! और उन्हीं मित्र ने आगे पूछा है कि यह भी मुझे पूछना है कि जब मैं लोगों को कीर्तन करते देखता हूं? तो अगर स्त्रियां कीर्तन कर रही हैं, तो मेरा ध्यान उनके स्तन पर ही जाता है!
अब कीर्तन करते समय जिसका ध्यान स्तन पर जा रहा हो, वह यह कह रहा है कि उसे लगता है कि सब संन्यासी अपनी कामवासना निकाल रहे हैं! उसे यह खयाल नहीं आता कि उसे जो दिखाई पड रहा है, वह उसके संबंध में खबर है, किसी और के सबंध में खबर नहीं है। और वह खुद ही नीचे लिख रहा है कि मुझे उनके स्तन पर ध्यान जाता है।
निश्चित ही, इस व्यक्ति को मां के स्तन से दूध पीने का पूरा मौका नहीं मिला होगा। इसको स्तन में अभी भी अटकाव रह गया है। इसको एक काम करना चाहिए। बच्चों के लिए जो दूध पीने की बोतल आती है, वह खरीद लेनी चाहिए। उसमें दूध भरकर रात उसको चूसना चाहिए, दस—पंद्रह मिनट सोने के पहले। तीन महीने के भीतर इसको स्तन दिखाई पड़ने बंद हो जाएंगे।
स्तन दिखाई पड़ने का मतलब ही यह है कि बच्चे का जो रस था स्तन में, वह कायम रह गया है। स्तन पूरा नहीं पीया जा सका। इसलिए आदिवासियों में जाएं, जहां बच्चे पूरी तरह अपनी मां का स्तन पीते हैं, वहा किसी की उत्सुकता स्तन में नहीं है। अगर आप आदिवासी स्त्री को, हाथ रखकर भी उसके स्तन पर, पूछें कि यह क्या है? तो वह कहेगी कि दूध पिलाने का थन है। आप अपने इस समाज की स्त्री के स्तन की तरफ आंख भी उठाएं, वह भी बेचैन, आप भी बेचैन। आप भी आंख बचाते हैं, तब भी बेचैन, वह भी स्तन को छिपा रही है और बेचैन है। और छिपाकर भी प्रकट करने की पूरी कोशिश कर रही है, उसमें भी बेचैन है।
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और सबकी नजर वहीं लगी हुई है। चाहे फिल्म देखने जाएं, चाहे उपन्यास पढ़ें, चाहे कविता करें, चाहे कहानी लिखें, स्तन बिलकुल जरूरी हैं! अगर कभी कोई दूसरे ग्रह की सभ्यता के लोग इस जमीन पर आए , तो वे हमें कहेंगे कि ये लोग स्तनों से बीमार समाज है। क्योंकि मूर्ति बनाओ तो, चित्र बनाओ तो, स्तन पहली चीज है; स्त्री गौण है। मगर यह बच्चे का दृष्टिकोण है। असल में बच्चा जब पहली दफा मां से संबंधित होता है—और वह उसका पहला संबंध है, उसके पहले उसका कोई संबंध किसी से नहीं है, वह उसका पहला समाज में पदार्पण है, वह उसका पहला अनुभव है दूसरे का—तो वह पूरी मां से संबंधित नहीं होता; सिर्फ उसके स्तन से संबंधित होता है। पहला अनुभव स्तन का है। और पहले वह स्तन को ही पहचानता है; मां पीछे आती है। स्तन प्रमुख है, मां गौण है। और अगर आपको बाद की उम्र में भी स्तन प्रमुख है, स्त्री गौण लगती है, तो आप बचकाने हैं और आपकी बुद्धि परिपक्व नहीं हो पाई। आपको फिर से स्तन नकली खरीदकर बाजार से, पीना शुरू कर देना चाहिए। उससे राहत मिलेगी।
गुरु बोलता था, शिष्य सुनता था। लेकिन शिष्य के सुनने में भी गुरु देखता था,उसका रस कहां है! उसकी आंख कहा चमकने लगती है और कहा फीकी हो जाती है! कहा उसकी आंख की पुतली खुल जाती है और फैल जाती है, और कहा सिकुड़ जाती है! कहां उसकी रीढ़ सीधी हो जाती है, और कहां वह शिथिल होकर बैठ जाता है! वह देख रहा है। बाहर और भीतर उसकी चेतना में क्या हो रहा है, वह देख रहा है। और इस माध्यम से वह भी चुन रहा है कि इस शिष्य के लिए क्या जरूरी होगा, क्या उपयोगी होगा।
इसलिए कृष्ण ने सारे मार्गों की बात कही है। उन सारे मार्गों पर अर्जुन को चलना नहीं है। अर्जुन को चलना तो होगा एक ही मार्ग पर। लेकिन इन सारो को चलने के पहले जान लेना जरूरी है।
ओशो
गीता दर्शन
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