Wednesday, 29 June 2016

मूलबंध : एक सरल प्रयोग

मूलबंध : एक सरल प्रयोग
एक छोटा सा प्रयोग, जब भी तुम्हारे मन में कामवासना उठे तो करो। तो धीरे - धीरे तुम्हें राह साफ हो जाएगी। जब भी तुम्ह़े़ं लगे कामवासना तुम्हें पकड़ रही है, तब डरो मत। शांत होकर बैठ जाओ। जोर से श्वास को बाहर फेंको -- उच्छवास। भीतर मत लो श्वास को - क्योंकि जैसे भी तुम भीतर गहरी श्वास को लोगे, भीतर जाती श्वास काम - ऊर्जा को नीचे की तरफ धकाती है।
जब भी तुम्हें कामवासना पकड़े, तब एक्सहेल करो, बाहर फेंको श्वास को। नाभि को भीतर खींचो, पेट को भीतर लो और श्वास को बाहर फेंको।... जितनी फेंक सको। धीरे - धीरे अभ्यास होने पर तुम संपूर्ण रूप से श्वास को बाहर फेंकने में सफल हो जाओगे।
जब सारी श्वास बाहर फिंक जाती है, तो तुम्हारा पेट और नाभि वैक्युम हो जाते है, शून्य हो जाते है। और जहां कहीं शून्य हो जाता है, वहां आसपास की ऊर्जा शून्य की तरफ प्रवाहित होने लगती है। शून्य खींचता है; क्योंकि प्रकृति शून्य को बरदाश्त नहीं करती, शून्य को भरती है। तुम्हारे नाभि के पास शून्य हो जाए, तो मुलाधार से ऊर्जा तत्क्षण नाभि की तरफ उठ जाती है। और तुम्हें बड़ा रस मिलेगा -- जब पहली दफा अनुभव करोगे कि एक गहन ऊर्जा बाण की तरह आकर नाभि में उठ गई। तुम पाओगे, सारा तन एक गहन स्वास्थ्य से भर गया। एक ताजगी! यह ताजगी वैसी ही होगी, ठीक वैसा ही अनुभव होगा ताजगी का, जैसा संभोग के बाद ऊदासी का होता है। जैसे ऊर्जा के स्खलन के बाद एक शिथिलता पकड़ लेती है।
संभोग के बाद जैसे विषाद का अनुभव होगा, वैसे ही अगर ऊर्जा नाभि की तरफ उठ जाए, तो तुम्हें हर्ष का अनुभव होगा। एक प्रफुल्लता घेर लेगी। ऊर्जा का रुपांतरण शुरू हुआ। तुम ज्यादा शक्तिशाली, ज्यादा सौमनस्यपूर्ण, ज्यादा उत्फुल्ल, सक्रिय, अन -थके, विश्रामपूर्ण मालूम पड़ोगे। जैसे गहरी निंद के बाद उठे हो। ताजगी आ गई।
यह मुलबंध की सहजतम प्रक्रिया है कि तुम श्वास को बाहर फेंक दो। नाभि शून्य हो जाएगी, ऊर्जा उठेगी नाभि की तरफ, मुलबंध का द्वार अपने आप बंद हो जाएगा। लह.द्वार खुलता है ऊर्जा के धक्के से। जब ऊर्जा मुलाधार में नहीं रह जाती, धक्का नहीं पड़ता, द्वार बंद हो जाता है।
इसे अगर तुम निरंतर करते रहे, अगर इसे तुमने एक सतत साधना बना ली -- और इसका कोई पता किसी को नहीं चलता;
तुम इसे बाजार में खड़े हुए कर सकते हो, किसी को पता भी नहीं चलेगा; तुम दुकान पर बैठे हुए कर सकते हो, किसी को पता नहीं चलेगा। अगर एक व्यक्ति दिन में कम से कम तीन सौ बार, क्षण भर कै मूलबंध लगा ले, कुछ महिनों बाद पाएगा, कामवासना तिरोहित हो गई। काम - ऊर्जा रह गई, वासना तिरोहित हो गई।
ओशो,
ध्यान विज्ञान.

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