ध्यान क्या है ?
ध्यान शब्द हम बचपन से सुनते आये है
ध्यान से काम करो, ध्यान से पढाई करो
तुम्हारा किसी काम मे ध्यान नही लगता
ध्यान से खाना खाओ
ध्यान से ये करो ध्यान से वह करो
ध्यान शब्द बार बार सुनने को मिलता है मगर ध्यान है क्या
? यह हमे कोई नही बताता । आम बोल चाल की भाषा
मे साधारण सा दिखने वाला `तीन अक्षर का यह शब्द बहुत गहरा है । जिस प्रकार से समुन्द्र
की गहराई का अनुमान नही लगा सकते ध्यान शब्द की गहराई का पता लगाना समुन्द्र की गहराई
नापने के बराबर है । ध्यान कोई क्रिया नही है कोई
तुम्हारा आचरण नही है ध्यान वह चेतना है आप जो भी कृत्य करते हो उसके साक्षी
रहते हो आप जो भी करते हो उसका आपको पता होता है । आप अच्छा कार्य कर रहे हो बुरा कर
रहे हो पाप कर रहे है पुण्य कर रहे है आप सजग रहते है अपने कृत्य के प्रति सजग होना
ही ध्यान है ।
अधिकांशतः लोग सोये
रहते है खाना खाते हुए चलते हुए नहाते हुए
या अन्य कोई भी कार्य कर रहे है वे अपने कृत्य के प्रति सजग नही हो्ते वरन सोये रहते
है पुरा खाना खत्म हो जाता है जब उन्हे पता चलता है मैने खाना खा लिया, चलते - चलते
अपनी मंजिल तक पहुँच जाते है उन्हे पता ही नही होता वे चल रहे है । कार चला रहे हो,
व्यापार कर रहे हो, पढ़ रहे हो, चोरी कर रहे हो,क्रोध कर रहे हो, बेईमानी कर रहे हो,
आप जो भी कृत्य सारे दिन मे करते हो सब गहरी अवस्था मे सोते हुए करते हो । जो जागा
हुआ है वह क्या क्रोध कर सकता है चोरी कर सकता है झूठ बोल सकता है बेईमानी कर सकता
है । सजग रहते हुर क्रोध करके देखो आपको पता होना चाहिए आपको क्रोध आ रहा है आप क्रोध
कर रहे हो अब आपको क्रोध करना है आप क्रोध ही नही कर पाओगे जागा हुआ व्यक्ति कभी क्रोध
ही नही कर सकता । क्रोध हमेशा सोया हुआ व्यक्ति ही कर सकता है जो मूर्छित है वही क्रोध
कर सकता है यह प्रयोग आप कभी भी करके देख सकते हो आपका कोई कितना भी अनिष्ट कर दे आपको
बुरा भला कह दे अगर आप सजग है जागे हुए है
इसने मुझे बुरा-भला कहा ,मुझे गाली दी अब मुझे इस पर क्रोध करना
है आप पायेगे आपके अन्दर क्रोध है ही नही आप क्रोध कर ही नही पायेगे । सजग रहना, जगे
रहना ही ध्यान है ।
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