Wednesday, 29 June 2016

भगवान अकेला है

मैंने सुनी है एक कहानी। 
एक मुसलमान फकीर था। वह रात सोया ।
उसने एक स्वप्न देखा की वह स्वर्ग चला गया है।
सपने में हि लोग स्वर्ग जाते है। असलियत में तो नर्क चले जाए
लेकिन स्वप्न में कोई नर्क क्यों जाए? स्वप्न में तो कम से कम
स्वर्ग जाना चाहिए।
स्वप्न में वह चला गया। और देखता है की स्वर्ग के रास्ते पर
बड़ी भीड़ भाड़ है, लाखों लोगों की भीड़ है।
उसने पूछा की क्या बात है आज?
तो भीड़ के रास्ते चलते किसी आदमी ने कहा की
भगवान का जन्म दिन है। उसका जलसा मनाया जा रहा है।
तो उसने कहा बड़े सौभाग्य मेरे, भगवान के बहोत दिनों से दर्शन करने थे।
वह मौका मिल गया। आज भगवान का जन्म दिन है,
अच्छे मौके पर में स्वर्ग आ गया।
वह भी रास्ते के किनारे लाखों दर्शको की भीड़ में खड़ा हो गया ।
फिर एक घोड़े पर सवार एक बहोत शानदार आदमी,
उसके साथ लाखो लोग निकले। वह झुककर लोगो से पूछता है
क्या जो घोड़े पर सवार है वे ही भगवान है ?
तो किसी ने कहा, नही वह भगवान नही है ,
यह हज़रत मोहम्मद है और उनके पीछे
उनको मानने वाले लोग है ।
वह जुलुस निकल गया। फिर दुसरा जुलुस है और रथ पर सवार
एक बहोत महिमाशाली व्यक्ति है। वह पूछता है क्या ये ही भगवान है ?
किसी ने कहा नही, ये भगवान नही,
यह राम है और राम के मानने वाले लोग।
और क्राइस्ट और बुद्ध और महावीर
और जरथुस्त्र और कंफ्यूशियश और न मालुन
कितने महिमाशाली लोग निकलते है और उनकी मानने वाले लोग निकलते है।
आधी रात बीत जाती है, फिर धीरे धीरे रास्ते में सन्नाटा हो जाता है ।
फिर यह आदमी सोचता है की अभी भगवान नही निकले।
वे कब निकलेंगे?
और जब लोग जाने के करीब हो गए है,
रास्ता उजड़ने लगा है, कोई रास्ते पर ध्यान नही दे रहा है,
तब तक एक बूढ़ा-सा आदमी अकेले चला आ रहा है।
उसके साथ कोई भी नही है।
वह हैरान होता है की ये महाशय कौन है ?
जिनके साथ कोई भी नही । यह अपने आप ही घोड़े पर बैठकर
चले आ रहे है, बिलकुल अकेले। तो ये चलता हुआ आदमी केहता है की
हो न हो, यह भगवान होंगे । क्यों की भगवान से अकेला
और दुनिया में कोई भी नही है ।
वह जाकर भगवान को ही पूछता है उस घोड़े पर बैठे हुवे बूढ़े आदमी से
की महाशय आप भगवान है ? में बहुत हैरान हूँ,
मोहम्मद के साथ बहुत लोग थे, क्राइष्ट के साथ बहुत लोग थे,
राम के साथ बहुत लोग थे, सबके साथ बहुत बहुत लोग थे,
आपके साथ कोई भी नही?
भगवान की आँखों से आसूं गिरने लगे और भगवान ने कहा ,
सारे लोग उन्ही के बिच बंट गए है, कोई बचा ही नही जो मेरे साथ हो सके।
कोई राम के साथ, कोई कृष्ण के साथ,
मेरे साथ तो कोई भी नहीं। और मेरे साथ वही हो,
में अकेला ही हूँ !
घबराहट में उस फकीर की नींद खुल गयी।
नींद खुल गयी तो पाया वह जमीन पर अपने झोंपड़े में है।
वह पास पड़ोस में जाकर केहने लगा
की मैंने एक बहुत दुखद स्वप्न देखा है,
बिलकुल झूठा स्वप्न देखा है।
मैंने यह देखा की भगवान अकेला है ।
यह कैसे हो सकता है? वह फकीर मुझे भी मिला और
मैंने उससे कहा की तुमने सच्चा ही स्वप्न देखा है।
भगवान से ज्यादा अकेला कोई भी नही।
क्यों की जो हिन्दू हो सकता है वह भगवान के साथ नही हो सकता।
जो मुसलमान है वह भगवान के साथ नही हो सकता है।
जो जैन है वह भगवान के साथ नही हो सकता है।
जो कोई भी नही है, जिसका कोई विशेषण नही है,
जो किसी का अनुयायी नही है, जो किसी का शिष्य नही है,
जो बिलकुल अकेला है, जो बिलकुल नितान्त अकेला है
वही केवल उस नितान्त अकेले से जुड़ सकता है,
जो भगवान है।
अकेले में, तन्हाईमैं, लोनलिनैस में,
बिलकुल अकेले में वह द्वार खुलता है
जो भगवान से जोड़ता है ।
भीड़ भाड़ से भगवान का कोई संबंध नही।
!! ओशो !!
[ नेति नेति : 9 ]

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