आखिर मनुष्य की बेहोशी कैसे टूटे
एक सुबह, मुल्ला नसरुद्दीन अस्पताल में अपने मित्र के पास बैठा था। मित्र ने आख खोली और उसने कहा, ‘नसरुद्दीन, क्या हुआ? मुझे कुछ याद भी नहीं आता।’ नसरुद्दीन ने कहा, ‘रात, तुम जरा ज्यादा पी गये और फिर तुम खिड़की पर चढ़ गये। और तुमने कहा कि मैं उड़ सकता हूं। और तुम उड़ गये। तीन मंजिल मकान पर थे। घटना जाहिर है। सब हड्डियां - पसलियां टूट गयी हैं।’
मित्र ने उठने की कोशिश की और कहा कि नसरुद्दीन, तुम वहां थे? और तुमने यह होने दिया? तुम किस तरह के मित्र हो?
नसरुद्दीन ने कहा, ‘ अब यह बात मत उठाओ। उस समय तो मुझे भी लग रहा था कि तुम यह कर सकते हो। यही नहीं, अगर मेरे पायजामे का नाडा थोड़ा ढीला न होता तो मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा था। तो कहां उड़ने में पायजामा सम्हालूंगा, इसलिए मैं रुक गया और बच गया। तुम ही थोड़े पी गये थे, मै भी पी गया था।’
बेहोशी का अर्थ है: जो भी चित्त में दशा आ जाए, उसी के साथ एक हो जाना। तुम्हारा जीवन इसी शराबी जैसा है। माना कि तुम खिड़कियों से नहीं उड़ते और माना कि तुम अस्पताल में नहीं पाये जाते; लेकिन बहुत गौर से देखोगे तो तुम अस्पताल में ही हो और तुम्हारी सब हड्डियां टूट गई हैं। क्योंकि तुम्हारा पूरा जीवन एक रोग है। और उस रोग में सिवाय दुख और पीड़ा के कुछ हाथ आता नहीं है। सब जगह तुम गिरे हो। सब जगह तुमने अपने को तोड़ा है। और सारे तोड़ने के पीछे एक ही मूर्च्छा का सूत्र है कि जो भी घटता है, तुम उससे फासला नहीं कर पाते।थोड़े दूर हटो! एक - एक कदम लंबी यात्रा है; क्योंकि हजारों - लाखों जन्मों में जिसको बनाया है, उसको मिटाना भी आसान नहीं होगा। पर टूटना हो जाता है; क्योंकि वही सत्य है। तुमने जो भी बना लिया है, वह असत्य है।इसलिए हिंदू इसे माया कहते हैं। माया का अर्थ है कि तुम जिस संसारमें रहते हो, वह झूठ है। इसका यह अर्थ नहीं है कि बाहर जो वृक्ष है, वह झूठ है; पर्वत जो है, वह झूठ है और आकाश में चांद - तारे है, वे झूठ है। नहीं, इसका केवल इतना ही अर्थ है कि तुम्हारा जो तादात्म्य है, वह झूठ है। और, उसी तादात्म्य से तुम जीते हो। वही तुम्हारा संसार है।कैसे तादात्म्य टूटे? तो पहले तो जागने से शुरू करो; क्योंकि वहीं थोड़ी - सी किरण जागरण की है। स्वप्न से तो तुम कैसे शुरू करोगे। मुश्किल होगा। और सुषुप्ति का तो तुम्हें कोई पता नहीं है। वहां तो सब होश खो जाता है। जाग्रत से शुरू करो। साधना शुरू होती है जाग्रत से। वह पहला कदम है। दूसरा कदम है: रूप। और तीसरा कदम है: सुषुप्ति। और जिस दिन तुम तीनों कदम पूरे कर लेते हो, चौथा कदम उठ जाता है, वह चौथा कदम है तुर्यावस्था -- वह सिद्धावस्था है।
~ ओशो ~
(शिव सूत्र, प्रवचन #2)
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