ओशो प्रेम और ध्यान
मैंने सुना है, एक बहुत बड़ा अमीर आदमी था। उसने अपने गांव के सब गरीब लोगों के लिए, भिखमंगों के लिए माहवारी दान बांध दिया था। किसी भिखमंगे को दस रुपये मिलते महीने में, किसी को बीस रुपये मिलते। वे हर एक तारीख को आकर अपने पैसे ले जाते थे। वर्षों से ऐसा चल रहा था। एक भिखमंगा था जो बहुत ही गरीब था और जिसका बड़ा परिवार था। उसे पचास रुपये महीने मिलते थे। वह हर एक तारीख को आकर अपने रुपये लेकर जाता था।
एक तारीख आई। वह रुपये लेने आया, बूढ़ा भिखारी। लेकिन धनी के मैनेजर ने कहा कि भई, थोड़ा हेर-फेर हुआ है। पचास रुपये की जगह सिर्फ पच्चीस रुपये अब से तुम्हें मिलेंगे। वह भिखारी बहुत नाराज हो गया। उसने कहा, क्या मतलब? सदा से मुझे पचास मिलते रहे हैं। और बिना पचास लिए मैं यहां से न हटूंगा। क्या कारण है पच्चीस देने का? मैनेजर ने कहा कि जिनकी तरफ से तुम्हें रुपये मिलते हैं उनकी लड़की का विवाह है और उस विवाह में बहुत खर्च होगा। और यह कोई साधारण विवाह नहीं है। उनकी एक ही लड़की है, करोड़ों का खर्च है। इसलिए अभी संपत्ति की थोड़ी असुविधा है। पच्चीस ही मिलेंगे। उस भिखारी ने जोर से टेबल पीटी और उसने कहा, इसका क्या मतलब? तुमने मुझे क्या समझा है? मैं कोई बिरला हूं? मेरे पैसे काट कर और अपनी लड़की की शादी? अगर अपनी लड़की की शादी में लुटाना है तो अपने पैसे लुटाओ।
कई सालों से उसे पचास रुपये मिल रहे हैं; वह आदी हो गया है, अधिकारी हो गया है; वह उनको अपने मान रहा है। उसमें से पच्चीस काटने पर उसको विरोध है।
तुम्हें जो मिला है जीवन में, उसे तुम अपना मान रहे हो। उसमें से कटेगा तो तुम विरोध तो करोगे, लेकिन उसके लिए तुमने धन्यवाद कभी नहीं दिया है। इस भिखारी ने कभी धन्यवाद नहीं दिया उस अमीर को आकर कि तू पचास रुपये महीने हमें देता है, इसके लिए धन्यवाद। लेकिन जब कटा तो विरोध।
जीवन के लिए तुम्हारे मन में कोई धन्यवाद नहीं है, मृत्यु के लिए बड़ी शिकायत। सुख के लिए कोई धन्यवाद नहीं है, दुख के लिए बड़ी शिकायत। तुम सुख के लिए कभी धन्यवाद देने मंदिर गए हो? दुख की शिकायत लेकर ही गए हो जब भी गए हो। जब भी तुमने परमात्मा को पुकारा है तो कोई दुख, कोई पीड़ा, कोई शिकायत। तुमने कभी उसे धन्यवाद देने के लिए भी पुकारा है? जो तुम्हें मिला है उसकी तरफ भी तुम पीठ किए खड़े हो। और इस कारण ही तुम्हें जो और मिल सकता है उसका भी दरवाजा बंद है।
Sunday, 23 August 2015
love & meditation osho
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