Tuesday, 25 August 2015

मन को भगाना (ओशो)

फ्रायड ने अपनी जीवन कथा में एक छोटा-सा
उल्लेख किया है। उसने लिखा है कि एक बार
वह बगीचे में अपनी पली और छोटे बच्चे के साथ
घूमने गया। देर तक वह पत्नी से बातचीत करता
रहा, टहलता रहा। फिर जब सांझ होने लगी
और बगीचे के द्वार बंद होने का समय करीब
हुआ, तो फ्रायड की पत्नी को खयाल आया
कि ‘उसका बेटा न-मालूम कहां छूट गया है?
इतने बड़े बगीचे में वह पता नहीं कहां होगा?
द्वार बंद होने के करीब हैं, उसे कहां खोजूं?’
फ्रायड की पत्नी चिंतित हो गयी, घबड़ा
गयी।
फ्रायड ने कहा, ‘‘घबड़ाओ मत! एक प्रश्र मैं
पूछता है तुमने उसे कहीं जाने से मना तो नहीं
किया? अगर मना किया है तो सौ में
निन्यानबे मौके तुम्हारे बेटे के उसी जगह होने
के हैं, जहां जाने से तुमने उसे मना किया है।
”उसकी पत्नी ने कहा, ‘‘मना तो किया था
कि फव्वारे पर मत पहुंच जाना।’
फ्रायड ने कहा, ” अगर तुम्हारे बेटे में थोड़ी भी
बुद्धि है, तो वह फव्वारे पर ही मिलेगा। वह
वहीं होगा। क्योंकि कई बेटे ऐसे भी होते हैं,
जिनमें बुद्धि नहीं होती। उनका हिसाब
रखना फिजूल है। ” फ्रायड की पत्नी बहुत
हैरान हो गयी। वे गये दोनों भागे हुए फव्वारे
की ओर। उनका बेटा फव्वारे पर पानी में पैर
लटकाए बैठा पानी से खिलवाड़ कर रहा था।
फ्रायड की पत्नी ने कहा, ‘‘बड़ा आश्चर्य! तुमने
कैसा पता लगा लिया कि हमारा बेटा यहां
होगा? फ्रायड ने कहा, ”आश्रर्य इसमें कुछ भी
नहीं है। मन को जहां जाने से रोका जाये, मन
वहीं जाने के लिए आकर्षित होता है। जहां के
लिए कहा जाये, मत जाना वहां, एक छिपा
हुआ रहस्य शुरू हो जाता है कि मन वहीं जाने
को तत्पर हो जाता है।
” फ्रायड ने कहा, यह तो आश्चर्य नहीं है कि
मैंने तुम्हारे बेटे का पता लगा लिया, आश्चर्य
यह है कि मनुष्य-जाति इस छोटे-से सूत्र का
पता अब तक नहीं लगा पायी। और इस छोटे-से
सूत्र को बिना जाने जीवन का कोई रहस्य
कभी उदघाटित नहीं हो पाता। इस छोटे-से
सूत्र का पता न होने के कारण मनुष्य-जाति ने
अपना सारा धर्म; सारी नीति, सारे समाज
की व्यवस्था सप्रेशन पर, दमन पर खड़ी की हुई
है।
  मनुष्य का जो व्यक्तित्व हमने खड़ा किया है,
वह दमन पर खड़ा है, दमन उसकी नींव है। और
दमन पर खड़ा हुआ आदमी लाख उपाय करे,
जीवन की ऊर्जा का साक्षात्कार उसे कभी
नहीं हो सकता है। क्योंकि जिस-जिस का
उसने दमन किया है, मन में वह उसी से उलझा-
उलझा नष्ट हो जाता है। थोड़ा सा प्रयोग
करें और पता चल जायेगा। किसी बात से मन
को हटाने की कोशिश करें और पायेंगे मन उसी
बात के आसपास घूमने लगा है। किसी बात को
भूलने की कोशिश करें, तो भूलने की वही
कोशिश उस बात को स्मरण करने का आधार
बन जाती है। किसी बात को, किसी विचार
को, किसी स्मृति को, किसी इमेज को,
किसी प्रतिमा को मन से निकालने की
कोशिश करें, और मन उसी को पकड़ लेता है।
भीतर, मन में लड़े और आप पायेंगे कि जिससे आप
लड़ेगें, उसी से हार खायेंगे; जिससे भागेंगे, वही
पीछा करेगा। जैसे छाया पीछा कर रही है।
जितनी तेजी से भागते हैं, छाया उतनी ही
तेजी से पीछा करती है।
मन को हमने जहां-जहां से भगाया है, मन वहीं-
वहीं हमें ले गया है; जहां-जहां जाने से हमने उसे
इंकार किया है, जहां-जहां जाने से हमने द्वार
बंद किये हैं, मन वहीं-वहीं हमें ले गया है।
क्रोध से लड़े-और मन क्रोध के पास ही खड़ा
हो जायेगा; हिंसा से लड़े-और मन हिंसक हो
जायेगा। मोह से लड़े-और मन मोह मस्त हो
जायेगा। लोभ से लड़े- और मन लोभ में गिर
जायेगा। धन से लड़े-और मन धन के प्रति ही
पागल हो उठेगा। काम से लड़ने वाला मन,
सेक्स से लड़ने वाला मन, सेक्स में चला जायेगा।
जिससे लड़ेंगे मन वही हो जायेगा। यह बड़ी
अदभुत बात है। जिसको दुश्मन बनायेंगे, मन पर
उस दुश्मन की ही प्रतिच्छवि अंकित हो
जायेगी।...

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