उदासी
उदासी उतना उदास नहीं करती, जितना उदासी आ गई, यह बात उदास करती है। उदासी की तो अपनी कुछ खूबियां हैं, अपने कुछ रहस्य हैं। अगर उदासी स्वीकार हो तो उदासी का भी अपना मजा है। मुझे कहने दो इसी तरह, कि उदासी का भी अपना मजा है। क्योंकि उदासी में एक शांति है, एक शून्यता है। उदासी में एक गहराई है। आनंद तो छिछला होता है। आनंद तो ऊपर-ऊपर होता है। आनंद तो ऐसा होता है जैसे नदी भागी जाती है और उसके ऊपर पानी का झाग। उदासी ऐसी होती है जैसी नदी की गहराई--अंधेरी और काली। आनंद तो प्रकाश जैसा है। उदासी अंधेरे जैसी है। अंधेरी रात का मजा देखा? अमावस की रात का मजा देखा? अमावस की रात का रहस्य देखा? अमावस की रात की गहराई देखी? मगर जो अंधेरे से डरता है, वह तो आंख ही बंद करके बैठ जाता है, अमावस को देखना ही नहीं चाहता। जो अंधेरे से डरता है, वह तो अपने द्वार-दरवाजे बंद करके खूब रोशनी जला लेता है। वह अंधेरे को झुठला देता है। अमावस की रात आकाश में चमकते तारे देखे? दिन में वे तारे नहीं होते। दिन में वे तारे नहीं हो सकते। दिन की वह क्षमता नहीं है। वे तारे तो रात के अंधेरे में, रात के सन्नाटे में ही प्रकट होते हैं। वे तो रात की पृष्ठभूमि में ही आकाश में उभरते हैं और नाचते हैं। ऐसे ही उदासी के भी अपने मजे हैं, अपने स्वाद हैं, अपने रस हैं।
Wednesday, 29 July 2015
उदासी (ओशो)
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