जो गुरु के गर्भ से गुजरता है वही ब्राह्मण हो पाता है...
एक जन्म तो मां से मिलता है; उससे तो सभी शुद्र पैदा होते हैं। और एक जन्म गुरु से मिलता है; उस जन्म के बाद ही कोई ब्राह्मण होता है। जो गुरु के गर्भ से गुजरता है वही ब्राह्मण हो पाता है।
जब गुरु से संग जुड़ा तो तुम फिर गर्भ में प्रविष्ट हुए, फिर नया गर्भ मिला। नए जीवन का द्वार खुला। अब तुम जान सकोगे अपने सच्चे स्वरूप को, अपनी सच्चाई को। अब पुनरुज्जीवन होगा। बहुत संभल कर रहना। क्योंकि मां के पेट में तो बच्चा सोया रहता है, क्योंकि जन्म शुद्र का होनेवाला है। बच्चे को जागने की जरूरत नहीं है। बच्चा चौबीस घंटे सोता है मां के पेट में। जन्म के बाद फिर तेईस घंटे सोता है, फिर बाईस घंटे, फिर अठारह घंटे, फिर आठ घंटे पर ठहर जाता है। आठ घंटे आंख बंद करके सोता है और बाकी सोलह घंटे आंख खोलकर सोता है। मगर नींद जारी रहती है।
गुरु के गर्भ में प्रवेश का अर्थ होता है——ध्यान में प्रवेश। अब जागकर जीना।.. .परन सम्हारल हो! अपने प्रण को संभालना।
गुरु जन्म है और मृत्यु भी। दूसरी बात भी खयाल में ले लेना। मां से जो जन्म मिला था—— देह का——उसकी तो मृत्यु हो जाएगी गुरु के साथ। और गुरु से नया जन्म मिलेगा। नया जन्म तभी मिल सकता है जब पुराने की मृत्यु हो जाए। जब तुम जान लो कि मैं देह नहीं हूं, तभी तुम जान सकोगे कि मैं कौन हूं। पदार्थ नहीं हो तो जान सकोगे कि मैं परमात्मा हूं। तत्वमसि श्वेतकेतु! श्वेतकेतु, वह तू है! तू वह है! लेकिन उसे जानने के पहले इस देह के तादात्म्य से छूटना होगा। यही मृत्यु है।
तो गुरु कठोर भी होगा। गुरु चोट भी करेगा, तो ही तो जगा सकता है। इसलिए जो गुरु सिर्फ सांत्वना देता हो, बचना, सावधान रहना! वहां से तुम्हारे जीवन में कोई क्रांति घटनेवाली नहीं है। जो गुरु तुम्हें सांत्वना देता हो, वह तुम्हें लोरी का गीत सुना रहा है। उससे तुम्हारी नींद और गहरी हो जाएगी। जो गुरु तुम्हें जगाना चाहता है, कठोर होगा, झकझोरेगा।
सुबह देखते हो न, तीन बजे रात उठना है, अलार्म बजता है, कैसा क्रोध आता है! अपनी ही घड़ी को पटक देते हैं लोग उठाकर! खुद ही अलार्म भर कर रात सोए थे, अलार्म दुश्मन जैसा मालूम पड़ता है। तुम्हीं जाकर गुरु से प्रार्थना करते हो मुझे जगाओ! लेकिन जब वह जगाएगा तो जन्मों—जन्मों की नींद टूटेगी, बड़ी पीड़ा होगी, बड़े कष्ट होंगे। अगर अपने प्रण की याद रखी तो ही जग पाओगे, अन्यथा भाग जाओगे। करोड़ों में एक—आध गुरु के पास पहुंचता है। फिर जो पहुंचते हैं गुरु के पास, सब टिक नहीं पाते; उनमें से बहुसंख्यक भाग जाते हैं।
पुरानी तिब्बत में कहावत है : हजार बुलाए जाते हैं तो दस पहुंचते हैं; जो दस पहुंचते हैं, उनमें से नौ भाग जाते हैं, एक ही बचता है। मगर जो बच जाए, वह धन्यभागी है। वही ब्राह्मण हो पाता है।
ओशो, का सोवै दिन रैन, प्रवचन 7
Friday, 31 July 2015
ध्यान में प्रवेश
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Featured post
· . प्रेम आत्मा का भोजन है।
· · ....... प्रेम आत्मा का भोजन है। प्रेम आत्मा में छिपी परमात्मा की ऊर्जा है। प्रेम आत्मा में निहित परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग ...

-
अनहद नाद कृपया समझाएं कि अनाहत नाद एक प्रकार की ध्वनि है या कि वह समग्रत: निर्ध्वनि है। और यह भी बताने की कृपा करें कि समग्र ध्वनि और समय न...
-
एक मित्र ने मुझे सवाल पूछा है कि यह जो यहां कीर्तन ...
-
स्त्री और पुरुष के शरीरों के संबंध में, पहला शरीर स्त्री का स्त्रैण है, लेकिन दूसरा उसका शरीर भी पुरुष का ही है। और ठीक इससे उलटा पुरुष के स...
No comments:
Post a Comment