Sunday, 21 December 2014

how to live long & healty life (in hindi)

                                       जीवन भर कैसे रहे निरोगी 
                                                                                 वेदो मे मनुष्य के लिये दीर्घायु की कामना की गयी है जो शरीर निरोगी होने से सम्भव है । शरीर को  स्वस्थ व निरोगी रखने के लिये शुद्ध पुष्टिदायक रोगनाशक अन्न तथा जल का सेवन आवश्यक है क्योकि स्वास्थ्य को ऊर्जावान करके दिर्घ जीवन मिलता है। और रोगी के रोग का शमन करके प्रकर्ति स्थापन द्वारा आयु मे वृधि होती है । विकारो का नाश करने के लिये तीन सुत्र  है ।--आहार विहार सद्व्रत मानसचर्या
          1-आहार- आहार ही मनुष्य व अन्य प्राणीयो का पोषक माना जाता है यही उसे उर्जा प्रदान करता है ।  आहार के कुछ नियम है ।
     1-उष्ण भोजन स्वादिष्ट लगता है भोजन करने पर जठराग्नि मे अग्नि प्रजलित हो जाती है जिससे  भोजन जल्द पचता है दुषित वायु नही बनती है तो आहार गुणवान हो जाता है इन्द्रियों का पोषण बल की वृधि होती है ।
      2-आहार हमेशा उचित मात्रा मे करना चाहिये न कम हो न ज्यादा हो,उचित मात्रा मे आहार का सेवन करने से वात कफ का संतुलन बना रहता है। आहार पचने के उपरान्त समय पर मल का विसर्जन होता है वह भी बिना कषट के।
     3-जब तक आहार पच नही जाता दुसरा आहार नही करना चाहिए भोजन पचे बिना द्वारा भोजन करने से वात कफ पित मे असंतुलन आ जाता है और कई रोग होने की सम्भावना रहती है । पहले आहार को पचने मे कम से कम छः घंटे का समय लगता है दुसरा आहार हमे छः घंटे से पहले नही करना चाहिए ।
    4-आहार के लिये निर्धारण शुध्द स्थान होना चाहिए,कही भी भोजन करना स्वास्थ्य के लिये ठीक नही है । आहार का सेवन हमेशा जमीन पर बैठ कर एक निश्चित स्थान पर करना चाहिए । इस नियम से स्थान की अशुद्धिया दूर होती है। आहार के उपयोग के समय प्रयोग होने वाले बर्तनो का आहार के गुणो पर विशेष प्रभाव पड़ता है अतः बर्तन शुध्द व स्वच्छ होने चाहिए । मिट्टी व कांच के बर्तन सबसे शुध्द माने गये है अतः भोजन करते समय इनका प्रयोग करना चाहिए ।
      5-भोजन हमेश आराम से करना चाहिए । भोजन खुब चबा-चबा कर करना चाहिए तेजी से भोजन करने से कई बार भोजन अन्न नली के स्थान पर श्वास नली मे प्रवेश कर जाता है। और पचने मे भी अत्यधिक समय लगता है ।भोजन को इतना चबाना चाहिए उसका मुंह के अन्दर ही पेस्ट बन जाए । भोजन हमेशा आराम से इत्मीनाम से करना चाहिए शीघ्रता से भोजन करने से कई रोगो का जन्म होता है ।
     6-भोजन ज्यादा धीरे भी नही करना चाहिए,भोजन करने से तर्प्ति भी न मिले आहार भी ठ्न्डा हो गया । इससे पाचन क्रिया वीकृत  हो जाती है ।
    7-भोजन करते समय हँसना नही चाहिए न ही बात करनी चाहिए,एसी अवस्था मे भोजन श्वास नली मे प्रवेश कर सकता है भोजन हमेशा एकाग्र हो कर मन लगाकर स्वाद लेकर करना चाहिए ।
   8-आहार हमेशा परमात्मा का स्मरण लेकर करना चाहिए ।
      विहार-शरिर को स्वस्थ रखने के लिए प्रतिदिन की दिनचर्या मे आयुर्वेद के अनुसार नियमो का पालन करने वालो के पास रोग नही फट्कता है ।
            1-प्रातः उठ्ने के बाद स्वयं एक क्षण विचार करना चाहिए कि मेरी शारीरिक स्थिति प्रतिदिन जैसी है या कुछ विचार करने योग्य है।  यदि किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्या दिखाई देती है उसका  निदान करने का प्रयास करना चाहिए छोटी से छोटी समस्या की उपेक्षा करना ही भविष्य मे महान कष्टकारी हो जाता है ।
        2- प्रातः सोकर उठते ही सर्वप्रथम हमे एक या दो गिलास पानी घुँट- घुँट पीना चाहिए । उठते ही कुल्ला नही करना चाहिए क्योकि सारी रात की जो लार बनती है वह पेट मे जानी चाहिए । कुल्ला करेंगे तो वह बाहर आ जायेगी,यह अपने आप मे जबर्द्स्त मेडिसिन है जो हमारा डाइजेशन ही सही नही रखती वरन् कई बीमारियो से बचाती है ।
3-मल विसर्जन करने के उपरान्त अपनी सुविधा के अनुसार दातोन या मंजन का  प्रयोग करना चाहिए दाँतौन के लिए नीम महुए बबूल आम अमरुद आदि की दातौन सर्वश्रेष्ठ है व जीवणू नाशक व शरीर रचना के  पोषण करने वाली मानी गयी है । चुट्की भर हल्दी व सेन्दा नमक व सरसो का तेल की कुछ बुंदे, इन सबको मिलाकर दाँतों  को रगड़ने से पायरिया आदि रोग नष्ट हो जाते है । यह प्रयोग भी प्रतिदिन कर सकते है ।
4-श्वास नली को साफ करने के लिए प्राणायाम करना चाहिए, 10 मिनट गहरी श्वास ले व छोड़ने से श्वास नली की सफाई हो जाती है ।
5-नेत्रो की सुरक्षा एवं रोशनी को तेज रखने के लिये प्रातः मुँह  मे पानी भरकर तीस-चालिस बार आँखो पर पानी के छींटे देने चाहिए इससे आँखे तो साफ रहती है वरन् आँखों की ज्योति भी बढ्ती है । व मुँह की लार सोकर उठ्ते ही आँखों मे काजल की तरह से लगाने से आँखों  की ज्योति तेज होती है ।                                   6-तिल के तेल को मुख मे भर कर कुछ समय तक रोक कर उसका कुल्ला करना चाहिए। स्व्र्र उत्तम होता है, आँखों की रोशनी तेज होती है पाचन क्रिया सही रहती है । मुख की त्वचा कोमल व नींद अच्छी आती है सारे दिन शरीर मे फुर्ती रहती है ।
7-प्रतिदिन स्नान से पूर्व सम्पूर्ण शरीर की तिल के तेल या सरसो के तेल की मालिश करनी चाहिए । इससे शरीर मुलायम हो जाता है त्वचा स्मबन्धी रोगो के होने की सम्भावना नही रहती,सारे दिन ताजगी का अनुभव होता है थकान नही होती । सर्दी-गर्मी सहने की क्षमता बढ़ जाती है ।
8-दोनो पैरो के तलवो मे नित्य सरसो या तिल के तेल की मालिश करने से वायू का नाश होता है आँखों की रोशनी तेज़ होती है पैर फट्ते नही व स्थिर व बलवान बनते है ।
9-रात्रि मे नियमानुसार हल्का भोजन करना चाहिए। भोजन के उपरान्त दस मिनट ब्रजासन मे बैठना चाहिए । उसके बाद धर्मग्रन्थो को पढ़ना चाहिए या सत्संग भजन करके सोना चाहिए । नींद और सपने अच्छे आते है ।
सद्व्रत मानसचर्या  मन को स्वस्थ व उर्जावान बनाये रखने के लिये नियमो का पालन करना आवश्यक है मन स्वस्थ शरीर स्वस्थ । मन स्वस्थ नही तो तन भी स्वस्थ नही रह सकता,मन स्वस्थ होता है सदाचार से,
 1-प्रात सूर्योदय से पूर्व उठ्ना चाहिए । स्वास्थय के लिए प्रातःकाल उठना सबसे पहला नियम है संसार मे जितने भी महापुरुष हुए है वे सब प्रातःकाल उठते रहे है प्रक्रति के नियमानूसार पशु-पक्षी आदि प्राणी प्रातः ही जागकर अम्रतबेला के वास्तविक आनन्द का अनुभव करते है । सब प्राणीयो मे श्रेष्ठ मनुष्य आलस्यवश सोता रहे और प्रकर्ति के अनमोल उपहार से वंचित रहे  तो उसके लिए कितनी लज्जा की बात है । जो सुर्योदय तक सोते रहते है उनकी बुद्धि और इन्द्रिया मन्द पड़ जाती है शरीर मे आलस्य भर जाता है अत: प्रातः देर से उठनेवाला हमेशा दरिद्र व दुखी रहता है अत: सूर्योदय तक सोते रहने का स्वभाव छोड़कर प्रात: जागरण का अभ्यास करना चाहिए ।
2-दिन का आरम्भ नित्यकर्मो से निबटकर गीता रामायण आदि ग्रन्थो का स्वाध्याय से करना चाहिए व सारे दिन उसके अनुसार ही कार्य करना चाहिए ।
3-हमे  प्रतिदिन सूर्योपासना करनी चाहिए । सूर्य से हमे प्रसन्ता सौन्दर्य और योवन आदि की प्राप्ति होति है । सूर्य स्नान करने से अनेक रोग व कीटाणु नष्ट हो जाते है ।
4- हमारे धर्मग्रन्थो मे आन्तरिक शुद्धि की द्रष्टि से प्रति पन्द्रह दिनो मे उपवास का विधान किया गया है । उपवास से केवल शरीर ही शुध्द नही होता मन भी शुध्द व निर्मल बनता  है ।
5-हमेशा प्रसन्न रहने का प्रयास करे सब से मधुर भाषा का प्रयोग करे । एसी भाषा का प्रयोग न करे जो कोइ आपसे करे तो उसे आप भी पसन्द न करे ।  किसी को आपके व्यवहार से दुख न पहुँचे,दुसरे का दुख जहां तक सम्भव हो दूर करने का प्रयास करे।
6-असत्य न बोले,परधन,पराई स्त्री की कामना न करे ।
7-भोजन कैसा भी हो उसे प्रसन्ता से ग्रहण करे,उसमे कमी न निकाले। भोजन जीवन निर्वाह के लिए लेते है अत: भोजन एकाग्रचित्त होकर परमात्मा का प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए ।
8-अपने धर्म का चिन्तन करे । परमात्मा का ध्यान करते हुए यह निश्चय करे हमारे हाथो जितने भी कार्य हो वह सब कुछ धर्म पुर्वक हो हम इमानदारी से कार्य करे जिससे हम भी प्रसन्न रहे और दुसरो को भी प्रसन्न्ता हो ।
9-जैस मन मे विचार उत्पन्न होता है वैसा वाणी से बोला जाता है और वैसा काम भी होता है हमारे मन पर सब कुछ निर्भर है यह मन आहार शुद्धि पर टिका हुआ है । आहार सात्विक होना चाहिए,जब उसको बनाया जाय तो परमात्मा का स्मरण करते हुए बनाया जाये ।
10-रोग रहित शरीर धर्म का आधार है कमजोर स्वास्थ्य वालो की इन्द्रिया अपेक्षाकृत चंचल होती है हमे विशेष रुप से शरीर शुद्धि का ध्यान देने की आवश्यकता है।



Thursday, 11 December 2014

sciatica ayurvedic treatment (in hindi)

गृधसी (sciatica)का आयुर्वेदिक उपचार
सुरजान शीरी 30 ग्राम 
नागोरी असगंध  30 ग्राम 
सोंफ             30 ग्राम 
सोंठ  10 ग्राम 
जीरा  10 ग्राम 
सनाय  10 ग्राम 
सुखा  पोदीना  10 ग्राम 
काली मिर्च  5 ग्राम 
इन  सब को पीसकर छानकर आधी चम्मच सुबह शाम ले ,
गृधसी  ही नहीं ठण्ड  होने वाले दर्द भी शीघ्र सही हो जाते है 
आयुर्वेद अपनाए सुखी व स्वस्थ जीवन जिये 
          जय श्री कृष्णा 

Friday, 5 December 2014

high blood pressure aurvedic treatment

                                                                                                                                                                     हाई ब्लडप्रेशर :-
अश्वगंधा चूर्ण 3 ग्राम,
सूरजमुखी बीज का चूर्ण 2 ग्राम, मिश्री 5 ग्राम
और गिलोय
का बारीक चूर्ण (सत्व) 1 ग्राम की मात्रा में लेकर
पानी के
साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप (हाई
ब्लड प्रेशर) में लाभ होता है।
High bladapreshar:-3 grams powder, sunflower seed meal ashvagandha 2 grams, mishri 5 grams and 1 gram of finely giloy powders (satva) in the amount of water consumed 2-3 times a day with the hypertension (high blood pressure) is profit. (Translated by Bing)

Thursday, 4 December 2014

Difference between indian and western culture

                भारतीय संस्कृति व यूरोपियन संस्कृति  में अंतर                                                                                                         हमे गर्व है हमारा जन्म भारत देश मे हुआ है जहा राम कृष्ण  महावीर बुद्ध गुरु नानक विवेकानन्द आदि महापुरुषो ने जन्म लिया है,जो आनन्दित जीवन जीने का रास्ता बताते है । मनुष्य जीवन मे दुख है ही नही,सिर्फ आनन्द ही आनन्द है,गीता रामायण वेद जैसे ग्रन्थ इस देश मे है जो हमे कठिन परिस्थितियो से आनन्द्पुर्वक निकलना सिखाते है प्रत्येक परिस्थ्ति अनुकूल हो या प्रतिकूल सब मे सम रहना सिखाते है,फिर इस देश मे एसा क्या हो गया सब और अराजकता भ्रष्टाचार चोरी ड्केती बीमारिया दिखाई पड रही है । आयुर्वेद की भाषा मे पुर्ण स्वस्थ परिवार तो क्या पुर्ण स्वस्थ व्यक्ति भी मिलना मुश्किल है उच्चरक्तचाप शुगर मोटपा माइग्रेन आदि आम बात हो गयी है। अधिकान्शत परिवारो मे एक या एक से अधिक इनके रोगी मिलना आम बात है।
     स्वस्थ परिवार स्वस्थ समाज से ही मजबूत देश बनता है ।
1881 मे ब्रिर्टिश सरकार ने भारत मे एक सर्वे कराया था । जिसमे 100 मे से 80 पूर्ण स्वस्थ थे। आयुर्वेद् की भाषा मे जो तन से मन से भी स्वस्थ, प्ररत्येक परिस्थिति मे सम रहते है । 10%को साल मे कोइ हल्की फुल्की बीमारिया हो जाती थी । 10% को ही बीमार माना गया । उससे पहले की अगर बात करे 300 -400 साल पहले तो लोग जानते ही नही थे बीमारिया होती क्या है ? केवल प्राकृतिक आपदा वाली बीमारिया होती थी । जैसे अत्यधिक वर्षा हो गयी या सुखा पड़ गया । उनसे होने वाली बीमारिया ज्यादा दिन नही रहती थी । ये केवल 20-30 दिन ही रहती थी ।
 15वी शताब्दी मे फ़्रान्स से  एक लेखक भारत आया था जब वह यहा से गया तो उसने आपनी डायरी मे लिखा – भारत के लोग बडे अनोखे है । वहा कोइ भिखारी नही है । सभी सम्पन्न है वहा किसी को बीमार भी नही देखा,सबसे विचित्र बात, कोइ भी कही जाता है अपने घर को खुला छोड़ जाता है ताला लगा कर नही जाते,वे जानते ही नही ताला कहते किसको है । जबकि यूरोप के देशो मे भिखारी और चोरो की भरमार है ।
100-150  सालो मे भारत मे एसा क्या हो गया चोरी भ्रष्टाचार अनेक गम्भीर बीमारियाँ भिखारी अविश्वास आदि सब बहुतायात मे आ गये । इसका क्या कारण है ?
हमने भारत की सभ्यता को छोड़ यूरोप की सभ्य्ता को अपनाया ।
भारत की सभ्यता मे और यूरोप की सभ्यता मे एक बहुत  बडा अन्तर है ।
उनकी संस्कृति भोग पर आधारित है
हमरी त्याग पर आधारित है
भोग की संस्कृति मे सिर्फ अपने स्वार्थ की महत्ता है हम सिर्फ अपने हित के बारे मे सोचते है चाहे दूसरे का कितना भी अहित हो जाये।
त्याग की संस्कृति मे हम सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान देते है । वह भी सिर्फ दूसरो के लिये करते है । किसी को कोई दुःख न पहुँचे सिर्फ सेवा का भाव होता है। दूसरो को सुख पहुँचा कर हमे असीम आनन्द की अनुभूति होती है । हम जो भी कर्म करते है परिवार व समाज या परमत्मा के लिये करते है जब अपने लिये कुछ करना ही नही तो गलत कार्य हमसे हो ही नही सकते, हमेशा दूसरो के बारे मे सोचते है। राम जब बनवास  गये महल छोड़ दिया महावीर बुद्ध ने अपना राजपाट छोड़,जंगल का कांटों भरा रास्ता चुना,तब उनको भगवान माना गया । भगत सिंह चन्द्रशेखर आजाद सुभाष चन्द्र बोस ये सब बड़े बाप के बेटे थे,चाहते तो जिन्द्गी भर एश का  जीवन जी सकते थे मगर इन्होने इनका त्याग कर दिया।
 भोग की संस्कृति मे सिर्फ़ तनाव मिलता है तनाव से बीमारियाँ आती है । अपने सुख के लिये धन के संग्रह मे लगे रहते है । लोभ के कारण गलत रास्ते अपनाते है । भोग की संस्कृति का ही परिणाम है आज बलत्कार भ्रष्टाचार बेइमानी आदि बड़ी तेजी से बढ़ रही है । परिवारो मे भी आपस मे प्रेम नही रहा,स्वार्थ के कारण पति-पत्नि, भाई-बहन, माँ –बाप तक की हत्या की खबरे मिलना आम बात है । इस भोग की संस्कृति के कारण हमारी मानसिकता विक्रत हो गयी है ।
 हमने बीना सोचे समझे युरोप की संस्कृति को अपना लिया । इसका एक कारण और है कुछ भूले हमारे पुर्वजो से हो गयी जिसका हमे भयंकर परिणाम भुगतना पड़ रहा है । 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था तब 127 विदेशी कम्पनियां हमारे देश मे थी । आजदी के बाद सभी को देश से जाना चाहिए था मगर सिर्फ़ ईस्ट इन्डिया कम्पनी को ही वापस भेजा गया क्योकि उसका पूरे देश मे विरोध था । 126 विदेशी कम्पनियों को यही रहने दिया गया और जितने भी ब्रिटिश सरकार ने भारतीयो पर शासन करने के लिये कानून बनाये थे। देश आजाद होने के बाद भी सारे कानून ज्यो के त्यो रहे । केवल सरकार का मुखोटा बदल गया । हमे एहसास दिलाया गया हम आजाद हो गये । यह मानना हमारी सबसे बड़ी भूल थी हम मानसिक रुप से भी गुलाम हो गये। विदेशी हमे पहले भी लूट रहे थे आज भी लूट रहे है 15 अगस्त 1947 से पहले सिर्फ़ 127 कम्पनिया थी आज 4000 से भी ज्यादा है । जो हमे कोल्ड ड्रिंक बर्गर चिप्स कुरकुरे आदि ख़िलाकर छोटेपन से ही हमारी आँतो का सत्यानास कर रही है । छोटी उम्र से ही बीमारियाँ शुरु हो जाती है । दो साल का बच्चा  चिप्स कुरकुरे कोल्ड ड्रिंक आदि ख़ाने –पीने लगता है । 15-20 साल का होते-होते उसको अनेक बीमारियाँ लग जाती है ।  जो उम्र कुछ कर दिख़ाने की होती है । वह तनाव व बीमारियों  के जाल मे फंस कर रह जाता है ।
 पूरे देश मे चाय का जहर फैल चुका है । चाय हमारे देश का पेय नही है । इसमे थीन टेनीन कैफ़िन नामक जहर होता है जो पेट मे कब्ज पैदा करता है ब्लड प्रेशर की सबसे ज्यादा समस्या का कारण चाय है। दिन की शुरुआत ही चाय से करते है । गाँव हो कस्बा हो या महानगर, लगता है चाय के बीना जिन्द्गी अधूरी है । जो बीमारियाँ सिर्फ़ शहरो मे सुनने मे आती थी अब गाँव मे भी कोई परिवार एसा मिलना मुश्किल है जिसे कोई गम्भीर बीमारी न हो,जहॉ दुध मटठा पिया जाता था मेहमनो को भी पिलाया जाता था आज उसका स्थान चाय ने ले लिया हम तो जहर पीएँगे तुम्हे भी पिलायेंगे ।
 सब जानते है सुबह उठ्ते ही पानी पीना फायेदेबन्द होता है । सारी रात की बनी हुयी लार हमारे पेट मे जाती है जो हमारे digestion को सही रखती है । शरीर के अन्दर बनने वाले विषैले पदार्थ मूत्र मार्ग से बाहर निकलते है ।
 हमारा रहन-सहन खान-पान शिक्षा सब यूरोपियन संस्कृति पर आधारित है तो हम अपने आप को आजाद कैसे कह सकते है पहले हम सिर्फ गुलाम थे जिसका हमे एहसास था हम गुलाम है हमे आजादी लेनी है । मगर     आज हम मानसिक रुप से गुलाम है और इसका हमे आभास भी नही है । यह गुलामी उस गुलामी से ज्यादा भंयकर  है । एक बार फिर इनके खिलाफ हमने आन्दोलन शुरु करना है । एक बार फिर वन्देमतरम की आवश्यकता है । भगत सिंह चन्द्रशेखर आजाद सुभाष चन्द्र बोष जैसे क्रांतिकारियों  की आवश्यकता है जो एक बार फिर आजादी का बिगुल फूंक सके । इस युरोपियन संस्कृति को भारत से भगाना है और भारतिय संस्कृति को अपनाकर भारत को फिर से निरोगी मजबूत राष्ट्र बनाना है ।             
                          जय हिन्द 

Sunday, 16 November 2014

cold cough ayurvadic treatment

                                                                                                                              ठण्ड के प्रभाव से होने वाले खांसी जुकाम आदि से बचना चाहते है तो आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करे ,
 1 -दालचीनी 10 ग्राम ,छोटी इलाइची  २० ग्राम , पीपल 40 ग्राम, वंशलोचन 80 ग्राम ,मिस्री 160 ग्राम ,
 इन  सबको  मिक्सी में पीस कर चूर्ण बना ले  और 1 tea spoon शहद  से मिला कर सुबह शाम  ले ,पुरानी से पुरानी खांसी इसके प्रयोग  से दूर हो हो जाती है ,
2 -प्रतिदिन  आधी चम्मच हल्दी दूध मिला कर लेने से आप ठण्ड  से तो बचे रहेंगे ,शरीर में होने वाले दर्द आदि को भी आराम पहुंचेगा ,
 आयुर्वेद अपनाए जीवन भर सुखी व् स्वस्थ रहे -जय श्री कृष्णा 

Saturday, 13 September 2014

tea side effects (in hindi)

                                                                                                                                                                                                                                                                                       आज जहा तक दृष्टि जाती है सब अस्वस्थ ही नजर आते है। आज के समय में स्वस्थ परिवार तो क्या स्वस्थ  व्यक्ति मिलना मुश्किल है। भारत जैसे देश में जहाँ परमात्मा का वरदान प्राप्त है। सभी सोलह प्रकार की जलवायु भारत देश में पायी जाती है. सबसे  ज्यादा सूर्य का प्रकाश यहाँ मिलता है। योग ध्यान अध्यात्म के गुरु यह ही पैदा हुए। आयुर्वेद सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।आयुर्वेद  कहता है रोग होते ही नहीं। फिर  हमारे देश में ऐसा  क्या हो गया. अधकांशत  अस्वस्थ हो गए। 1881  में ब्रिटिश गोवेर्मेंट ने पुरे देश में जनगणना करवाई थी जिसमे 80 % लोग पूर्ण स्वस्थ थे। उससे पहले देखे, 300 -400  साल पहले देखे तो कोई जानता ही नही था. बीमारी होती क्या है ? केवल  प्राकृतिक बीमारिया होती थी। जैसे कभी  सुख पड़ गया या अत्यधिक वर्षा होने के बाद मलेरिया हैजा आदि बीमारिया होती थी जो सिर्फ पंद्रह बीस दिन या एक महीने तक रहती थी जिसे प्रकर्ति का प्रकोप माना जाता था. ब्लडप्रेशर मधुमेह कब्ज माइग्रेन साइटिका  आदि  बीमारिया हमारे देश में होती ही नही थी. फिर हमारे देश में 100 -150  साल में ऐसा क्या हो गया जिसे देखो वह किसी न किसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित है. ब्लडप्रेशर  मधुमेह  थाइराइड घुटनो का दर्द माइग्रेन मोटापा तो आज आम बात है.

             आजादी के 58   सालो में जिस तेजी से परिवर्तन आया  है. बल्कि कहना होगा 1947  में भारत आजाद नहीं हुआ बल्कि भयंकर गुलाम बना। 1947  के बाद हम मानसिक रूप से गुलाम बने. 1947 से  पहले हम मानसिक रूप से शुद्ध भारतीय थे। जो काम अंग्रेजो ने  यहाँ रहते हुए नहीं किया वह उन्होंने यहाँ से जाने के बाद कर दिया।
 हमने बीना सोचे समझे अंग्रेजो की जीवन शैली अपनाई या कहना चाहिए हमारे ऊपर थोपी गयी।
सबसे  पहले चाय  के बारे में बात करते है.
  चाय हमारे देश में महानगर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रो तक जीवन  का आवश्यक अंग बन गयी है.दिन की शुरुआत हो,मेहमान आ  जाये या कोई भी समारोह हो. चाय के  बीना अधूरा लगता है अंग्रेजो ने भारत छोड़ने से पहले चाय का  इतना प्रचार किया। ग्रामीण क्षेत्रो तक में फ्री में स्टाल लगवाए।गली -गली मोहल्ले- मोहल्ले  में चाय फ्री में पिलवाई गई.सबको अच्छी लगी इसको पीने  के बाद स्फूर्ति व् ताज़गी का अनुभव होता है. मगर यह लाभप्रद न होकर अनेक दुर्गुणों से युक्त है अंग्रेजो के लिए यह एक medicine हो सकती है.जिस स्थान पर बहुत ज्यादा ठण्ड पड़ती है.जिनका ब्लडप्रेशर लो रहता है उनके  लिय यह एक medicine का काम करती है.यूरोप में आठ -आठ महीने सूर्य नहीं निकलता भयंकर ठण्ड पड़ती है. -30 डिग्री तक टेम्प्रेचर चला जाता है वहा चाय लाभदायक साबित हो सकती है मगर हमारे देश में कुछ जगहों को छोड़ दे तो टेम्प्रेचर सामान्य  रहता है.जिन लोगो का ब्लडप्रेशर हाई है या सामान्य है उन लोगो  लिए चाय slow poison है।
  चाय में तीन प्रकार के विष पाये जाते है.
 1 -थीन   2 -टेनिन    3 -कैफीन -                                                                                                                                                                              थीन -चाय पीने के बाद जो  आनन्द महसूस  होता है वह इसी थीन नामक विष के प्रभाव के कारण है.
                                                                                                                    टेनिन   - इस विष के द्वारा ही कब्ज होता है यह पाचन शक्ति को नष्ट  कर देता है। नींद को भी नष्ट करने की शक्ति इसमें ही होती है। इस विष के कारण ही चाय पीने के बाद ताजगी का अनुभव  होता है मगर कुछ समय बाद खुश्की  व थकान का  अनुभव होता  है। जिसके कारण और चाय पीने का मन करता है।
                                                                                                                  कैफीन-इसका प्रभाव शराब  तम्बाकू में पाये जाने वाले विष निकोटीन  के समान होता है यह दिल की धड़कनो को बढ़ाता है यह शरीर को निर्बल बनाता  है इसी विष के नशे से वशीभूत होकर व्यक्ति चाय का आदि बनता है।
 उपयुक्त  विषो के  होने  के कारण ही चाय का प्रभाव अत्यधिक उत्तेजना देने  वाला है आज जो ब्लडप्रेशर की भयंकर समस्या है इसका सबसे बड़ा कारण चाय के प्रचार की अधिकता है। चाय का नशा  अंदर ही  अपना कार्य करता है। और कुछ ही दिनों में शरीर को दीमक की तरह  खोखला बना देता है.
 चाय पीने से   मूत्र की मात्रा  में तीन गुना वृद्धि हो जाती है। शरीर की शुद्धि के लिए मूत्र का निकलना आवश्यक है मगर वह शरीर में बना रहता है जिसके कारण गठिया का दर्द ,गुर्दे मे पथरी,ब्लडप्रेशर आदि रोगो  का शिकार बनना पड़ता है।
 चाय के अत्यधिक  सेवन के कारण  टेनिन  एसिड के नशीले प्रभाव से पेट में बादी, गैस ,कब्ज,बदहजमी,नींद का न आना आदि रोग होते है। 
 चाय पीने से दाँत पीले  हो जाते है। 
 नेत्रो के भी कई रोग पैदा हो जाते है। 
गरीब से अमीर तक चाय जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। भोजन मिले या न मिले मगर चाय  अवश्य मिलनी चाहिए। चाय के अवगुणो को देखते हुए इस विनाशकारी चाय का तुरंत त्याग कर  देना चाहिए। चाय छोड़ते ही कई बीमारिया स्वतः ही समाप्त हो जाएगी। 
     
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Thursday, 4 September 2014

constipation ayurvedic treatment (in hindi)

                          
कब्ज (constipation) को बीमारियो की माँ कहा जाता है अधिकांशत रोग कब्ज के कारण होते है.आचार विचार खान पान उचित न होने के कारण कब्ज पैदा होता है। कब्ज के कारण जोड़ो का दर्द मधुमेह  ब्लडप्रेशर मोटापा आदि रोगो की शुरुआत होती है आज भारत में ही नही वरन पुरे विश्व मे यह रोग बढ़ता जा रहा है जब तक हम अपना खान पान नही सुधारते यह रोग दवाइयों से सही होने वाला नही है हमे अपनी जीवनशैली भारतीय प्राचीन धरोहर आयुर्वेद के अनुसार करनी होगी उससे हम निरोगी ही नही वरन जीवन भी  आनंदमय हो जाता है.
 पहले यह सिर्फ वृद्धो  को ही होता था क्योकि वह श्रम कम करते थे तो उन्हे पित्त कम बनता था पित्त कम बनेगा तो भोजन कम पचेगा।मगर आज यह रोग प्रतियेक उम्र के व्यक्ति में है.परिश्रम तो कम करते है वरन गरिष्ठ  भोजन खाते रहते है छोटी उम्र से रोग शुरू हो जाते है.हमे अपनी खान पान की आदते सुधारनी होगी।
                      कब्ज (constipation)से कैसे बचे  
1 -भोजन करते समय 32  बार चबाये। भोजन जब पेस्ट बनकर आमाशय मे पहुंचेगा तो जल्दी पचेगा। 32 बार कैसे चबाये प्रत्येक गस्से के साथ गिनती करना संभव नही.प्रत्येक गस्से के साथ इस मंत्र का दो बार जप करे।
         हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे 
                     हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे 
इस मंत्र मे 16 शब्द है दो बार में 32 हो जायेगे। इस मंत्र का प्रत्येक गस्से के साथ दो बार उच्चारण करे तो 32 बार चबाना भी हो गया और भोजन भी भजन  बन गया।
2 -पानी भोजन करने से एक घंटा पहले पीना चाहिए और  भोजन करने के 2 घंटे   बाद  पानी पीना चाहिए।
3 -ठंडा पानी का सेवन नही करना चाहिए यह हमारी अग्नि  मंद करता है.पाचन क्रिया  मंद हो जाती है.कब्ज बढ़ने  लगता है।
4 -भोजन सुखासन की स्थिति में जमीन पर बैठ कर करना चाहिए।
                                  
सुखासन की स्थिति मे आमाशय में अग्नि तेज होती है जिसके कारण भोजन तेजी  से पचता है। और शरीर मे लचक बनी रहती है घुटने के   दर्द की  समस्या भी बहुत कम हो जाती है.थोड़े से अभ्यास से सुखासन की स्थिति में बैठ सकते है. भोजन का आनंद ले सकते है।
5 -6 घंटे से पहले दूसरा भोजन नही करना  चाहिए।भोजन आमाशय  मे पहुंचकर उसका पेस्ट  बनता बनता है
पेस्ट से रस बनता है रस से मांस मज्जा वीर्य मल मूत्र मेधा अस्थि बनते बनते है। इस  प्रक्रिया में लगभग 6 घंटे का समय लगता है। बीच में सिर्फ कितना भी पानी पी सकते है। मान लो आप किसी बर्तन मे दाल पका रहे है वह 30 मिनट मे पकती है आप प्रतियेक 5 मिनट बाद उसमे दाल डालते जायेगे तो वह वह दाल भी नहीं गलेगी और पहले से पड़ी हुयी दाल भी ठीक प्रकार से नही गलेगी इसी प्रकार जब तक हमारा भोजन ठीक प्रकार से  पच न जाय तब तक हमे दूसरा भोजन नही करना चाहिए।
6 -दोपहर का भोजन करने के बाद 30 से 60 मिनट आराम करना चाहिय। रात्रि में भोजन के बाद टहलना चाहये व  भोजन करने के 2 घंटे बाद सोना चाहिए।
7 -हमे मैदा से बनी हुए भोज्य पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए।चाउमिन पिज्जा बरगर ब्रेड आदि का सेवन नही  चाहिए। ये आंतो  चिपक जाते है और  कब्ज पैदा करते है।
8 -भोजन जब भी करने बैठे प्रसन्नचित होकर करे। क्रोध मे आकर कभी भोजन नही करना चाहिए।
  उपरोक्त सूत्रों  को अगर हम अपने जीवन मे उतारने का प्रयास करे तो कब्ज  की शिकायत से  जिंदगी  भर दूर रहेंगे और निरोगी आनंदित जीवन जिएंगे 
                   कब्ज नाशक आयुर्वेदिक उपचार 
1-दिन मे जितनी  बार भी पानी पिए गर्म पानी का सेवन करे। दो महीने तक गर्म पानी का नियमित सेवन करने से  कब्ज दूर   हो जाता है। 
2 -सनाय सोफ मिश्री तीनो 100 -100 ग्राम लेकर चूर्ण बना ले। रात्रि सोते समय गर्म पानी से इसका प्रयोग करे। 
3 -छोटी हरड़ 100 ग्राम अजवायन 100 ग्राम सोफ 50 ग्राम काला नमक 50 ग्राम इन चारो को  पीसकर चूर्ण बना 100 ग्राम मेथीदाना मोटा दरदरा पीस कर चूर्ण मे मिला ले ,इस  चूर्ण को सोते समय गर्म पानी से सेवन करे। सुबह पेट अच्छा साफ होता है.यह मधुमेह रोगी के लिये भी अति उत्तम है.
4-छोटी हरड़ और काला नमक १००-१००  ग्राम लेकर चूर्ण बना ले और रात्रि में दो चम्मच गर्म पानी से सेवन करे सुबह दस्त होकर पेट साफ हो जायेगा।
5-गर्म पानी में निम्बू का रस शहद मिला कर पीने से सुबह पेट खुलकर साफ होता है कुछ ही दिनों में पुराने  से पुराना कब्ज दूर हो जाता है.
6-दो चम्मच ईसागबोल और दो चम्मच मिस्री इसको रात्रि में एक गिलास पानी भिगो कर रख दे. सुबह  उठते ही पी ले.
7-तीन अंजीर रात्रि में भिगो कर रख दे सुबह उठकर वह अंजीर खा कर पानी पी ले।
8-२० ग्राम त्रिफला रात्रि को ५०० ml पानी में भिगो कर रख दो. सुबह उठते  ही वह पानी पी लो। कुछ ही दिनों में कब्ज की शिकायत दूर हो जायगी।
9-अमरुद पपीता कब्ज के लिए बहुत लाभदायक है किसी भी समय इसको खा सकते है।
10-किशमिश रात्रि में भीगो कर रख दे सुबह किशमिश खाकर पानी पी ले.
11-सुबह उठने के बाद गरम पानी में निम्बू शहद काला नमक मिलाकर पीना फायदेबंद है. यह मोटापा भी कम करता है।


























Tuesday, 29 July 2014

मन का रोग ही शारीरिक रोगो का कारण है

                                           
  सबसे विकट रोग है मन का रोग। मन अस्वस्थ है तो शरीर भी अस्वस्थ है। शरीर के रोग मनुष्य के मरने के बाद मर जाते है परन्तु मन के रोग मरने  बाद भी संस्काररूप  से साथ जाते है। इसी से देखा है कोई बच्चा जन्म से ही शान्तप्रकर्ति का होता है.                                                                                                                                                                                                                                                                                              कोई बड़ा क्रोधी होता है। काम क्रोध लोभ मोह राग अभिमान हिंसा आदि मन के रोग है। शारीरिक रोगो की उत्पत्ती का कारण भी ये ही मन के  रोग है।                                                                                                                                                                                                                                                                             अनाचार असंयम असदाचार खान -पान की खराबी अनियमित जीवन आदि  रोगो  का कारण है उन में मन का रोग ही प्रधान कारण है।                                                                                                                                                                                                                                                                                                   बाहरी दवाओ से रोग नहीं मिटते वरन बढ़ते है बड़ी -बड़ी अौषध -निर्माण  कारखाने और   अौषधविस्तार के विज्ञापन रोग बढ़ाते है घटाते नही।                                                                                                                                                                                                                                                                                        रोग सिर्फ मन के विकार मिटाने से मिटता है। मन स्वस्थ -शरीर स्वस्थ

Wednesday, 23 July 2014

Healthy quotes in hindi

                                                                                                         1 -प्रतिदिन सूर्योदय  से पूर्व सोकर उठे। रात्रि में जल्दी सोये।
2 -प्रतिदिनं नियमित रूप से योगा मैडिटेशन करे। 
3 -प्रतिदिन सुबह उठते ही एक से दो गिलास पानी पीना चाहिए। पानी घूँट -घूँट  चाहिए। 
4 -सुबह उठते ही मुहँ की लार आँखों में काजल की तरह लगानी चाहिए। इससे आँखों की रोशनी तेज रहती है। 
5 -भोजन करने के बाद या बीच में पानी नहीं पीना चाहिए। पानी भोजन करने के एक से डेढ़ घंटे बाद पीना चाहिए। 
6 -दोपहर में भोजन करने के बाद बीस मिनट तक आराम करना चाहिए। रात्रि में भोजन करने के बाद पांच सो से हजार कदम चलना चाहिए। 
7 -रात्रि में कभी दही का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 
8 -दही  के  बाद कभी दूध का प्रयोग नही करना चाहिए।
9 -अपने  दिन की शुरुआत धार्मिक ज्ञानवर्धक साहित्य  से करनी चाहिए।
10-भोजन हमेशा जमीन पर बैठ कर करना चाहिए। जमीन पर बैठकर भोजन करने से भोजन जल्दी पचता है।  
11 -दूध पीने  के बाद कभी नमका नही खाना चाहिए।
12 -रिफाइंड डालडा घी का प्रयोग कम से कम  करना चाहिए। ये हमारा कोलस्ट्रोल बढ़ाता है। 
देसी गाय का घी लाभदायक होता है। 
13 -ब्रेड पिज़्ज़ा बर्गेर आदि जो आटे को सड़ा कर बनते है उन्हें कभी नहीं खाना चाहिए ये आंतो मे चिपक जाते है और कब्ज पैदा करते है। . 
14-दही  नमक मिला कर नही खाना चाहिए। एक कप दही मे लगभग एक लाख जीवाणु होते है जो हमारे शरीर के लिए बहुत फयदेमन्द है.नमक डालते ही वह जाते है.दही में अगर बुरा मिला कर खाए बहुत फायदेमंद होता है.दही में  मिलते ही जीवाणु की संख्या डबल हो जाती है। 
15 -जहा तक संभव हो हँसते रहो खुश रहो। स्वस्थ रहने की  अनमोल दवाई है।     

Friday, 11 July 2014

my life my health (in hindi)

         
    सभी मनुष्य स्वस्थ रहना चाहते है। मगर प्रकृति के नियमो का पालन  न करने के कारण हमारे अंदर रोग आते है कुछ बीमारी तो ऐसी होती है जो मृत्यु तक साथ देती है। इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में अपने लिए समय ही नहीं होता। डॉक्टर के पास जाते है वह कहता है जिंदगी भर गोली खानी पड़ेगी।रोग और गोली साथ -साथ चलती रहती है। रोग बढ़ते रहते है गोली भी बढ़ती रहती है।मगर हम निरोगी नहीं हो पाते। आज डायबटीज ब्लड प्रेशर माइग्रेन डिप्रेशन मोटापा  कब्ज आदि भयंकर रोगो से अधिकांशत लोग पीड़ित है।
  हम अपना खाना और पीना प्रकृति के नियमो के अनुसार करे तो  जीवन भर निरोगी रह सकते है ।वैसे तो सैकड़ो नियम है। मगर हम कुछ आसान से नियमो  का पालन करे। तो हम जिंदगी भर निरोगी रह  सकते है। डायबटीज  ब्लड -प्रेशर मोटापा डिप्रेशन आदि रोगो   आसानी से छुटकारा  जा सकता है
       नियम -1-- खाना खाते समय पानी नहीं पीना  
 खाना खाते समय और खाना खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए। अधिकांशतः यह सभी जानते है मगर उसके बाद भी खाना खाते समय पानी लेकर बैठते है और कुछ तो कई गिलास पानी पीकर शरीर का नाश कर लेते है। कई भयंकर रोग पैदा हो जाते है।
               आखिर पानी क्यों नही पीना चाहिए।
हम जो कुछ भी खाते है वह सीधा आमाशय में  जाता है आमाशय को जठराग्नि भी कहा जाता है। हमने कुछ खाया वह आमाशय में गया. आमाशय में खाना पहुँचते ही अग्नि उत्पन्न  होती है। यह हमारे शरीर की एक व्यवस्था है। जैसे ही हमने कुछ खाया आमाशय में अग्नि उत्पन्न हुयी। अग्नि के उत्पन्न होते ही खाने के पचने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। खाना खाने के बाद या बीच में हम पानी पीते है तो पानी पीते ही अग्नि बुझ जाती है और खाना पचने की प्रक्रिया रूक जाती है। खाना पचने के स्थान पर सड़ना शुरू हो जाता है। यहा से शुरू होता है रोगो का जन्म, आपको yuric acid , LDL और VLDL आदि जहर बनना शुरू हो जाता है 
                          यूरिक एसिड बढ़ने से क्या  होता है ?                                                                                                             
यूरिक एसिड बढ़ने से शरीर के छोटे जोड़ो में दर्द शुरू  जाता है सुबह जब हम सो कर उठते है पैर हाथो की उंगलियो अंगूठो में हलकी हलकी चुभन जैसा दर्द महसूस देता है घुटनो के जोड़ो में दर्द,यह सब यूरिक एसिड बढ़ने से होता है।  यूरिक एसिड जब रक्त के साथ शरीर के अन्य स्थानो में पहुंच जाता है। खासतौर पर हड्डियो के संधि भागो  जाकर रावो के रूप मे  जमा जाता है यह  देता है शरीर में जोड़ो का दर्द, जिसे गाउट कहते है। गुर्दे की  पथरी डायबटीज़ आदि रोग भी यूरिक एसिड बढ़ने से होती है।
  LDL(low density lipoprotein) से कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है। आप जानते है कोलस्ट्रोल बढ़ने से क्या होता है ?कोलस्ट्रोल बढ़ने से मोटापा ब्लडप्रेशर डाइबटीज आदि रोग बढ़ने लगते है।
VLDL(very low density lipopritein)ये LDL से ज्यादा खतरनाक है ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है जिसका सीधा असर ह्रदय  पर  पड़ता है।  और heart attack भी पड़ने की सम्भावना रहती है।
 yuric acid LDL,VLDL आदि  एक तरह का जहर है। जो खाना सड़ने के बाद शरीर में पैदा होता है।
 अगर आपको कोलस्ट्रोल मोटापा शरीर के किसी हिस्से में दर्द,ब्लड प्रेशर  का बढ़ना आदि कोई  भी रोग  आपको होता है  तो समझो  आपका खाना पच नही रहा  है।
 पानी कब पीना चाहिए-खाना खाने के 90 मिनट बाद पानी पीना चाहिए।क्योकि जो आपने खाया है उसका पेस्ट बनने में 90 मिनट का समय लगता है।और उस समय पानी  की आवश्यकता होती है। आप कितना भी पानी पी सकते है। खाना खाने से पहले 48 मिनट पहले पानी  पीना चाहिए। क्योकि पानी को मूत्रपिंड तक पहुचने में 48 मिनट का समय लगता है।
      नियम -2 -खाना 32 बार चबाकर खाए    
   खाना धीरे -धीरे 32 बार चबाकर खाना चाहिए।  खाना आमाशय में जितना पेस्ट होकर के पहुंचेगा उतनी आसानी से पचेगा।32 बार कैसे चबाये ? एक तो आप काउंटिंग कर सकते है। दो -तीन दिन में आपको आदत पड़ जाएगी दूसरा एक आसान तरीका है.भोजन भी आपका भजन बन जायेगा।
  हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे----हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे।
इस भजन में 32 शब्द  है। खाना खाते समय प्रत्येक गस्से के साथ  इस महामंत्र का दो बार  जप करे । 32 बार चबाना भी हो जायेगा और भजन भी हो जायेगा।
 नियम-3 --पानी हमेशा घूँट घूँट  पीना 
  पानी घूँट -घूँट पीना चाहिए।जितने भी पशु पक्षी होते है वे सभी पानी घूँट  -घूँट पिटे है गटागट पानी नहीं  चाहिए। यह जानवरो पक्षियों को जन्म से पता है।  मनुष्य अपने आप को समझदार मानता है मगर उसको इतनी मामूली समझ  नहीं है। पानी घूँट -घूंट पीना चाहिए। गटागट पानी  पीने से वह अपना कितना बड़ा नुकसान कर लेता है। पानी क्यों घूँट -घूँट पीना चाहिए ? हमारे मुँह  के अंदर एक लाख लार ग्रन्थियां (salivary gland) होती है जो जो 24 घंटे लार बनाती  है  जब हम पानी धीरे -धीरे पीते है तो लार भी पेट में जाती है। पानी हम गटागट पी जाते है  बहुत कम पेट  जाती है लार भगवान  की दी हुयी medicine है। ये हमारा digestion सही रखने में मदद करती है और कई बीमारिया भी  नियंत्रण में रहती है। इसका उत्पादन 24 घंटे होता रहता है घूँट -घूँट पानी पीने से मोटापा भी कम होता है।
  नियम -4 -सुबह उठते ही पानी पीना 
     
सुबह उठते ही सबसे पहला काम पानी पीने का  करना चाहिए। पानी घूँट -घूँट ही पीना है। पानी पीने से पहले कुल्ला नही करना चाहिए। जब हम सुबह सोकर उठते है तो हमारे मुँह में सारी रात की बनी लार होती है.सुबह की लार स्वास्थ्य के   लिए बहुत लाभदायक होती है हमे कई रोगो से  बचाती है। इसको हम आँखो में काजल की  तरह लगाए तो आँखों की रोशनी बढ़ती है किसी प्रकार की चोट या जख्म पर लगाए तो चोट भी सही हो   जाती है। जब  सुबह  पानी पीते है  तो सारी रात की बनी लार भी पानी के  साथ अंदर जाती है. जो हमे कब्ज दमा जोड़ो में दर्द कैंसर आदि रोगो से बचाती है। सारे  दिन ताजगी  रहती है।

Tuesday, 1 July 2014

srimadbhagavad geeta secret of happy life capter1------- verse1 (in hindi)

                                   

             श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 1) 


  

(श्लोक  1)             धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे       समवेता   युयुत्स्व:
                                   मामका: पाण्डवा श्रेच्व किमकुर्वत संजय      

       धृतराष्ट्र बोले - हे संजय धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पाण्डु पुत्रो ने क्या किया ?
    ध्रतराष्ट्र आँख से  नहीं देख सकते   थे। आँख से नहीं देख सकने का मतलब यह नहीं है कि मोह  ख़त्म हो जाता है आँखों  को मन का द्धार कहा जाता है। आँखों से हम देखते है तो  हम  संसार में  जाते है और संसार में खो जाते है और हमारे अंदर कामनाये उठनी शुरू हो जाती है।    चेतना जाग्रत हो जाती है जब हम नींद में होते है हम अचेतन हो जाते है शिथिल हो जाते है। मगर हम आँखों से कहा देखते है। हम आँख के माध्यम से देखतें है अगर   आँखो तक जीवन धारा न पहुंचे तो  देख नहीं सकते आँख तो सिर्फ देखने का जरिया मात्र है। महत्पूर्ण आँखे नहीं है वह जीवन  है जिसके द्वारा हमारे हाथ पैर आँख मस्तिषक आदि काम करते है शरीर  जिस अंग में जीवनधारा बहनी बंद हो जाती है वही अंग हमारा निष्क्रिय  है।
 वह सिर्फ देख नहीं पाते उनकी मन की आँखे खुली हुयी है जब वे जाग्रत अवस्था में होते है तो चेतना भी जाग्रत होती है। उनके सभी पुत्र युद्धभूमि में है। अपने पुत्रो को लेकर वह चिंतित है वह जानना चाहते है। धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में क्या हो रहा है जिस भूमि पर युद्ध हो रहा हो उसे उसे धर्मभूमि कैसे कहा जा सकता है जहा धर्म होता है वहां युद्ध नहीं हो सकता जहाँ युद्ध होता है वहां धर्म नहीं हो सकता। आज धर्म के नाम पर सबसे ज्यादा झगडे होते है युद्ध होते है. उन्हें हम धर्मयुद्ध  कैसे कह सकते है। यह  सिर्फ धर्म के नाम पर अपने अहंकार को तृप्त करना है. जो धार्मिक होगा।उसके मन में युद्ध तो क्या गलत विचार भी नहीं आ सकते ,धार्मिक वही हो  सकता है जो सरल हो गया है.  युद्ध कभी धार्मिक नहीं होता वह तो हमेशा अपने अहम की तृप्ति के   लिए होता है  युद्ध का जन्म ही अहंकार से होता है।
   इस बात को ध्रतराष्ट्र नही जानते ऐसा नहीं है। कुरुक्षेत्र को उन्होंने धर्मभूमि कहा है। कुरुक्षेत्र आज भी हरियाणा राज्य में है। यहा प्राचीन काल में ऋषि मुनियो ने तप किया था। धर्मभूमि कहने से उनका प्रायोजन यह भी हो सकता है कि दुर्योधन  को हो सकता है वहा बुद्धि आ गयी हो उसने अपनी हठ छोड़ दी हो या धर्मराज युधिष्ठिर ने युद्ध का निर्णय बदल दिया हो। उनकी व्याकुलता किसी से छिपी नहीं थी जब हम अधर्म के मार्ग पर चलते है तो भय भी हमारे व हमारे अपने के साथ रहता है अगर कोई अपराधिक प्रवर्ति का है उसके मन में  किसी कोने में भय छिपा ही रहता है मगर उसके जो अपने  होते है माँ -बाप,पत्नी आदि वह भी प्रत्येक पल भय मे जीते है। यहा धृतराष्ट्र भी भयभीत है वह जानते थे दुर्योधन अधर्म के रस्ते पर चल रहा है अधर्म के राह पर चलने वाले का पतन निश्चित है वह चाहे कितना ही बलशाली क्यों न हो। पुत्र मोह के कारण उसके गलत कार्यो का विरोध न   करना उन्हें भयभीत कर रहा है। 

     अपने बच्चो को उचित संस्कार देना। सही गलत का ज्ञान देना। यह माँ -बाप का फर्ज है।
















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