भारतीय संस्कृति व यूरोपियन संस्कृति में अंतर हमे गर्व है हमारा जन्म भारत देश मे हुआ है जहा राम कृष्ण महावीर बुद्ध गुरु
नानक विवेकानन्द आदि महापुरुषो ने जन्म लिया है,जो आनन्दित जीवन जीने का रास्ता
बताते है । मनुष्य जीवन मे दुख है ही नही,सिर्फ आनन्द ही आनन्द है,गीता रामायण वेद
जैसे ग्रन्थ इस देश मे है जो हमे कठिन परिस्थितियो से आनन्द्पुर्वक निकलना सिखाते
है प्रत्येक परिस्थ्ति अनुकूल हो या प्रतिकूल सब मे सम रहना सिखाते है,फिर इस देश
मे एसा क्या हो गया सब और अराजकता भ्रष्टाचार चोरी ड्केती बीमारिया दिखाई पड रही
है । आयुर्वेद की भाषा मे पुर्ण स्वस्थ परिवार तो क्या पुर्ण स्वस्थ व्यक्ति भी मिलना
मुश्किल है उच्चरक्तचाप शुगर मोटपा माइग्रेन आदि आम बात हो गयी है। अधिकान्शत
परिवारो मे एक या एक से अधिक इनके रोगी मिलना आम बात है।
स्वस्थ परिवार स्वस्थ समाज से ही मजबूत देश बनता है ।
1881 मे ब्रिर्टिश सरकार ने भारत मे एक सर्वे कराया था । जिसमे 100 मे
से 80 पूर्ण स्वस्थ थे। आयुर्वेद् की भाषा मे जो तन से मन से भी स्वस्थ, प्ररत्येक परिस्थिति मे सम रहते है । 10%को साल मे कोइ हल्की फुल्की बीमारिया हो
जाती थी । 10% को ही बीमार माना गया । उससे पहले की अगर बात करे 300 -400 साल पहले
तो लोग जानते ही नही थे बीमारिया होती क्या है ? केवल प्राकृतिक आपदा वाली
बीमारिया होती थी । जैसे अत्यधिक वर्षा हो गयी या सुखा पड़ गया । उनसे होने वाली
बीमारिया ज्यादा दिन नही रहती थी । ये केवल 20-30 दिन ही रहती थी ।
15वी शताब्दी मे फ़्रान्स से एक लेखक भारत आया
था जब वह यहा से गया तो उसने आपनी डायरी मे लिखा – भारत के लोग बडे अनोखे है । वहा
कोइ भिखारी नही है । सभी सम्पन्न है वहा किसी को बीमार भी नही देखा,सबसे विचित्र
बात, कोइ भी कही जाता है अपने घर को खुला छोड़ जाता है ताला लगा कर नही जाते,वे
जानते ही नही ताला कहते किसको है । जबकि यूरोप के देशो मे भिखारी और चोरो की भरमार
है ।
100-150 सालो मे भारत मे एसा क्या हो गया चोरी
भ्रष्टाचार अनेक गम्भीर बीमारियाँ भिखारी अविश्वास आदि सब बहुतायात मे आ गये । इसका
क्या कारण है ?
हमने भारत की सभ्यता को छोड़ यूरोप की सभ्य्ता को अपनाया ।
भारत की सभ्यता मे और यूरोप की सभ्यता मे एक बहुत बडा अन्तर है ।
उनकी संस्कृति भोग पर आधारित है
हमरी त्याग पर आधारित है
भोग की संस्कृति मे सिर्फ अपने स्वार्थ की महत्ता है हम सिर्फ अपने
हित के बारे मे सोचते है चाहे दूसरे का कितना भी अहित हो जाये।
त्याग की संस्कृति मे हम सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान देते है । वह भी सिर्फ
दूसरो के लिये करते है । किसी को कोई दुःख न पहुँचे सिर्फ सेवा का भाव होता है।
दूसरो को सुख पहुँचा कर हमे असीम आनन्द की अनुभूति होती है । हम जो भी कर्म करते
है परिवार व समाज या परमत्मा के लिये करते है जब अपने लिये कुछ करना ही नही तो गलत कार्य हमसे हो ही नही सकते, हमेशा दूसरो के बारे मे सोचते है। राम जब
बनवास गये महल छोड़ दिया महावीर बुद्ध ने
अपना राजपाट छोड़,जंगल का कांटों भरा रास्ता चुना,तब उनको भगवान माना गया । भगत
सिंह चन्द्रशेखर आजाद सुभाष चन्द्र बोस ये सब बड़े बाप के बेटे थे,चाहते तो जिन्द्गी
भर एश का जीवन जी सकते थे मगर इन्होने
इनका त्याग कर दिया।
भोग की संस्कृति मे सिर्फ़
तनाव मिलता है तनाव से बीमारियाँ आती है । अपने सुख के लिये धन के संग्रह मे लगे
रहते है । लोभ के कारण गलत रास्ते अपनाते है । भोग की संस्कृति का ही परिणाम है आज
बलत्कार भ्रष्टाचार बेइमानी आदि बड़ी तेजी से बढ़ रही है । परिवारो मे भी आपस मे
प्रेम नही रहा,स्वार्थ के कारण पति-पत्नि, भाई-बहन, माँ –बाप तक की हत्या की खबरे
मिलना आम बात है । इस भोग की संस्कृति के कारण हमारी मानसिकता विक्रत हो गयी है ।
हमने बीना सोचे समझे युरोप की
संस्कृति को अपना लिया । इसका एक कारण और है कुछ भूले हमारे पुर्वजो से हो गयी
जिसका हमे भयंकर परिणाम भुगतना पड़ रहा है । 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था तब
127 विदेशी कम्पनियां हमारे देश मे थी । आजदी के बाद सभी को देश से जाना चाहिए था
मगर सिर्फ़ ईस्ट इन्डिया कम्पनी को ही वापस भेजा गया क्योकि उसका पूरे देश मे विरोध
था । 126 विदेशी कम्पनियों को यही रहने दिया गया और जितने भी ब्रिटिश सरकार ने भारतीयो
पर शासन करने के लिये कानून बनाये थे। देश आजाद होने के बाद भी सारे कानून ज्यो के
त्यो रहे । केवल सरकार का मुखोटा बदल गया । हमे एहसास दिलाया गया हम आजाद हो गये ।
यह मानना हमारी सबसे बड़ी भूल थी हम मानसिक रुप से भी गुलाम हो गये। विदेशी हमे
पहले भी लूट रहे थे आज भी लूट रहे है 15 अगस्त 1947 से पहले सिर्फ़ 127 कम्पनिया थी
आज 4000 से भी ज्यादा है । जो हमे कोल्ड ड्रिंक बर्गर चिप्स कुरकुरे आदि ख़िलाकर
छोटेपन से ही हमारी आँतो का सत्यानास कर रही है । छोटी उम्र से ही बीमारियाँ शुरु
हो जाती है । दो साल का बच्चा चिप्स
कुरकुरे कोल्ड ड्रिंक आदि ख़ाने –पीने लगता है । 15-20 साल का होते-होते उसको अनेक
बीमारियाँ लग जाती है । जो उम्र कुछ कर
दिख़ाने की होती है । वह तनाव व बीमारियों
के जाल मे फंस कर रह जाता है ।
पूरे देश मे चाय का जहर फैल
चुका है । चाय हमारे देश का पेय नही है । इसमे थीन टेनीन कैफ़िन नामक जहर होता है
जो पेट मे कब्ज पैदा करता है ब्लड प्रेशर की सबसे ज्यादा समस्या का कारण चाय है। दिन
की शुरुआत ही चाय से करते है । गाँव हो कस्बा हो या महानगर, लगता है चाय के बीना
जिन्द्गी अधूरी है । जो बीमारियाँ सिर्फ़ शहरो मे सुनने मे आती थी अब गाँव मे भी
कोई परिवार एसा मिलना मुश्किल है जिसे कोई गम्भीर बीमारी न हो,जहॉ दुध मटठा पिया
जाता था मेहमनो को भी पिलाया जाता था आज उसका स्थान चाय ने ले लिया हम तो जहर
पीएँगे तुम्हे भी पिलायेंगे ।
सब जानते है सुबह उठ्ते ही
पानी पीना फायेदेबन्द होता है । सारी रात की बनी हुयी लार हमारे पेट मे जाती है जो
हमारे digestion को सही रखती है । शरीर के अन्दर बनने वाले विषैले पदार्थ मूत्र मार्ग से बाहर निकलते है ।
हमारा रहन-सहन खान-पान शिक्षा सब यूरोपियन
संस्कृति पर आधारित है तो हम अपने आप को आजाद कैसे कह सकते है पहले हम सिर्फ गुलाम
थे जिसका हमे एहसास था हम गुलाम है हमे आजादी लेनी है । मगर आज हम मानसिक रुप से गुलाम है और इसका हमे
आभास भी नही है । यह गुलामी उस गुलामी से ज्यादा भंयकर है । एक बार फिर इनके खिलाफ हमने आन्दोलन शुरु करना है । एक बार फिर
वन्देमतरम की आवश्यकता है । भगत सिंह चन्द्रशेखर आजाद सुभाष चन्द्र बोष जैसे क्रांतिकारियों की आवश्यकता है जो एक बार फिर आजादी का बिगुल फूंक सके । इस
युरोपियन संस्कृति को भारत से भगाना है और भारतिय संस्कृति को अपनाकर भारत को फिर
से निरोगी मजबूत राष्ट्र बनाना है ।
जय हिन्द
No comments:
Post a Comment