Thursday, 30 June 2016

eye side weak solution (in hindi)

               Image result for beautiful eyes                                                                          आँखो  हमारे शरीर का अनमोल महत्वपूर्ण अंग है जरा सोचिए आँखो के बिना यह जीवन कैसा होगा कल्पना मात्र से ही रुह काँप जाती है आज जब हम देखते है छोटे छोटे बच्चो के चश्मे लग रहे है चश्मा का उपयोग नेत्र रोग का विकल्प नही है बल्कि इसका उपयोग करके हम सदा के लिए चश्मे के गुलाम हो जाते है । अगर हम आँखों के प्रति थोड़ा सा भी सजग रहे और थोड़ा सा नियमो का प्रतिदिन पालन करे तो आँखें जीवन भर स्वस्थ रह सकती है।
1 –सुबह उठकर सर्वप्रथम मुहँ की राल (saliva) को आँखों मे काजल की तरह से लगाए इसके बाद ही पानी पानी पिए ।
2- प्रतिदिन मुँह  मे पानी भरकर आँखों मे 40 – 50 बार छीटा मारकर धोए । इसे आँखो का स्नान कहते है इसे कम से कम दिन मे में 3 -4 बार अवश्य करे । पढ़ाई करते समय कम्प्यूटर पर कार्य करते समय आँखों मे थकान महसूस दे तो ताजे पानी से इसी प्रकार आँखों को स्नान कराए ।
3- नेत्रो का व्ययाम – अपनी पलको को तेजी से  बंद करे और खोले एक समय मे 4 – 5 बार । करे व इससे आँखों की थकान दूर होती है ।
4- पैरो के तलवो की सरसो के तेल से मालिश करे और पैरो के अंगुठो के नाखून मे सरसो का तेल डाले । इससे नेत्र ज्योति बढती है ।
5- 100ग्राम बादाम की गिरी   100ग्राम सोंफ      100ग्राम मिश्री
इन तीनो को पिसकर  चूर्ण बना ले । इसका सुबह और रात्रि सोते समय एक छोटा चम्मच खाये । इस प्रयोग से आँखों की रोशनी भी बढ़ती है और आँखें स्वस्थ भी रहती है । 
6- रात्रि मे त्रिफला चूर्ण पानी मे भीगो कर रख दे प्रातः पानी को छानकर आँखे धोए
आँखों की करे देखभाल
1-तेज धुप से बचने के लिए चश्मे का प्रयोग करे । छाया मे चश्मे का प्रयोग न करे।
2-पढ़ते समय पुस्तक आँखों से एक फिट की दूरी पर रखनी चाहिए । बीच – बीच मे 30 सैकिंड के लिए आँखे बंद कर ले और धीरे – धीरे खोले  इससे आँखों को विश्राम मिलता है ।
3-सिर पर गर्म पानी न डाले । न ही आँखों को गर्म पानी से धोए ।
4-किसी दुसरे व्यक्ति के चश्मे का प्रयोग न करे और न ही अत्यन्त तेज प्रकाश, बल्ब, सुर्यग्रहण चन्द्रग्रहण्को लगातार देखे ।
5-अगर आँख मे कुछ गिर गया हो तो आँख को कभी न रगड़े।बल्कि किसी चोड़े बर्तन मे पानी भर कर उसमे आँख को बार –बार खोले बन्द करे ।
6- हरी घास पर चलना व हरियाली देखना आँखों के लिए लाभप्रद है।
7-नेत्र ज्योति का सम्बन्ध पेट से व हमारे अहार से भी है पेट खराब होने से शरीर मे कई विकार उतपन्न हो जाते है । अगर हम पेट सही रखे कब्ज आदि न होने दे तो हम नेत्र दोष से भी बच सकते है ।
8- नेत्र दोष मे विटामिनो का भी महत्वपुर्ण स्थान है जैसे विटामिन ए की कमी से नेत्र ज्योति कम हो जाती है । विटामिन बी की कमी से आँखे लाल रहती है । और उसमे जलन होने लगती है ने और जलन पर पानी भी बहने लगता है । विटामिन सी की कमी से आँखे भारी भारी रहती है जलदी थक जाती है ।  हमे शरीर व आँखों के स्वास्थ्य के लिए विटामिन प्रचुर मात्रा मे लेते रहने चाहिए ।
9- चाँदनी रात मे चाँद की तरफ देखते रहने से भी आँखों की रोशनी तेज होती है।

10-सिर पर हेयरड्रायर का प्रयोग आँखों के लिए हानिकारक होता है । 

Wednesday, 29 June 2016

भगवान अकेला है

मैंने सुनी है एक कहानी। 
एक मुसलमान फकीर था। वह रात सोया ।
उसने एक स्वप्न देखा की वह स्वर्ग चला गया है।
सपने में हि लोग स्वर्ग जाते है। असलियत में तो नर्क चले जाए
लेकिन स्वप्न में कोई नर्क क्यों जाए? स्वप्न में तो कम से कम
स्वर्ग जाना चाहिए।
स्वप्न में वह चला गया। और देखता है की स्वर्ग के रास्ते पर
बड़ी भीड़ भाड़ है, लाखों लोगों की भीड़ है।
उसने पूछा की क्या बात है आज?
तो भीड़ के रास्ते चलते किसी आदमी ने कहा की
भगवान का जन्म दिन है। उसका जलसा मनाया जा रहा है।
तो उसने कहा बड़े सौभाग्य मेरे, भगवान के बहोत दिनों से दर्शन करने थे।
वह मौका मिल गया। आज भगवान का जन्म दिन है,
अच्छे मौके पर में स्वर्ग आ गया।
वह भी रास्ते के किनारे लाखों दर्शको की भीड़ में खड़ा हो गया ।
फिर एक घोड़े पर सवार एक बहोत शानदार आदमी,
उसके साथ लाखो लोग निकले। वह झुककर लोगो से पूछता है
क्या जो घोड़े पर सवार है वे ही भगवान है ?
तो किसी ने कहा, नही वह भगवान नही है ,
यह हज़रत मोहम्मद है और उनके पीछे
उनको मानने वाले लोग है ।
वह जुलुस निकल गया। फिर दुसरा जुलुस है और रथ पर सवार
एक बहोत महिमाशाली व्यक्ति है। वह पूछता है क्या ये ही भगवान है ?
किसी ने कहा नही, ये भगवान नही,
यह राम है और राम के मानने वाले लोग।
और क्राइस्ट और बुद्ध और महावीर
और जरथुस्त्र और कंफ्यूशियश और न मालुन
कितने महिमाशाली लोग निकलते है और उनकी मानने वाले लोग निकलते है।
आधी रात बीत जाती है, फिर धीरे धीरे रास्ते में सन्नाटा हो जाता है ।
फिर यह आदमी सोचता है की अभी भगवान नही निकले।
वे कब निकलेंगे?
और जब लोग जाने के करीब हो गए है,
रास्ता उजड़ने लगा है, कोई रास्ते पर ध्यान नही दे रहा है,
तब तक एक बूढ़ा-सा आदमी अकेले चला आ रहा है।
उसके साथ कोई भी नही है।
वह हैरान होता है की ये महाशय कौन है ?
जिनके साथ कोई भी नही । यह अपने आप ही घोड़े पर बैठकर
चले आ रहे है, बिलकुल अकेले। तो ये चलता हुआ आदमी केहता है की
हो न हो, यह भगवान होंगे । क्यों की भगवान से अकेला
और दुनिया में कोई भी नही है ।
वह जाकर भगवान को ही पूछता है उस घोड़े पर बैठे हुवे बूढ़े आदमी से
की महाशय आप भगवान है ? में बहुत हैरान हूँ,
मोहम्मद के साथ बहुत लोग थे, क्राइष्ट के साथ बहुत लोग थे,
राम के साथ बहुत लोग थे, सबके साथ बहुत बहुत लोग थे,
आपके साथ कोई भी नही?
भगवान की आँखों से आसूं गिरने लगे और भगवान ने कहा ,
सारे लोग उन्ही के बिच बंट गए है, कोई बचा ही नही जो मेरे साथ हो सके।
कोई राम के साथ, कोई कृष्ण के साथ,
मेरे साथ तो कोई भी नहीं। और मेरे साथ वही हो,
में अकेला ही हूँ !
घबराहट में उस फकीर की नींद खुल गयी।
नींद खुल गयी तो पाया वह जमीन पर अपने झोंपड़े में है।
वह पास पड़ोस में जाकर केहने लगा
की मैंने एक बहुत दुखद स्वप्न देखा है,
बिलकुल झूठा स्वप्न देखा है।
मैंने यह देखा की भगवान अकेला है ।
यह कैसे हो सकता है? वह फकीर मुझे भी मिला और
मैंने उससे कहा की तुमने सच्चा ही स्वप्न देखा है।
भगवान से ज्यादा अकेला कोई भी नही।
क्यों की जो हिन्दू हो सकता है वह भगवान के साथ नही हो सकता।
जो मुसलमान है वह भगवान के साथ नही हो सकता है।
जो जैन है वह भगवान के साथ नही हो सकता है।
जो कोई भी नही है, जिसका कोई विशेषण नही है,
जो किसी का अनुयायी नही है, जो किसी का शिष्य नही है,
जो बिलकुल अकेला है, जो बिलकुल नितान्त अकेला है
वही केवल उस नितान्त अकेले से जुड़ सकता है,
जो भगवान है।
अकेले में, तन्हाईमैं, लोनलिनैस में,
बिलकुल अकेले में वह द्वार खुलता है
जो भगवान से जोड़ता है ।
भीड़ भाड़ से भगवान का कोई संबंध नही।
!! ओशो !!
[ नेति नेति : 9 ]

मूलबंध : एक सरल प्रयोग

मूलबंध : एक सरल प्रयोग
एक छोटा सा प्रयोग, जब भी तुम्हारे मन में कामवासना उठे तो करो। तो धीरे - धीरे तुम्हें राह साफ हो जाएगी। जब भी तुम्ह़े़ं लगे कामवासना तुम्हें पकड़ रही है, तब डरो मत। शांत होकर बैठ जाओ। जोर से श्वास को बाहर फेंको -- उच्छवास। भीतर मत लो श्वास को - क्योंकि जैसे भी तुम भीतर गहरी श्वास को लोगे, भीतर जाती श्वास काम - ऊर्जा को नीचे की तरफ धकाती है।
जब भी तुम्हें कामवासना पकड़े, तब एक्सहेल करो, बाहर फेंको श्वास को। नाभि को भीतर खींचो, पेट को भीतर लो और श्वास को बाहर फेंको।... जितनी फेंक सको। धीरे - धीरे अभ्यास होने पर तुम संपूर्ण रूप से श्वास को बाहर फेंकने में सफल हो जाओगे।
जब सारी श्वास बाहर फिंक जाती है, तो तुम्हारा पेट और नाभि वैक्युम हो जाते है, शून्य हो जाते है। और जहां कहीं शून्य हो जाता है, वहां आसपास की ऊर्जा शून्य की तरफ प्रवाहित होने लगती है। शून्य खींचता है; क्योंकि प्रकृति शून्य को बरदाश्त नहीं करती, शून्य को भरती है। तुम्हारे नाभि के पास शून्य हो जाए, तो मुलाधार से ऊर्जा तत्क्षण नाभि की तरफ उठ जाती है। और तुम्हें बड़ा रस मिलेगा -- जब पहली दफा अनुभव करोगे कि एक गहन ऊर्जा बाण की तरह आकर नाभि में उठ गई। तुम पाओगे, सारा तन एक गहन स्वास्थ्य से भर गया। एक ताजगी! यह ताजगी वैसी ही होगी, ठीक वैसा ही अनुभव होगा ताजगी का, जैसा संभोग के बाद ऊदासी का होता है। जैसे ऊर्जा के स्खलन के बाद एक शिथिलता पकड़ लेती है।
संभोग के बाद जैसे विषाद का अनुभव होगा, वैसे ही अगर ऊर्जा नाभि की तरफ उठ जाए, तो तुम्हें हर्ष का अनुभव होगा। एक प्रफुल्लता घेर लेगी। ऊर्जा का रुपांतरण शुरू हुआ। तुम ज्यादा शक्तिशाली, ज्यादा सौमनस्यपूर्ण, ज्यादा उत्फुल्ल, सक्रिय, अन -थके, विश्रामपूर्ण मालूम पड़ोगे। जैसे गहरी निंद के बाद उठे हो। ताजगी आ गई।
यह मुलबंध की सहजतम प्रक्रिया है कि तुम श्वास को बाहर फेंक दो। नाभि शून्य हो जाएगी, ऊर्जा उठेगी नाभि की तरफ, मुलबंध का द्वार अपने आप बंद हो जाएगा। लह.द्वार खुलता है ऊर्जा के धक्के से। जब ऊर्जा मुलाधार में नहीं रह जाती, धक्का नहीं पड़ता, द्वार बंद हो जाता है।
इसे अगर तुम निरंतर करते रहे, अगर इसे तुमने एक सतत साधना बना ली -- और इसका कोई पता किसी को नहीं चलता;
तुम इसे बाजार में खड़े हुए कर सकते हो, किसी को पता भी नहीं चलेगा; तुम दुकान पर बैठे हुए कर सकते हो, किसी को पता नहीं चलेगा। अगर एक व्यक्ति दिन में कम से कम तीन सौ बार, क्षण भर कै मूलबंध लगा ले, कुछ महिनों बाद पाएगा, कामवासना तिरोहित हो गई। काम - ऊर्जा रह गई, वासना तिरोहित हो गई।
ओशो,
ध्यान विज्ञान.

आखिर मनुष्य की बेहोशी कैसे टूटे

                           
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                       आखिर मनुष्य की बेहोशी कैसे टूटे  

एक सुबह, मुल्ला नसरुद्दीन अस्पताल में अपने मित्र के पास बैठा था। मित्र ने आख खोली और उसने कहा, ‘नसरुद्दीन, क्या हुआ? मुझे कुछ याद भी नहीं आता।’ नसरुद्दीन ने कहा, ‘रात, तुम जरा ज्यादा पी गये और फिर तुम खिड़की पर चढ़ गये। और तुमने कहा कि मैं उड़ सकता हूं। और तुम उड़ गये। तीन मंजिल मकान पर थे। घटना जाहिर है। सब हड्डियां - पसलियां टूट गयी हैं।’
मित्र ने उठने की कोशिश की और कहा कि नसरुद्दीन, तुम वहां थे? और तुमने यह होने दिया? तुम किस तरह के मित्र हो?
नसरुद्दीन ने कहा, ‘ अब यह बात मत उठाओ। उस समय तो मुझे भी लग रहा था कि तुम यह कर सकते हो। यही नहीं, अगर मेरे पायजामे का नाडा थोड़ा ढीला न होता तो मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा था। तो कहां उड़ने में पायजामा सम्हालूंगा, इसलिए मैं रुक गया और बच गया। तुम ही थोड़े पी गये थे, मै भी पी गया था।’
बेहोशी का अर्थ है: जो भी चित्त में दशा आ जाए, उसी के साथ एक हो जाना। तुम्हारा जीवन इसी शराबी जैसा है। माना कि तुम खिड़कियों से नहीं उड़ते और माना कि तुम अस्पताल में नहीं पाये जाते; लेकिन बहुत गौर से देखोगे तो तुम अस्पताल में ही हो और तुम्हारी सब हड्डियां टूट गई हैं। क्योंकि तुम्हारा पूरा जीवन एक रोग है। और उस रोग में सिवाय दुख और पीड़ा के कुछ हाथ आता नहीं है। सब जगह तुम गिरे हो। सब जगह तुमने अपने को तोड़ा है। और सारे तोड़ने के पीछे एक ही मूर्च्छा का सूत्र है कि जो भी घटता है, तुम उससे फासला नहीं कर पाते।थोड़े दूर हटो! एक - एक कदम लंबी यात्रा है; क्योंकि हजारों - लाखों जन्मों में जिसको बनाया है, उसको मिटाना भी आसान नहीं होगा। पर टूटना हो जाता है; क्योंकि वही सत्य है। तुमने जो भी बना लिया है, वह असत्य है।इसलिए हिंदू इसे माया कहते हैं। माया का अर्थ है कि तुम जिस संसारमें रहते हो, वह झूठ है। इसका यह अर्थ नहीं है कि बाहर जो वृक्ष है, वह झूठ है; पर्वत जो है, वह झूठ है और आकाश में चांद - तारे है, वे झूठ है। नहीं, इसका केवल इतना ही अर्थ है कि तुम्हारा जो तादात्‍म्‍य है, वह झूठ है। और, उसी तादात्‍म्य से तुम जीते हो। वही तुम्हारा संसार है।कैसे तादात्‍म्‍य टूटे? तो पहले तो जागने से शुरू करो; क्योंकि वहीं थोड़ी - सी किरण जागरण की है। स्‍वप्‍न से तो तुम कैसे शुरू करोगे। मुश्किल होगा। और सुषुप्‍ति का तो तुम्हें कोई पता नहीं है। वहां तो सब होश खो जाता है। जाग्रत से शुरू करो। साधना शुरू होती है जाग्रत से। वह पहला कदम है। दूसरा कदम है: रूप। और तीसरा कदम है: सुषुप्‍ति। और जिस दिन तुम तीनों कदम पूरे कर लेते हो, चौथा कदम उठ जाता है, वह चौथा कदम है तुर्यावस्था -- वह सिद्धावस्था है।
~ ओशो ~
(शिव सूत्र, प्रवचन #2)

Monday, 20 June 2016

laughter is the best medicine (in hindi)

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आज की तनाव भरी भागमभाग भरी जीवनशैली मे मानो हम हँसना ही भूल गये । जो थोड़ी बहुत हँसी दिखाई देती है वह झुठी दिखावटी दिखाई पड़ती है ठहाके मारकर हँसे हुये याद भी नही पड़ता कितना समय हो गया जिसे देखो चिन्ता हताशा परेशानी तनाव मे जीवन यापन कर रहा है प्रत्येक समय तनाव मे रहने के कारण ठहाके लगा कर हँसना तो मानो भूल ही गये है । और हम अपना स्वास्थ्य खोते चले गये  ।
 हँसना अपने आप मे एक ऐसा व्यायाम है जो शरीर की प्रतिरोधक  क्षमता को दूर करके मानसिक तनाव को तो दूर करता ही है वरन् पेट के  कई विकारो को दूर करता है । पेट मे विकार होने से कई बीमारिया उतपन्न होती है । 
 जब हम जोर से ठहाका लगाते है तो हम तनाव से दूर हो जाते है तनाव नही रहेगा तो हम दमा हृद्य् रोग उच्च रक्तचाप, सिर दर्द, काम मे मन नही लगना, डिप्रेशन, आदि अनेक रोगो से दूर रहेंगें
हमे 24घंटे मे कम से कम 5-6 बार तो जोर से ठहाका लगा कर खुलकर हँस लेना चाहिए । धीरे से या मन्द मन्द मुसकराने से काम नही चलने वाला इससे ज्यादा लाभ नही होगा । खुलकर ठहाका लगाये । फिर देखिये इसका कमाल ,
 आपकी रोगप्रतिरोधक क्षमता कितनी बढ़ जाती है । हँसने से सफेद रकत –कण सक्रिय हो जाते है और शरीर मे जो बीमारियाँ है उन पर चारो और स्रे हमला करके उसका समूल नाश कर देते है । कोल्स्ट्रोल ब्लडप्रेशर जैसी समस्या भी इससे कम हो जाती है ।
हँसने का बहाना खोजिये स्वयं भी जोर से हँसे दुसरो को भी हँसाते रहे । सदा मस्त रहे । यह एक ऐसी मुफ्त की दवा है जो आपको अनेक रोगो से दूर रखती है आप सदा प्रसन्न रहते है तो आपके समपर्क मे जो भी आयेगा वह भी प्रसन्न हुए बीना नही रह सकता ।  यह जीवन आन्नद से जीने के लिए मिला है न की दुखी परेशान तनाव मे जीने के लिए । दुखी तनावग्रस्त व्यक्ति अनेक रोगो से ग्रस्त होता है ।
 इसके विपरीत जो व्यक्ति हमेशा खुलकर हँसता है उससे बीमारियॉ भागती है वह मस्त आन्नदित जीवन जीता है और उससे सब खुश रहते है । कोलस्ट्रोल भी खुलकर हँसने से कम हो जाता है । खुलकर हँसना ऐसी मुफ्त की औषधि है जो अनेक बीमारियों को शरीर से बाहर निकालती है और नई बीमारियो को आने से रोकती है स्मरण शक्ति तेज होती है । शरीर मे स्फुर्ति रहती है । प्रत्येक काम को करने मे उत्साह रहता  है ।
 ठहाके लगाकर खुलकर दिन मे कम से कम 4-5 बार  हँसिये और हँसाइये और जीवन का आन्नद लीजिए।


Friday, 17 June 2016

ध्यान क्या है ?

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ध्यान  क्या है ?

ध्यान शब्द हम बचपन से सुनते आये है
ध्यान से काम करो, ध्यान से पढाई करो
तुम्हारा किसी काम मे ध्यान नही लगता
ध्यान से खाना खाओ
ध्यान से ये करो ध्यान से वह करो
ध्यान शब्द बार बार सुनने को मिलता है मगर ध्यान है क्या ?  यह हमे कोई नही बताता । आम बोल चाल की भाषा मे साधारण सा दिखने वाला `तीन अक्षर का यह शब्द बहुत गहरा है । जिस प्रकार से समुन्द्र की गहराई का अनुमान नही लगा सकते ध्यान शब्द की गहराई का पता लगाना समुन्द्र की गहराई नापने के बराबर है । ध्यान कोई क्रिया नही है कोई  तुम्हारा आचरण नही है ध्यान वह चेतना है आप जो भी कृत्य करते हो उसके साक्षी रहते हो आप जो भी करते हो उसका आपको पता होता है । आप अच्छा कार्य कर रहे हो बुरा कर रहे हो पाप कर रहे है पुण्य कर रहे है आप सजग रहते है अपने कृत्य के प्रति सजग होना ही ध्यान है ।

 अधिकांशतः लोग सोये रहते है  खाना खाते हुए चलते हुए नहाते हुए या अन्य कोई भी कार्य कर रहे है वे अपने कृत्य के प्रति सजग नही हो्ते वरन सोये रहते है पुरा खाना खत्म हो जाता है जब उन्हे पता चलता है मैने खाना खा लिया, चलते - चलते अपनी मंजिल तक पहुँच जाते है उन्हे पता ही नही होता वे चल रहे है । कार चला रहे हो, व्यापार कर रहे हो, पढ़ रहे हो, चोरी कर रहे हो,क्रोध कर रहे हो, बेईमानी कर रहे हो, आप जो भी कृत्य सारे दिन मे करते हो सब गहरी अवस्था मे सोते हुए करते हो । जो जागा हुआ है वह क्या क्रोध कर सकता है चोरी कर सकता है झूठ बोल सकता है बेईमानी कर सकता है । सजग रहते हुर क्रोध करके देखो आपको पता होना चाहिए आपको क्रोध आ रहा है आप क्रोध कर रहे हो अब आपको क्रोध करना है आप क्रोध ही नही कर पाओगे जागा हुआ व्यक्ति कभी क्रोध ही नही कर सकता । क्रोध हमेशा सोया हुआ व्यक्ति ही कर सकता है जो मूर्छित है वही क्रोध कर सकता है यह प्रयोग आप कभी भी करके देख सकते हो आपका कोई कितना भी अनिष्ट कर दे आपको बुरा भला कह दे अगर आप सजग है जागे हुए है  इसने मुझे  बुरा-भला कहा ,मुझे गाली दी अब मुझे इस पर क्रोध करना है आप पायेगे आपके अन्दर क्रोध है ही नही आप क्रोध कर ही नही पायेगे । सजग रहना, जगे रहना ही ध्यान है । 

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     ·    ·  ....... प्रेम आत्मा का भोजन है। प्रेम आत्मा में छिपी परमात्मा की ऊर्जा है। प्रेम आत्मा में निहित परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग ...