Thursday, 20 April 2017

भक्ति जितना मनुष्य को भटकाती है, उतना और कोई चीज नहीं भटकाती है।

मैंने सुना है एक गांव में एक शराबी ने एक मिठाई की दुकान से लडडू खरीदे। रुपया दिया। आठ आने उसे वापस मिलने थे। लेकिन दुकानदार ने कहा क्षमा करें, मेरे पास छुट्टे नहीं हैं। कल सुबह आ जाना!
शराबी शराब में था, उसने सोचा कि यह तो झंझट की बात है। सुबह बदल जाए! तख्ती बदल ले। अपना नाम बदल ले। शराबी को हजार तरह की कुशकाएं उठने लगी—कि आठ आने मेरे गए। उसने सोचा कि कोई ऐसा विज्ञान मुझे बना लेना चाहिए कि यह बदल न सके। उसने चारों तरफ देखा। देखा एक सांड बैठा है। सामने ही बैठा है दुकान के। उसने कहा ठीक है। जहां सांड बैठा है.......!
सुबह जब आया वापस सांड का कोई पक्का थोड़े ही है कि वह मिठाई की दुकान के सामने ही बैठा रहेगा। सांड कोई आदमियों जैसे थोड़े ही हैं कि जहां बैठ गए, बैठ गए। सांड तो मुक्त हैं। इसलिए तो शिवजी ने उन्हें चुना है। वे चले गए थे। वे बैठे थे एक नाई की दुकान के सामने!
वह आदमी तो एकदम घुस गया नाई की दुकान में। और गरदन पकड़ ली नाई की। और कहा हद्द हो गयी! आठ आने के पीछे तख्ती बदल ली? धंधा बदल लिया? जात बदल ली? आठ आने के पीछे! मगर तुम मुझे धोखा न दे सकोगे। वह सांड बैठा है!
तुम्हारे जिंदगी के नक्शे बस, सब ऐसे ही हैं। जिंदगी रोज बदल जाती है, तुम्हारे नक्शा पीछे पड जाते हैं; उनका कोई अर्थ नहीं है। तुम्हारे शास्त्र सब ऐसे हैं, क्योंकि जब बनते हैं, तब जिंदगी एक होती है। जब तक बन पाते हैं, तब तक जिंदगी दूसरी हो जाती है।
अब आज तुम वेद को बैठे पढ़ते रहो, या आज तुम बैठकर गीता को पढ़ते रहो। जिंदगी बहुत बदल गयी, गंगा में बहुत जल बह गया है।
इसीलिए मैं जब बुद्ध की व्याख्या करता हूं तो तुम खयाल कर लेना। मुझे बुद्ध की उतनी चिंता नहीं है। क्योंकि ढाई हजार साल में जिंदगी बहुत बदल गयी। मुझे तुम्हारी चिंता है। मैं जब बुद्ध की व्याख्या करता हूं, तो मुझे बुद्ध की उतनी फिकर नहीं है। मेरी निष्ठा बुद्ध के प्रति उतनी नहीं है, जितनी आज के इस क्षण के प्रति है। इस क्षण के अनुकूल नक्‍शे को बदलता हूं।
तुम्हारे और व्याख्याकार जो हैं, नक्‍शे के प्रति उनकी निष्ठा भारी है। वे कहते हैं. जिंदगी जाए भाड़ में। समय की धारा का कुछ भी हो। हम तो पक्का जो किताब में लिखा है, उसी को मानते हैं। चाहे किताब अब बिलकुल ही गलत हो गयी हो! सभी सत्य सामयिक होते हैं। और जो शाश्वत सत्य है, उसको शब्द में कहने का कोई उपाय नहीं है। उसे कभी किसी ने कहा नहीं। जो कहा गया है, वह सामयिक है। और सभी सत्य, जब सामयिक होते हैं, तो समय के बदलने पर बदल जाने चाहिए।
सत्य तुम्हारे बदलते नहीं, पत्थरों की तरह जड़ हैं। और जिंदगी फूलों की तरह बह रही है। उनमें कभी तालमेल नहीं रह जाता है।
तो तुम्हारे तथाकथित सत्य ही तुम्हारे सत्य तक पहुंचने में बाधा बन जाते हैं। तुम्हारे शास्त्र ही अवरोध हो जाते हैं। अतीत की अंध — भक्ति जितना मनुष्य को भटकाती है, उतना और कोई चीज नहीं भटकाती है।
नदी की तरह रहो। नक्‍शे को ले चलने की कोई जरूरत नहीं है। और जब नदियां तक पहुंच जाती हैं सागर तक, तो तुम क्यों न पहुंच पाओगे? तुम भी चैतन्य की धारा हो। तुम चैतन्य का सागर खोजने निकले हो। इस जगत में नदियों तक को मिल जाता है मार्ग? तो तुम्हारी चैतन्य— धारा को न मिलेगा? कुछ तो भरोसा करो। इस भरोसे का नाम श्रद्धा है।
नदी अनजाने सागर की खोज कर रही है —अनजाने। नदी को कुछ पता नहीं, कहां जा रही है? क्यों जा रही है? मगर टटोल रही है सागर को। विराट की खोज में निकली है। कोई नक्शे भी पास नहीं है। कोई शास्त्र भी पास नहीं है। कोई वेद, कुरान, बाइबिल भी पास नहीं है। अनंत की खोज पर चली है बिना नक्शे के। कोई गुरु नहीं। किसी की अनुगामी नहीं। टटोल रही है अपने से। और पहुंच जाती है।
सभी नदियां पहुंच जाती हैं —यह तुमने देखा! छोटी नदियां पहुंच जाती हैं। बडी नदियां पहुंच जाती हैं। नदी—नाले सब पहुंच जाते हैं। सब सागर पहुंच जाते हैं। अगर अपनी सामर्थ्य से नहीं पहुंच सकते, तो छोटे नाले बड़े नालों में गिर जाते हैं। बड़े नाले नदियों में गिर जाते हैं। नदियां बड़ी नदियों में गिर जाती हैं। मगर सागर तक सब पहुंच जाते हैं।
तुम खोजते ही रहो, तो परमात्मा तक पहुंच जाओगे। और नक्‍शो की कोई जरूरत नहीं है। हिंदू मुसलमान, ईसाई—नक्‍शे की कोई जरूरत नहीं है। खोज की त्वरा चाहिए। खोज की तीव्रता चाहिए। खोज की सघनता चाहिए। नक्‍शे नहीं काम आते, खोज की सघनता काम आती है।
इस भेद को समझ लेना। नदी को नक्शा पकड़ा दो, इससे कुछ अर्थ नहीं होगा। सिर्फ नदी में जलधार होना चाहिए, ऊर्जा होनी चाहिए। बस, पर्याप्त है। उसी ऊर्जा के बल नदी खोजती है।
जिन्होंने सत्य को पाया है, उन्होंने भी नक्‍शो के सहारे नहीं पाया है। क्योंकि इस परिवर्तनशील जगत में नक्शे बन ही नहीं सकते। तुम जिस जगत का नक्‍शे बनाते हो, जब तक नक्शा बनता है,  तब तक जगत बदल जाता है। यहां नक्शे हो नहीं सकते। जीवन परिवर्तन है, तो नक्‍शे होंगे कैसे?
🎉ओशो🎉

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