आकर्षण का सिधान्त क्या है (law of attraction) क्या ये वास्तव मे काम करता है ? क्या जैसा हम सोचते है वैसा ही हम बनते है ?
एक छोटा बच्चा
खेल खेल मे डाक्टर के कपड़े पहनता है और डाक्टर की तरह ही व्यवहार करता है । वह भूल
जाता है वह बच्चा है वह अपने को उस समय डाक्टर ही समझता है उसके अचेतन मन मे यह
बात बैठ जाती है वह डाक्टर है ।
बड़े होकर वह डाक्टर
बनता है।
कोई बच्चा खेल-खेल मे फौजियों के कपड़े पहनता है अपने को एक
सैनिक समझता है बड़े होकर वह सैनिक बनता है ।
एसा होता है जो बच्चे खेल खेल मे करते है वही बड़े होकर बन
जाते है
जो बचपन से सोचा, वही बने ।
जैसा हम अपने बारे मे सोचते है अपने बारे मे
विचार बनायेगे वैसा ही हम बनते चले जायेगे, दूसरे लोग भी हममे वही देखते है
जो हम अपने आप मे देखते है वैसा ही हमे व्यवहार मिलता है जिसके काबिल हम होते है ।
सारा फर्क सोच का
है किसी व्यक्ति के पास कितनी भी योग्यता क्यो न हो
उसके मन मे अगर यह
धारणा बैठी हुयी है की मै इस काम को नही कर सकता या मुझ से ये काम नही हो सकता तो
वह उस काम को कभी नही कर पायेगा ।
दूसरी तरफ मि श्याम
यह सोचते है वह कोई काम कर सकते है तो वास्तव मे वह उस काम को कर लेगे ।
श्याम अपने आप को एक महत्वपुर्ण व्यक्ति समझते है जब तक आप
अपने आप को महत्व नही देगे दूसरे भी आप को महत्व नही देगे ।
आप क्या सोचते है इससे तय होता है आप कैसा काम करते है । आप
क्या करते है इससे तय होता है दूसरे आपके साथ कैसा व्यवहार करते है ।
जैसा हम सोचते है
वैसा हम बनते है
इस पूरे सृष्टि को एक विश्व शक्ति संचालित करती है जिसे हम
अलग अलग नामो से कुछ भी कह सकते है भगवान, अल्लाह, वाहे गुरु, गोड
इस विश्व शक्ति से हम सब जुड़े हुए है इसका काम है देना जो
भी हम मागते है उसे देना ।
आप बस से देहली जा
हो आपने बस संचालक से देहली का टिकट माँगा तो उसने आपको देहली का टिकट दे दिया
इसका दूसरा पक्ष देखिए आपने उससे देहली का टिकट माँगा वह
आपको टिकट दे ही रहा था आपने उससे कहा रुको मुझे देहली का नही मेरठ का चाहिए वह
आपको मेरठ को टिकट देने ही जा रहा था आपने उससे कहा – मेरठ का टिक्ट रहने दो एसा
करो मोहननगर का दे दो । वह मोहननगर का देने लगा तभी आपने उसको बोला एसा करो आप
मुझे देहली का ही दे दो । बस संचालक ने अब क्या किया आपको बस ही नीचे उतार दिया
पहले सोचले तेरे को जाना कहा है ।
इस बात को जरा
ध्यान से समझो
सारा खेल विचारो का है आप के अन्दर एक विचार आया मुझे ये
चाहिए या मुझे ये बनना है आपकी ये इक्छा विश्वशक्ति के पास पहुच गयी और वह आपको देने के लिए तैयार है मगर आपके पास
दूसरा विचार आ गया तीसरा आ गया एक दिन मे हजारो विचार आते है और एक विचार पर न टिके
रहने के कारण विश्वशक्ति से कुछ नही मिल पाता अगर हम एक विचार पर ही टिके रहे और
हम संकल्प ले ले हमे तो सिर्फ यही चाहिए या हमे सिर्फ आइ ए एस आफिसर्स ही बनना है
डाक्टर ही बनना है जो भी आप बनना चाहते हो बस उस एक विचार को पकड़े रहो उठते बैठते
सोते जागते उस विचार के सपने देखो उस विचार को पकड़ कर जीओ विश्वशक्ति वह सब अवश्य देगी
जितनी आपकी संकलप
शक्ति मजबूत होगी उतनी शीघ्रता से विश्वशक्ति आपकी इक्छा पूरी करने मे लग जाती है
।
यह नकरात्मक और
सकरात्मक दोनो मे काम करती है
कोई व्यक्ति अक्सर यह कहता है मै बीमार हू कई साल से बीमार
चल रहा हू बीमारी जाने का नाम ही नही ले रही एसा व्यक्ति हमेशा बीमार रहेगा
कोई कहे मेरे सिर
मे दर्द हो रहा है तो उसके सिर मे दर्द बना रहेगा
गरीब आदमी हम्रेशा गरीब ही बना रहता है क्योकि वह अपने को
गरीब मानता है दिन मे कितनी बार दोहराता है मै गरीब हू । जिनके पास धन होता भी है
और वे कहते रहते है हमारे पास कुछ नही है हम तो गरीब है तो आपने देखा होगा उनके
पास धन होते हुए भी वे गरीब से भी बदतर होते है विश्वशक्ति उनसे खर्च करने की शक्ति
छिन लेती है । कई बार कुछ लोगो का पैसा एसे ही चला जाता है ।
जैसे हमारे विचार
बनते है वैसे ही हम बन जाते है ।
अब
हम बात करते है आकर्षण का सिधान्त काम कैसे करता है?
आप
जो भी बनना चाहते है उसके दिन रात सपने देखिए
मान
लीजिए श्याम 12th का छात्र है उसने अपना गोल तय किया कि उसे 90% मार्क्स चाहिए वह
दिन रात 90% के सपने देखता रहा जिस समय भी वह पढ़ने बैठता सपने
देखने बैठ जाता और विचारो मे खो जाता पूरे साल सिर्फ सपने देखे पढ़ाई नही की तो क्या उसके 90% मार्क्स आजायेगे ?
नही-90% मार्कस तो
क्या, वह फेल भी हो सकता है ।
राम ने भी 90% का गोल तय किया दिन रात एक ही विचार चलता
रहता था 90% मार्कस
उसने अपनी सब कापी
किताबो पर लिख दिया 90%
जब भी वह पढ़ने बैठता उस गोल को देखता और पूरे जोश intrest
के साथ पढ़ने बैठता अगर 90%लाने है तो पढ़ना है वह भी पूरे interest के साथ
और उसके 88% मार्कस आ जाते है
आकर्षण का सिधान्र्त काम करता है
कर्म और संकलप शक्ति के साथ
अब एक प्रशन उठता है हैं पाँच बच्चे एक competition के लिए
बराबर मेहनत करते है सब की एक ही इक्छा है इस competition को clear करना
मगर salection एक ही बच्चे
का होता है वहा बाकी चार ने भी पूरी मेहनत से तैयारी की थी वह भी चाहते थे उनका salection हो, क्या वहाँ विश्वशक्ति ने काम नही किया ?
उस एक मे और बाकी
चार मे क्या फर्क रहा होगा ?
ओलम्पिक या एशियन गेम होते है उनमे कई देशो के खिलाड़ी भाग लेते है सभी अपने अपने देशो के best होते
है सभी वहा स्वर्ण जितना चाहते है मगर जो जीतता है और बाकी मे क्या अन्तर है सभी
ने वहा अपना best दिया है पुरी जान लगा
दी । यहा अन्तर पैदा करता है जागरुकता (awareness) जिसकी जागरुकता
(awareness) ज्यादा होगी उसकी
संकल्प शक्ति भी उतनी ज्यादा होगी । यहा सैकेंड के दसवे हिस्से से हार जीत हो जाती
है। जरा सा ध्यान बटा आप पिछड़ गये ।
हम जागरुक (aware) कैसे बने, ध्यान कैसे लगाये ये हमे कही नही
सिखाया जाता जितना हम अपने काम के प्रति सजग होते है विश्वशक्ति उतनी ही हमारी मदद
करती है।
अब बात करते है अपने
अन्दर जागरूकता (awareness) कैसे बढाये ?
जैसे हम सजग होते है हम विश्वशक्ति के नजदीक होते चले जाते
है और जितने हम विश्वशक्ति के नजदिक होते चले जाते है हमारी इक्छाए पुरी होती चली
जाती है । आप सजग होने के लिए कुछ प्रयोग कर सकते है
हम अपने शरीर के
लिए बहुत कुछ करते है मगर शरीर को चलाता कौन है
बुद्धि, हम बुद्धि के लिए क्या करते है ? हम शरीर के बारे
मे बहुत कुछ सोचते है हम वह सब कुछ करते है जो मन करता है एक तरह से हम मन के आधीन
है और मन चंचल होता है वह हमे सजग नही होने देता हम मन के आधीन होकर हर वह काम
करते है जो हमारे लिए अच्छा नही है हम कोई
काम कर रहे है तभी एक विचार आया दूसरे
किसी काम का, अरे ये भी काम करना है अब हमारा मन दूसरे काम मे लग गया विचार
पल पल बदलते रहते है और जो काम हम कर रहे
होते है मन उस पर से हटाकर अन्य कामो की तरफ ले जाता है और जो काम हम कर रहे होते
है उसको हम सौ प्रतिशत नही दे पाते । कई बार तो हम उस काम को छोड़कर दूसरे काम म्रे
लग जाते है। मन के आधीन रहते हुए हम किसी भी काम को अपना सर्वश्रेष्ठ नही दे पाते
और सफलता हमसे दूर भागती है ।
प्रत्येक काम को ध्यान से करे जिस समय जो काम कर रहे है उसी
के बारे मे सोचे । यह तो हम बचपन से सुनते आये है काम ध्यान से किया करो, स्कूल
मे, घर मे सब जगह यह सुनने को मिलता है मगर यह कोई नही बताता किसी भी काम मे ध्यान
कैसे लगाये ?
ध्यान (meditation)
से ही सजगता आती है और हम मन के गुलाम न बनकर उसको ही अपना गुलाम बना लेते है
ध्यान का मतलब है आप जिस भी काम को कर रहे है उसी के बारे मे सोचे और तन मन और
बुद्धि से सिर्फ वही काम करे
मान लीजिए आप खाना खा रहे है तो आप तन और मन से सिर्फ खाना
ही खा रहे है अगर इस बीच मे कोई और विचार आता है इसमे उलझे नही सिर्फ उसे देखते
रहे आप खाना खा रहे है तो सिर्फ खाना खा रहे है ।
आप जिस समय जो काम
कर रहे है उसमे तन मन से समर्पित हो जाना ही ध्यान है ।
आप जिस समय जो भी
काम करे, काम चाहे छोटा हो या बड़ा,संकल्प ले उसको मुझे अपने तन मन से सौ प्रतिशत देना है उस
काम को करते हुए चाहे कितने भी अच्छे विचार आ रहे हो मुझे अपने मन की नही
सुननी है उस समय सिर्फ अपने काम पर ही ध्यान लगाना है ।
अगर आपने किसी भी
काम मे तन और मन से सौ प्रतिशत देना सिख लिया
तो आप जो चाहते वही बन जाते हो ।
विश्वशक्ति आप को सब कुछ देने के लिए तैयार है ।
No comments:
Post a Comment