मुल्ला नसरुद्दीन भागा जा रहा था अपने गधे पर। बाजार में लोगों ने रोका, कहां जा रहे हो बड़ी तेजी में?
उसने कहा, मुझसे मत पूछो, इस गधे से पूछो।
उसने कहा, मुझसे मत पूछो, इस गधे से पूछो।
लोगों ने कहा, क्यों? तुम जा रहे हो, गधे से क्यों पूछे?
उसने कहा, मैं समझ गया अनुभव से, कि मैं जहां ले जाना चाहूं, यह गधा तो वहां जाता नहीं। तो अब मैं अब जहां यह गधा ले जाता है, वहीं जाता हूं। अब यह कहां ले जा रहा है, कुछ पता नहीं। तेजी से जा रहा है, इतना पक्का है। कहीं पहुंचेगा--जरूर पहुंचेगा। जा रहा है, तो कहीं न पहुंचेगा और जब मैं चेष्टा करके इसको कहीं ले जाता था, तो बड़ी फजीहत होती थी। कहीं बाजार में अड़ गया, तो लोग हंसी-मजाक करते, कि गधा भी नहीं मानता इसकी।
अब कोई ऐसी मजाक नहीं करता। अब लोग समझते हैं, कि देखो। गधा बिलकुल इसके पीछे चलता है, कभी अड़ता नहीं। हालत बिलकुल उलटी है। अब अड़ने का सवाल ही नहीं। अब जहां यह जाता है, हम इसके साथ जाते हैं।
तुमने मन के साथ चलना शुरू कर दिया है। तुम जन्मों से मन के साथ चल रहे हो। अगर कोई तुमसे पूछे, कहां जा रहे हो? तो तुम्हें भी यही कहना पड़ेगा, पूछो गधे से।तुम्हें भी पता नहीं, कहां जा रहे हो? मन जहां ने जाए।
मन कहां ले जाएगा, कहना मुश्किल है। मन कहीं ले जाता नहीं। अक्सर तेजी से जाता है। मगर कहीं ले जाता नहीं। दौड़ता है। पहुंचाता नहीं। और मन की गति वर्तुलाकार हैं। वह कोल्हू के बैल की तरह चलता रहता है। गोल घेरे में घूमता रहता है--वहीं--वहीं फिर वहीं।
तुम गौर से देखो अपने मन को; तो तुम वर्तुल को पहचान लोगे। एक महीने तक अपने मन की डायरी रखो। लिखते जाओ मन क्या क्या करता है। सोमवार को सुबह क्रोध किया, फिर सोमवार को शाम बड़ी दया की, फिर दान किया, फिर बड़े नाराज हुए। फिर बड़े कठोर हो गए। सब लिखते जाओ।
एक महीना तुम डायरी बनाओ, तुम बड़े हैरान होओगे, यह तो वर्तुल है। वैसा का वैसा घूमता चला जाता है। फिर वही करते हो, फिर सोमवार आ गया, फिर नाराज। अगर तुम ठीक से निरीक्षण करोगे, तो तुम चकित हो जाओगे कि तुम्हारी जिंदगी यंत्रवत है।
-ओशो
पिव पिव लागी प्यास--प्रवचन-06
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