विचार भी आकृति रखता है:~
प्रत्येक विचार का आकार है। और आपके भीतर प्रतिपल आकार बदलते रहते हैं। आपके चेहरे पर भी आकार छप जाते हैं।
जो आदमी निरंतर क्रोध करता है,
वह जब नहीं भी क्रोध करता है,
तब भी लगता है, क्रोध में है।
वह निरंतर क्रोध की जो आकृति है,
उसके चेहरे पर स्थायी हो जाती है
और फिर चेहरा उसको छोड़ता नहीं।
क्योंकि चेहरे को पता है कि
कभी भी अभी थोड़ी देर में फिर जरूरत पड़ेगी।
वह पकड़े रखता है,
जस्ट टु बी इफिशिएंट, कुशल होने की दृष्टि से।
अब ठीक है, जब बार-बार जरूरत पड़ती है,
तो उसको हटाने की आवश्यकता भी क्या है!
जब तक हटाएंगे, तब तक पुनः आवश्यकता आ जाएगी।
तो रहने दो।
तो फिक्स्ड इमेज बैठ जाती है चेहरे पर, सभी लोगों के।
और कभी-कभी तो ऐसा हो जाता है कि पीछा ही नहीं छोड़ता।
जो आदमी निरंतर क्रोध करता है,
वह जब नहीं भी क्रोध करता है,
तब भी लगता है, क्रोध में है।
वह निरंतर क्रोध की जो आकृति है,
उसके चेहरे पर स्थायी हो जाती है
और फिर चेहरा उसको छोड़ता नहीं।
क्योंकि चेहरे को पता है कि
कभी भी अभी थोड़ी देर में फिर जरूरत पड़ेगी।
वह पकड़े रखता है,
जस्ट टु बी इफिशिएंट, कुशल होने की दृष्टि से।
अब ठीक है, जब बार-बार जरूरत पड़ती है,
तो उसको हटाने की आवश्यकता भी क्या है!
जब तक हटाएंगे, तब तक पुनः आवश्यकता आ जाएगी।
तो रहने दो।
तो फिक्स्ड इमेज बैठ जाती है चेहरे पर, सभी लोगों के।
और कभी-कभी तो ऐसा हो जाता है कि पीछा ही नहीं छोड़ता।
हजरत मूसा के संबंध में सुना है।
हजरत मूसा दुनिया के उन थोड़े-से लोगों में एक हैं,
कृष्ण या बुद्ध या महावीर जैसे।
एक सम्राट ने अपने चित्रकार को कहा कि
तू जा और हजरत मूसा का एक चित्र बना ला।
हजरत मूसा जिंदा थे। वह चित्रकार गया और चित्र बना लाया।
सम्राट ने चित्र देखा और उसने कहा कि
जो कुछ हजरत मूसा के संबंध में मैंने सुना है
उसमें और इस चित्र में बहुत फर्क मालूम पड़ता है।
यह चित्र देखकर मालूम पड़ता है कि
किसी बहुत दुष्ट, हिंसक, क्रोधी आदमी का चित्र है।
इसमें हजरत मूसा की खबर नहीं मिलती।
उस चित्रकार ने कहा कि आश्चर्य!
आपने कभी हजरत मूसा को देखा?
उस सम्राट ने कहा, मैंने देखा नहीं है,
सुना है उनके बाबत; और उनसे मेरा लगाव भी बन गया।
इसीलिए तो चित्र बनाने तुझे भेजा।
तो उसने कहा कि मैं देखकर आ रहा हूं।
महीनों बैठकर इस चित्र को मैंने बनाया है।
इसमें रत्तीभर भूल नहीं है।
और हजरत मूसा से पूछकर आया हूं कि
चित्र ठीक बन गया जनाब!
उन्होंने कहा कि बिलकुल ठीक है। तब आया हूं।
हजरत मूसा दुनिया के उन थोड़े-से लोगों में एक हैं,
कृष्ण या बुद्ध या महावीर जैसे।
एक सम्राट ने अपने चित्रकार को कहा कि
तू जा और हजरत मूसा का एक चित्र बना ला।
हजरत मूसा जिंदा थे। वह चित्रकार गया और चित्र बना लाया।
सम्राट ने चित्र देखा और उसने कहा कि
जो कुछ हजरत मूसा के संबंध में मैंने सुना है
उसमें और इस चित्र में बहुत फर्क मालूम पड़ता है।
यह चित्र देखकर मालूम पड़ता है कि
किसी बहुत दुष्ट, हिंसक, क्रोधी आदमी का चित्र है।
इसमें हजरत मूसा की खबर नहीं मिलती।
उस चित्रकार ने कहा कि आश्चर्य!
आपने कभी हजरत मूसा को देखा?
उस सम्राट ने कहा, मैंने देखा नहीं है,
सुना है उनके बाबत; और उनसे मेरा लगाव भी बन गया।
इसीलिए तो चित्र बनाने तुझे भेजा।
तो उसने कहा कि मैं देखकर आ रहा हूं।
महीनों बैठकर इस चित्र को मैंने बनाया है।
इसमें रत्तीभर भूल नहीं है।
और हजरत मूसा से पूछकर आया हूं कि
चित्र ठीक बन गया जनाब!
उन्होंने कहा कि बिलकुल ठीक है। तब आया हूं।
सम्राट ने कहा, लेकिन कहीं न कहीं कुछ न कुछ भूल है।
और मालूम होता है कि हजरत मूसा या
तो दयावश तुझसे कह दिए कि ठीक है,
या उन्होंने अपनी शक्ल कभी आईने में न देखी होगी।
और कोई कारण नहीं हो सकता।
लेकिन सम्राट की यह जिद्द,
जिसने देखा न हो मूसा को, हैरानी की थी।
चित्रकार ने कहा, फिर चलिए।
और हजरत मूसा के पास चित्रकार और सम्राट पहुंचे।
सम्राट भी थोड़ा हैरान हुआ चेहरे को देखकर।
चित्रकार ही ठीक मालूम पड़ता है।
बाजी हार गया मालूम हुआ उसे।
फिर भी पूरी बाजी हार जाने के बाद सम्राट ने मूसा से कहा कि
एक सवाल मैं पूछने आया हूं।
एक बाजी हार गया इस चित्रकार के साथ।
पूछना मुझे यही है कि जो कुछ मैंने आपके संबंध में सुना है,
उसे सुनकर मैंने आपकी एक आकृति बनाई थी,
लेकिन इस आकृति में वह बात नहीं है।
हजरत मूसा ने कहा,
यह आकृति मेरी पुरानी है
और पीछा नहीं छोड़ती।
आज से बीस साल पहले मैं ऐसा ही हुआ करता था।
जो कुछ इस चित्र में है, वही हुआ करता था। ऐसा ही क्रोधी, ऐसा ही दुष्ट, ऐसा ही हिंसा से भरा हुआ।
अब सब बदल गया, लेकिन चेहरे पर पुराने चिह्न रह गए हैं।
चिह्न छूट जाते हैं।
विचार भी आकृति रखता है,
भाव भी आकृति रखता है।
इन आकृतियों के बीच में अगर आप देख पाएं,
तो अरूप का दर्शन होता है।
दो विचार के बीच में खड़े हो जाएं,
दो विचार के बीच में झांक लें,
दो विचार के बीच में जो खाली जगह छूटे,
स्पेस बने, उसमें डूब जाएं और
आपको अरूप का दर्शन हो जाए।
भीतर अगर हो जाए,
तो फिर आप बाहर भी दो आकारों के बीच में कूद सकते हैं
और निराकार को जान सकते हैं।
कृष्ण कहते हैं, वही है ब्रह्म,
जिसका कभी नाश नहीं होता।
रूप का नाश है, अरूप का नाश नहीं, अरूप है ब्रह्म।
ऐसा सच्चिदानंद, विनाश जिसका नहीं होता, वही ब्रह्म है।
और मालूम होता है कि हजरत मूसा या
तो दयावश तुझसे कह दिए कि ठीक है,
या उन्होंने अपनी शक्ल कभी आईने में न देखी होगी।
और कोई कारण नहीं हो सकता।
लेकिन सम्राट की यह जिद्द,
जिसने देखा न हो मूसा को, हैरानी की थी।
चित्रकार ने कहा, फिर चलिए।
और हजरत मूसा के पास चित्रकार और सम्राट पहुंचे।
सम्राट भी थोड़ा हैरान हुआ चेहरे को देखकर।
चित्रकार ही ठीक मालूम पड़ता है।
बाजी हार गया मालूम हुआ उसे।
फिर भी पूरी बाजी हार जाने के बाद सम्राट ने मूसा से कहा कि
एक सवाल मैं पूछने आया हूं।
एक बाजी हार गया इस चित्रकार के साथ।
पूछना मुझे यही है कि जो कुछ मैंने आपके संबंध में सुना है,
उसे सुनकर मैंने आपकी एक आकृति बनाई थी,
लेकिन इस आकृति में वह बात नहीं है।
हजरत मूसा ने कहा,
यह आकृति मेरी पुरानी है
और पीछा नहीं छोड़ती।
आज से बीस साल पहले मैं ऐसा ही हुआ करता था।
जो कुछ इस चित्र में है, वही हुआ करता था। ऐसा ही क्रोधी, ऐसा ही दुष्ट, ऐसा ही हिंसा से भरा हुआ।
अब सब बदल गया, लेकिन चेहरे पर पुराने चिह्न रह गए हैं।
चिह्न छूट जाते हैं।
विचार भी आकृति रखता है,
भाव भी आकृति रखता है।
इन आकृतियों के बीच में अगर आप देख पाएं,
तो अरूप का दर्शन होता है।
दो विचार के बीच में खड़े हो जाएं,
दो विचार के बीच में झांक लें,
दो विचार के बीच में जो खाली जगह छूटे,
स्पेस बने, उसमें डूब जाएं और
आपको अरूप का दर्शन हो जाए।
भीतर अगर हो जाए,
तो फिर आप बाहर भी दो आकारों के बीच में कूद सकते हैं
और निराकार को जान सकते हैं।
कृष्ण कहते हैं, वही है ब्रह्म,
जिसका कभी नाश नहीं होता।
रूप का नाश है, अरूप का नाश नहीं, अरूप है ब्रह्म।
ऐसा सच्चिदानंद, विनाश जिसका नहीं होता, वही ब्रह्म है।
गीता दर्शन~
(भाग-4)~
(अध्याय-8)~
प्रवचन–89~
(भाग-4)~
(अध्याय-8)~
प्रवचन–89~
ओशो.....♡
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