Tuesday, 15 March 2016

जगह महलों में और झोपड़ों में नहीं हृदयों में होती है।

दानप्रत्येक व्यक्तिदान कर सकता है।जिसके पास कुछ भी नहीं है,वह भी खूब दान कर सकता है।और अक्सर ऐसा होता है,जिसके पास कुछ भी नहीं है,वही दान कर पाता है।क्योंकि उसे छोड़ने काडर ही नहीं होता।कुछ है ही नहीं,तो खोएगा क्या?इसलिए तुम अमीर आदमी कोकंजूस पाते हो,गरीब को कंजूस नहीं पाते।गरीब दे सकता है।ऐसे ही नहीं है।मैंने सुना है,एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर...रात जोर की वर्षा हो रही थी।फकीर था;छोटी—सी झोपड़ी थी।स्वयं और उसकी पत्नी,दोनों सोए थे।आधी रात किसी नेद्वार पर दस्तक दी।फकीर ने अपनी पत्नी से कहा:उठ, द्वार खोल दे।पत्नी द्वार के करीब सो रही थी।पत्नी ने कहा:इस आधी रात में जगह कहां है?कोई अगर शरण मांगेगातो तुम मना न कर सकोगे।वर्षा जोर की हो रही है।कोई शरण मांगने के लिए हीद्वार आया होगा।जगह कहां है?उस फकीर ने कहा: जगह?दो के सोने के लायक काफी है,तीन के बैठने के लायक काफी होगी।तू दरवाजा खोल!लेकिन द्वार आए आदमी कोवापिस तो नहीं लौटाना है।दरवाजा खोला।कोई शरण ही मांग रहा था;भटक गया थाऔर वर्षा मूसलाधार थी।तीनों बैठकर गपशप करने लगे।सोने लायक तो जगह न थी।थोड़ी देर बादकिसी और आदमी ने दस्तक दी।फिर फकीर ने अपनी पत्नी से कहा:खोल।पत्नी ने कहा:अब करोगे क्या, जगह कहां है?अगर किसी ने शरण मांगी?उस फकीर ने कहा:अभी बैठने लायक जगह है,फिर खड़े रहेंगे;मगर दरवाजा खोल।फिर दरवाजा खोला।फिर कोई आ गया।अब वे खड़ेहोकर बातचीत करने लगे।इतना छोटा झोपड़ा!और तब अंततःएक गधे ने आकरजोर से आवाज की,दरवाजे को हिलाया।फकीर ने कहा: दरवाजा खोलो।पत्नी ने कहा:अब तुम पागल हुए हो,यह गधा है, आदमी भी नहीं!फकीर ने कहा:हमने आदमियों के कारणदरवाजा नहीं खोला था,अपने हृदय के कारण खोला था।हमें गधे और आदमी में क्या फर्क?हमने मेहमानों के लिएदरवाजा खोला था।उसने भी आवाज दी है।उसने भी द्वार हिलाया है।उसने अपना काम पूरा कर दिया,अब हमेंअपना काम पूरा करना है।दरवाजा खोलो!उसकी औरत ने कहा:अब तो खड़े होने की भीजगह नहीं है!उसने कहा:अभी हम जरा आराम से खड़े हैं,फिर सटकर खड़े होंगे।और याद रख एक बात कियह कोई अमीर का महल नहीं हैकि जिसमें जगह की कमी हो!यह गरीब का झोपड़ा है,इसमें खूब जगह है!यह कहानी मैंने पढ़ी,तो मैं हैरान हुआ।उसने कहा:यह कोई अमीर का महल नहीं हैजिसमें जगह न हो।यह गरीब का झोपड़ा है,इसमें खूब जगह है।जगह महलों में औरझोपड़ों में नहीं होती,जगह हृदयों में होती है।!! ओशो !!

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