एक मित्र हैं मेरे। पत्नी मर गयी है उनकी। तो पत्नी की तस्वीरें सारे मकान में, द्वार-दरवाजे पर सब जगह लगा रखी हैं। किसी से मिलते-जुलते नहीं, तस्वीरें ही देखते रहते हैं। उनके किसी मित्र ने मुझसे कहा, ऐसा प्रेम पहले नहीं देखा। अदभुत प्रेम है। मैंने कहा, प्रेम नहीं है। वह आदमी अब डरा हुआ है। अब कोई भी दूसरी स्त्री उसके जीवन में प्रवेश कर सकती है। और ये तस्वीरें लगाकर अब वह पहरा लगा रहा है।
उन्होंने कहा– आप कैसी बात करते हैं?
मैंने कहा– मैं चलूंगा, मैं उन्हें जानता हूं।
और जब मैंने उन मित्र को कहा– सच बोलो, सोचकर बोलो, ठीक से विचार करके बोलो। अब तुम दूसरी स्त्रियों से भयभीत तो नहीं हो?
उन्होंने कहा– आपको यह कैसे पता चला? यही डर है मेरे मन में कि कहीं मैं अपनी पत्नी के प्रति विश्वासघाती सिद्ध न हो जाऊं। इसलिए उसकी याद को चारों तरफ इकट्ठी करके बैठा हुआ हूं। किसी स्त्री से मिलने में भी डरता हूं।
आदमी का मन बहुत जटिल है। और अब यह हवा भी चारों तरफ फैल गयी है कि पत्नी के प्रति इतना प्रेम है कि जो दो साल पहले पत्नी मर गयी, उसको वह जिलाये हुए हैं अपने मकान में। यह हवा भी उनकी सुरक्षा का कारण बनेगी। यह हवा भी उन्हें रोकेगी। यह प्रतिष्ठा भी रोकेगी।
पर मैंने उन मित्र के मित्र को कहा था कि ज्यादा देर नहीं चलेगी यह सुरक्षा। जब असली पत्नी नहीं बचती, तो ये तस्वीरें कितनी देर बचेंगी?
अभी मुझे निमंत्रण पत्र आया है कि उनका विवाह हो रहा है। यह ज्यादा दिन नहीं बच सकता। इतना भयभीत आदमी ज्यादा दिन नहीं बच सकता। इतना असुरक्षित आदमी ज्यादा दिन नहीं बच सकता।
वस्तुओं पर, व्यक्तियों पर जो हम “मेरे’ का फैलाव करते हैं, महावीर उसको भी हिंसा कहते हैं। महावीर परिग्रह को हिंसा कहते हैं। महावीर का वस्तुओं से कोई विरोध नहीं है, और न महावीर को इससे कोई प्रयोजन है कि आपके पास कोई वस्तु है या नहीं। महावीर का इससे जरूर प्रयोजन है कि आपका उससे कितना मोह है। कितना उसको आप पकड़े हुए हैं, कितना आपने उस वस्तु को अपनी आत्मा बना लिया है।
महावीर वाणी, भाग-१, प्रवचन-५, ओशो
Saturday, 26 March 2016
भयभीत आदमी
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