Saturday, 26 March 2016

भयभीत आदमी

एक मित्र हैं मेरे। पत्नी मर गयी है उनकी। तो पत्नी की तस्वीरें सारे मकान में, द्वार-दरवाजे पर सब जगह लगा रखी हैं। किसी से मिलते-जुलते नहीं, तस्वीरें ही देखते रहते हैं। उनके किसी मित्र ने मुझसे कहा, ऐसा प्रेम पहले नहीं देखा। अदभुत प्रेम है। मैंने कहा, प्रेम नहीं है। वह आदमी अब डरा हुआ है। अब कोई भी दूसरी स्त्री उसके जीवन में प्रवेश कर सकती है। और ये तस्वीरें लगाकर अब वह पहरा लगा रहा है।
उन्होंने कहा– आप कैसी बात करते हैं?
मैंने कहा– मैं चलूंगा, मैं उन्हें जानता हूं।
और जब मैंने उन मित्र को कहा– सच बोलो, सोचकर बोलो, ठीक से विचार करके बोलो। अब तुम दूसरी स्त्रियों से भयभीत तो नहीं हो?
उन्होंने कहा– आपको यह कैसे पता चला? यही डर है मेरे मन में कि कहीं मैं अपनी पत्नी के प्रति विश्वासघाती सिद्ध न हो जाऊं। इसलिए उसकी याद को चारों तरफ इकट्ठी करके बैठा हुआ हूं। किसी स्त्री से मिलने में भी डरता हूं।
आदमी का मन बहुत जटिल है। और अब यह हवा भी चारों तरफ फैल गयी है कि पत्नी के प्रति इतना प्रेम है कि जो दो साल पहले पत्नी मर गयी, उसको वह जिलाये हुए हैं अपने मकान में। यह हवा भी उनकी सुरक्षा का कारण बनेगी। यह हवा भी उन्हें रोकेगी। यह प्रतिष्ठा भी रोकेगी।
पर मैंने उन मित्र के मित्र को कहा था कि ज्यादा देर नहीं चलेगी यह सुरक्षा। जब असली पत्नी नहीं बचती, तो ये तस्वीरें कितनी देर बचेंगी?
अभी मुझे निमंत्रण पत्र आया है कि उनका विवाह हो रहा है। यह ज्यादा दिन नहीं बच सकता। इतना भयभीत आदमी ज्यादा दिन नहीं बच सकता। इतना असुरक्षित आदमी ज्यादा दिन नहीं बच सकता।
वस्तुओं पर, व्यक्तियों पर जो हम “मेरे’ का फैलाव करते हैं, महावीर उसको भी हिंसा कहते हैं। महावीर परिग्रह को हिंसा कहते हैं। महावीर का वस्तुओं से कोई विरोध नहीं है, और न महावीर को इससे कोई प्रयोजन है कि आपके पास कोई वस्तु है या नहीं। महावीर का इससे जरूर प्रयोजन है कि आपका उससे कितना मोह है। कितना उसको आप पकड़े हुए हैं, कितना आपने उस वस्तु को अपनी आत्मा बना लिया है।
महावीर वाणी, भाग-१, प्रवचन-५, ओशो

मन वेश्या की तरह है।

मन वेश्या की तरह है।
किसी का नहीं है मन। आज यहां, कल वहां; आज इसका, कल उसका। मन की कोई मालकियत नहीं है। और मन की कोई ईमानदारी नहीं है। मन बहुत बेईमान है। वह वेश्या की तरह है। वह किसी एक का होकर नहीं रह सकता। और जब तक तुम एक के न हो सको, तब तक तुम एक को कैसे खोज पाओगे? न तो प्रेम में मन एक का हो सकता है; न श्रद्धा में मन एक का हो सकता है—और एक के हुए बिना तुम एक को न पा सकोगे। तो कहीं तो प्रशिक्षण लेना पड़ेगा—एक के होने का।
इसी कारण पूरब के मुल्कों ने एक पत्नीव्रत को या एक पतिव्रत को बड़ा बहुमूल्य स्थान दिया। उसका कारण है। उसका कारण सांसारिक व्यवस्था नहीं है। उसका कारण एक गहन समझ है। वह समझ यह है कि अगर कोई व्यक्ति एक ही स्त्री को प्रेम करे, और एक ही स्त्री का हो जाए, तो शिक्षण हो रहा है एक के होने का। एक स्त्री अगर एक ही पुरुष को प्रेम करे और समग्र—भाव से उसकी हो रहे कि दूसरे का विचार भी न उठे, तो प्रशिक्षण हो रहा है; तो घर मंदिर के लिए शिक्षा दे रहा है; तो गृहस्थी में संन्यास की दीक्षा चल रही है। अगर कोई व्यक्त्ति एक स्त्री का न हो सके, एक पुरुष का न हो सके, फिर एक गुरु का भी न हो सकेगा; क्योंकि उसका कोई प्रशिक्षण न हुआ। जो व्यक्ति एक का होने की कला सीख गया है संसार में, वह गुरु के साथ भी एक का हो सकेगा। और एक गुरु के साथ तुम न जुड़ पाओ तो तुम जुड़ ही न पाओगे। वेश्या किसी से भी तो नहीं जुड़ पाती। और बड़ी, आश्चर्य की बात तो यह है कि वेश्या इतने पुरुषों को प्रेम करती है, फिर भी प्रेम को कभी नहीं जान पाती।
अभी एक युवती ने संन्यास लिया। वह आस्ट्रेलिया में वेश्या का काम करती रही। उसने कभी प्रेम नहीं जाना। यहां आकर वह एक युवक के प्रेम में पड़ गई, और पहली दफा उसने प्रेम जाना। और उसने मुझे आकर कहा कि इस प्रेम ने ही मुझे तृप्त कर दिया; अब मुझे किसी की भी कोई जरूरत नहीं है। और उसने कहा कि आश्चर्यों का आश्चर्य तो यह है कि मैं तो बहुत पुरुषों के संबंध में रही; लेकिन मुझे प्रेम का कभी अनुभव ही नहीं हुआ। प्रेम का अनुभव हो ही नहीं सकता बहुतों के साथ। बहुतों के साथ केवल ज्यादा से ज्यादा शरीर का भोग, उसका अनुभव हो सकता है। एक के साथ आत्मा का अनुभव होना शुरू होता है; क्योंकि एक में उस परम एक की झलक है। छोटी झलक है, बहुत छोटी; लेकिन झलक उसी की है।-ओशो - सुन भई साधो–(प्रवचन–17)

Tuesday, 15 March 2016

विचार भी आकृति रखता है:

विचार भी आकृति रखता है:~
प्रत्येक विचार का आकार है। और आपके भीतर प्रतिपल आकार बदलते रहते हैं।    आपके चेहरे पर भी आकार छप जाते हैं।
जो आदमी निरंतर क्रोध करता है,
वह जब नहीं भी क्रोध करता है,
तब भी लगता है, क्रोध में है।
वह निरंतर क्रोध की जो आकृति है,
उसके चेहरे पर स्थायी हो जाती है
और फिर चेहरा उसको छोड़ता नहीं।
क्योंकि चेहरे को पता है कि
कभी भी अभी थोड़ी देर में फिर जरूरत पड़ेगी।
वह पकड़े रखता है,
जस्ट टु बी इफिशिएंट, कुशल होने की दृष्टि से।
अब ठीक है, जब बार-बार जरूरत पड़ती है,
तो उसको हटाने की आवश्यकता भी क्या है!
जब तक हटाएंगे, तब तक पुनः आवश्यकता आ जाएगी।
तो रहने दो।
तो फिक्स्ड इमेज बैठ जाती है चेहरे पर, सभी लोगों के।
और कभी-कभी तो ऐसा हो जाता है कि पीछा ही नहीं छोड़ता।
हजरत मूसा के संबंध में सुना है।
हजरत मूसा दुनिया के उन थोड़े-से लोगों में एक हैं,
कृष्ण या बुद्ध या महावीर जैसे।
एक सम्राट ने अपने चित्रकार को कहा कि
तू जा और हजरत मूसा का एक चित्र बना ला।
हजरत मूसा जिंदा थे। वह चित्रकार गया और चित्र बना लाया।
सम्राट ने चित्र देखा और उसने कहा कि
जो कुछ हजरत मूसा के संबंध में मैंने सुना है
उसमें और इस चित्र में बहुत फर्क मालूम पड़ता है।
यह चित्र देखकर मालूम पड़ता है कि
किसी बहुत दुष्ट, हिंसक, क्रोधी आदमी का चित्र है।
इसमें हजरत मूसा की खबर नहीं मिलती।
उस चित्रकार ने कहा कि आश्चर्य!
आपने कभी हजरत मूसा को देखा?
उस सम्राट ने कहा, मैंने देखा नहीं है,
सुना है उनके बाबत; और उनसे मेरा लगाव भी बन गया।
इसीलिए तो चित्र बनाने तुझे भेजा।
तो उसने कहा कि मैं देखकर आ रहा हूं।
महीनों बैठकर इस चित्र को मैंने बनाया है।
इसमें रत्तीभर भूल नहीं है।
और हजरत मूसा से पूछकर आया हूं कि
चित्र ठीक बन गया जनाब!
उन्होंने कहा कि बिलकुल ठीक है। तब आया हूं।
सम्राट ने कहा, लेकिन कहीं न कहीं कुछ न कुछ भूल है।
और मालूम होता है कि हजरत मूसा या
तो दयावश तुझसे कह दिए कि ठीक है,
या उन्होंने अपनी शक्ल कभी आईने में न देखी होगी।
और कोई कारण नहीं हो सकता।
लेकिन सम्राट की यह जिद्द,
जिसने देखा न हो मूसा को, हैरानी की थी।
चित्रकार ने कहा, फिर चलिए।
और हजरत मूसा के पास चित्रकार और सम्राट पहुंचे।
सम्राट भी थोड़ा हैरान हुआ चेहरे को देखकर।
चित्रकार ही ठीक मालूम पड़ता है।
बाजी हार गया मालूम हुआ उसे।
फिर भी पूरी बाजी हार जाने के बाद सम्राट ने मूसा से कहा कि
एक सवाल मैं पूछने आया हूं।
एक बाजी हार गया इस चित्रकार के साथ।
पूछना मुझे यही है कि जो कुछ मैंने आपके संबंध में सुना है,
उसे सुनकर मैंने आपकी एक आकृति बनाई थी,
लेकिन इस आकृति में वह बात नहीं है।
हजरत मूसा ने कहा,
यह आकृति मेरी पुरानी है
और पीछा नहीं छोड़ती।
आज से बीस साल पहले मैं ऐसा ही हुआ करता था।
जो कुछ इस चित्र में है, वही हुआ करता था। ऐसा ही क्रोधी, ऐसा ही दुष्ट, ऐसा ही हिंसा से भरा हुआ।
अब सब बदल गया, लेकिन चेहरे पर पुराने चिह्न रह गए हैं।
चिह्न छूट जाते हैं।
विचार भी आकृति रखता है,
भाव भी आकृति रखता है।
इन आकृतियों के बीच में अगर आप देख पाएं,
तो अरूप का दर्शन होता है।
दो विचार के बीच में खड़े हो जाएं,
दो विचार के बीच में झांक लें,
दो विचार के बीच में जो खाली जगह छूटे,
स्पेस बने, उसमें डूब जाएं और
आपको अरूप का दर्शन हो जाए।
भीतर अगर हो जाए,
तो फिर आप बाहर भी दो आकारों के बीच में कूद सकते हैं
और निराकार को जान सकते हैं।
कृष्ण कहते हैं, वही है ब्रह्म,
जिसका कभी नाश नहीं होता।
रूप का नाश है, अरूप का नाश नहीं, अरूप है ब्रह्म।
ऐसा सच्चिदानंद, विनाश जिसका नहीं होता, वही ब्रह्म है।
गीता दर्शन~
(भाग-4)~
(अध्याय-8)~
प्रवचन–89~
ओशो.....♡

जगह महलों में और झोपड़ों में नहीं हृदयों में होती है।

दानप्रत्येक व्यक्तिदान कर सकता है।जिसके पास कुछ भी नहीं है,वह भी खूब दान कर सकता है।और अक्सर ऐसा होता है,जिसके पास कुछ भी नहीं है,वही दान कर पाता है।क्योंकि उसे छोड़ने काडर ही नहीं होता।कुछ है ही नहीं,तो खोएगा क्या?इसलिए तुम अमीर आदमी कोकंजूस पाते हो,गरीब को कंजूस नहीं पाते।गरीब दे सकता है।ऐसे ही नहीं है।मैंने सुना है,एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर...रात जोर की वर्षा हो रही थी।फकीर था;छोटी—सी झोपड़ी थी।स्वयं और उसकी पत्नी,दोनों सोए थे।आधी रात किसी नेद्वार पर दस्तक दी।फकीर ने अपनी पत्नी से कहा:उठ, द्वार खोल दे।पत्नी द्वार के करीब सो रही थी।पत्नी ने कहा:इस आधी रात में जगह कहां है?कोई अगर शरण मांगेगातो तुम मना न कर सकोगे।वर्षा जोर की हो रही है।कोई शरण मांगने के लिए हीद्वार आया होगा।जगह कहां है?उस फकीर ने कहा: जगह?दो के सोने के लायक काफी है,तीन के बैठने के लायक काफी होगी।तू दरवाजा खोल!लेकिन द्वार आए आदमी कोवापिस तो नहीं लौटाना है।दरवाजा खोला।कोई शरण ही मांग रहा था;भटक गया थाऔर वर्षा मूसलाधार थी।तीनों बैठकर गपशप करने लगे।सोने लायक तो जगह न थी।थोड़ी देर बादकिसी और आदमी ने दस्तक दी।फिर फकीर ने अपनी पत्नी से कहा:खोल।पत्नी ने कहा:अब करोगे क्या, जगह कहां है?अगर किसी ने शरण मांगी?उस फकीर ने कहा:अभी बैठने लायक जगह है,फिर खड़े रहेंगे;मगर दरवाजा खोल।फिर दरवाजा खोला।फिर कोई आ गया।अब वे खड़ेहोकर बातचीत करने लगे।इतना छोटा झोपड़ा!और तब अंततःएक गधे ने आकरजोर से आवाज की,दरवाजे को हिलाया।फकीर ने कहा: दरवाजा खोलो।पत्नी ने कहा:अब तुम पागल हुए हो,यह गधा है, आदमी भी नहीं!फकीर ने कहा:हमने आदमियों के कारणदरवाजा नहीं खोला था,अपने हृदय के कारण खोला था।हमें गधे और आदमी में क्या फर्क?हमने मेहमानों के लिएदरवाजा खोला था।उसने भी आवाज दी है।उसने भी द्वार हिलाया है।उसने अपना काम पूरा कर दिया,अब हमेंअपना काम पूरा करना है।दरवाजा खोलो!उसकी औरत ने कहा:अब तो खड़े होने की भीजगह नहीं है!उसने कहा:अभी हम जरा आराम से खड़े हैं,फिर सटकर खड़े होंगे।और याद रख एक बात कियह कोई अमीर का महल नहीं हैकि जिसमें जगह की कमी हो!यह गरीब का झोपड़ा है,इसमें खूब जगह है!यह कहानी मैंने पढ़ी,तो मैं हैरान हुआ।उसने कहा:यह कोई अमीर का महल नहीं हैजिसमें जगह न हो।यह गरीब का झोपड़ा है,इसमें खूब जगह है।जगह महलों में औरझोपड़ों में नहीं होती,जगह हृदयों में होती है।!! ओशो !!

संभोग से समाधि की और—26

भारत के युवक के चारों तरफ सेक्‍स घूमता रहता है पूरे वक्‍त। और इस घूमने के कारण उसकी सारी शक्‍ति इसी में लीन और नष्‍ट हो जाती है। जब तक भारत के युवक की सेक्‍स के इस रोग से मुक्‍ति नहीं होती, तब तक भारत के युवक की प्रतिभा का जन्‍म नहीं हो सकता। प्रतिभा का जन्‍म तो उसी दिन होगा, जिस दिन इस देश में सेक्‍स की सहज स्‍वीकृति हो जायेगी। हम उसे जीवन के एक तथ्‍य की तरह अंगीकार कर लेंगे—प्रेम से, आनंद से—निंदा से नहीं। और निंदा और घृणा का कोई कारण भी नहीं है।
सेक्‍स जीवन का अद्भुत रहस्‍य है। वह जीवन की अद्भुत मिस्ट्रि हे। उससे कोई घबरानें की,भागने की जरूरत नहीं है। जिस दिन हम इसे स्‍वीकार कर लेंगे, उस दिन इतनी बड़ी उर्जा मुक्‍त होगी भारत में कि हम न्‍यूटन पैदा कर सकेंगे,हम आइंस्‍टीन पैदा कर सकेंगे। उस दिन हम चाँद-तारों की यात्रा करेंगे। लेकिन अभी नहीं। अभी तो हमारे लड़कों को लड़कियों के स्‍कर्ट के आस पास परिभ्रमण करने से ही फुरसत नहीं है। चाँद तारों का परिभ्रमण कौन करेगा। लड़कियां चौबीस घंटे अपने कपड़ों को चुस्‍त करने की कोशिश करें या कि चाँद तारों का विचार करें। यह नहीं हो सकता। यह सब सेक्सुअलिटी का रूप है।
हम शरीर को नंगा देखना और दिखाना चाहते है। इसलिए कपड़े चुस्‍त होते चले जाते है।
सौंदर्य की बात नहीं है यह, क्‍योंकि कई बार चुस्‍त कपड़े शरीर को बहुत बेहूदा और भोंडा बना देते है। हां किसी शरीर पर चुस्‍त कपड़े सुंदर भी हो सकते है। किसी शरीर पर ढीले कपड़े सुंदर हो सकते है। और ढीले कपड़े की शान ही और है। ढीले कपड़ों की गरिमा और है। ढीले कपड़ों की पवित्रता और है।
लेकिन वह हमारे ख्‍याल में नहीं आयेगा। हम समझेंगे यह फैशन है, यह कला है, अभिरूचि है, टेस्‍ट है। नहीं ‘’टेस्‍ट’’ नहीं है। अभी रूचि नहीं है। वह जो जिसको हम छिपा रहे है भीतर दूसरे रास्‍तों से प्रकट होने की कोशिश कर रहा है। लड़के लड़कियों का चक्‍कर काट रहे है। लड़कियां लड़कों के चक्र काट रही है। तो चाँद तारों का चक्‍कर कौन काटेगा। कौन जायेगा वहां? और प्रोफेसर? वे बेचारे तो बीच में पहरेदार बने हुए खड़े है। ताकि लड़के लड़कियां एक दूसरे के चक्‍कर न काट सकें। कुछ और उनके पास काम है भी नहीं। जीवन के और सत्‍य की खोज में उन्‍हें इन बच्‍चों को नहीं लगाना है। बस, ये सेक्‍स से बचे जायें,इतना ही काम कर दें तो उन्‍हें लगता है कि उनका काम पूरा हो गया।
यह सब कैसा रोग है, यह कैसा डिसीज्‍ड माइंड, विकृत दिमाग है हमारा। हम सेक्‍स के तथ्‍यों की सीधी स्‍वीकृति के बिना इस रोग से मुक्‍त नहीं हो सकते। यह महान रोग है।
इस पूरी चर्चा में मैंने यह कहने की कोशिश की है कि मनुष्‍य को क्षुद्रता से उपर उठना है। जीवन के सारे साधारण तथ्‍यों से जीवन के बहुत ऊंचे तथ्‍यों की खोज करनी है। सेक्‍स सब कुछ नहीं है। परमात्‍मा भी है दुनिया में। लेकिन उसकी खोज कौन करेगा। सेक्‍स सब कुछ नहीं है इस दुनिया में सत्‍य भी है। उसकी खोज कौन करेगा। यहीं जमीन से अटके अगर हम रह जायेंगे तो आकाश की खोज कौन करेगा। पृथ्‍वी के कंकड़ पत्‍थरों को हम खोजते रहेंगे तो चाँद तारों की तरफ आंखे उठायेगा कौन?
संभोग से समाधि की और—26

जहां जाएंगे, बुराई ले जाएंगे।

मैंने सुना है कि नानक एक गांव में ठहरे। गांव बड़े भले लोगों का था, बड़े साधुओं का था, बड़े संत—सज्जन पुरुष थे। नानक के शब्द—शब्द को उन्होंने सुना, चरणों का पानी धोकर पीया। नानक को परमात्मा की तरह पूजा। और जब नानक उस गांव से विदा होने लगे, तो वे सब मीलों तक रोते हुए उनके पीछे आए और उन्होंने कहा, हमें कुछ आशीर्वाद दें। तो नानक ने कहा, एक ही मेरा आशीर्वाद है कि तुम उजड़ जाओ।
सदमा लगा। नानक के शिष्य तो बहुत हैरान हुए, कि यह क्या बात कही! इतना भला गांव। लेकिन अब बात हो गई और एकदम पूछना भी ठीक न लगा। सोचेंगे, विचार करेंगे, फिर पूछ लेंगे। फिर दूसरे गांव में पड़ाव हुआ। वह दुष्टों का गांव था। सब उपद्रवी जमीन के वहा इकट्ठे थे। उन्होंने न केवल अपमान किया, तिरस्कार किया, पत्थर फेंके, गालियां दीं, मार—पीट की नौबत खड़ी हो गई; रात रुकने भी न दिया।
जब गांव से नानक चलने लगे, तो वे तो आशीर्वाद मांगने वाले थे ही नहीं। शोरगुल मचाते, गालियां बकते नानक के पीछे गांव के बाहर तक आए थे। गांव के बाहर आकर नानक ने अपनी तरफ से आशीर्वाद दिया कि सदा यहीं आबाद रहो।
तब शिष्यों को मुश्किल हो गया। उन्होंने कहा कि अब तो पूछना ही पड़ेगा। यह तो हद हो गई। कुछ भूल हो गई आपसे। पिछले गांव में भले लोग थे, उनसे कहा, बरबाद हो जाओ! उजड़ जाओ! और इन गुंडे—बदमाशों को कहा कि सदा आबाद रहो, खुश रहो, सदा बसे रहो!
नानक ने कहा कि भला आदमी उजड़ जाए, तो बंट जाता है। वह जहां भी जाएगा, भलेपन को ले जाएगा। वह फैल जाए सारी दुनिया पर। और ये बुरे आदमी, ये इसी गांव में रहें, कहीं न जाएं। क्योंकि ये जहां जाएंगे, बुराई ले जाएंगे।
गीता दर्शन~
ओशो

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     ·    ·  ....... प्रेम आत्मा का भोजन है। प्रेम आत्मा में छिपी परमात्मा की ऊर्जा है। प्रेम आत्मा में निहित परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग ...