Wednesday, 15 February 2017

चीनी चित्रकार

                              Image result for समराट और चीनी चित्रकार      

सुनी है मैंने एक छोटी सी कहानी, वह मैं आपसे कहूं। सुना है मैंने कि एक ईरानी बादशाह के दरबार में एक चीनी चित्रकार ने निवेदन किया कि मैं चीन से आया हूं। बहुत बड़ी कला का धनी हूं। चित्र बना सकता हूं ऐसे, जैसे कि आपने कभी न देखे हों। सम्राट ने कहा, जरूर बनाओ। लेकिन हमारे दरबार में चित्रकारों की कमी नहीं है और बहुत अनूठे चित्र मैंने देखे हैं। उस चीनी चित्रकार ने कहा तो मैं प्रतियोगिता के लिए भी तैयार हूं।
जो श्रेष्ठतम कलाकार था सम्राट के दरबार का, वह प्रतियोगिता के लिए चुना गया। और सम्राट ने कहाकि पूरी शक्ति लगाना है, यह साम्राज्य की प्रतिष्ठा का सवाल है। एक परदेशी तुम्हें हरा न जाए। छह महीने का उन्हें समय मिला था।
ईरानी चित्रकार बड़ी मेहनत में लग गया। दस—बीस सहयोगियों को लेकर उसने एक भवन की पूरी दीवार को चित्रों से भर डाला। उसकी मेहनत की खबर दूर—दूर तक पहुंच गई। लोग दूर—दूर से उसकी मेहनत को देखने आने लगे। लेकिन उससे भी ज्यादा चमत्कार: की बात तो यह थी कि वह चीनी चित्रकार ने कहा कि मुझे किसी उपकरण की जरूरत नहीं और न रंगों की कोई जरूरत है। सिर्फ मेरा इतना ही आग्रह है कि जब तक चित्र पूरा न बन जाए तब तक मेरी दीवार के सामने से पर्दा नहीं उठाया जा सके।
वह रोज अपने पर्दे के पीछे चला जाता। सांझ को थका—मादा लौटता, माथे पर पसीने की बूंदें होतीं। लेकिन बड़ी कठिनाई और बड़ी हैरानी और बड़ी अचंभे की बात यह थी कि वह न तो तूलिका ले जाता, न रंग ले जाता पर्दे के पीछे। उसके हाथों में रंग के कोई निशान न होते। उसके कपड़ों पर रंग के कोई दाग न होते। उसके हाथ में कोई तूलिका न होती। सम्राट को शक होने लगा कि वह पागल तो नहीं है! क्योंकि प्रतियोगिता होगी कैसे? लेकिन छह महीने प्रतीक्षा करनी जरूरी थी। शर्त पूरी करनी जरूरी थी।
छह महीने बडी मुश्किल से कटे। दूर—दूर तक ईरानी चित्रकार के चित्रों की खबर पहुंवी। साथ ही यह खबर भी पहुंची कि एक पागल प्रतियोगी भी है, जो बिना किसी रंग के प्रतियोगिता कर रहा है। छह महीने लोग ऐसी आतुरता से प्रतीक्षा किए कि जिसका कोई हिसाब नहीं। वह छह महीने बाद पर्दा उठने को था।
सम्राट गया। ईरानी चित्रकार के चित्र देखकर वह दंग हो गया। बहुत चित्र उसने जीवन में देखे थे। लेकिन नहीं, ऐसा श्रम शायद ही कभी किया गया हो! फिर उसने चीनी चित्रकार से कहा। चीनी चित्रकार ने अपनी दीवार के सामने का पर्दा हटा दिया। सम्राट तो बहुत हैरान हो गया। ठीक वही चित्र! जो ईरानी चित्रकार ने बनाया था, वही चित्र चीनी चित्रकार ने भी बनाया था। पर एक और खूबी थी कि वह चित्र दीवार के ऊपर नहीं, दीवार के भीतर बीस फीट अंदर दिखाई पड़ता था। सम्राट ने पूछा, तुमने किया क्या है! क्या जादू है?
उसने कहा, मैंने कुछ किया नहीं। मैं सिर्फ दर्पण बनाने में कुशल हूं। तो मैंने दीवार को दर्पण बनाया। वह छह महीने दीवार को घिस—घिसकर मैंने दर्पण बनाया। और जो चित्र आप देख रहे हैं दीवार में, वह तो ईरानी चित्रकार का ही है सामने की दीवार पर। मैंने सिर्फ दीवार दर्पण बनाई है।
जीत गया वह प्रतियोगिता। क्योंकि दर्पण में झलककर वही ईरानी चित्र इतना गहरा हो उठा, जैसा वह खुद स्वयं में नहीं था। क्योंकि ईरानी चित्र तो दीवार के ऊपर था। दर्पण में जाकर वह भीतर गहरे हो गया। डेप्थ, थी डायमेंशनल हो गया। ईरानी चित्र तो टू डायमेंशन में था, दो आयाम में था। उसमें गहराई न थी। चीनी चित्रकार का चित्र तीन डायमेंशन में हो गया, उसमें गहराई भी थी।
सम्राट ने कहा कि तुमने पहले क्यों न कहा कि तुम सिर्फ दर्पण बनाना जानते हो! उस चीनी चित्रकार ने कहा कि मैं कोई चित्रकार नहीं हूं फकीर हूं। उसने कहा, और मजे की बात है। पहले तुमने यह न बताया कि तुम दर्पण बनाते हो, अब तुम बताते हो कि तुम फकीर हो! तो फकीर को दर्पण बनाने से क्या प्रयोजन? उस चीनी चित्रकार ने कहा कि मैंने अपने को दर्पण बनाकर जो चित्र देखा जगत का, तब से मैं दर्पण ही बनाता हूं। जैसे इस दीवार को मैंने घिस—घिसकर दर्पण कर दिया है, ऐसे ही मैंने अपने को घिस—घिसकर भी दर्पण कर लिया है। और मैंने इस जगत की जो सुंदर प्रतिमा फिर अपने में देखी है, वैसी बाहर कहीं भी नहीं है। लेकिन जिस दिन मैं दर्पण बन गया, उस दिन मैंने सारे जगत को अपने में समाया हुआ देखा और जाना। सब भूत मेरे भीतर समा गए।
जिस दिन हमारा हृदय दर्पण की तरह बनता है, उस दिन हम प्रभु को देख पाते हैं, समग्रीभूत अपने ही भीतर। और जिस दिन हम यह देख पाते हैं, उसी दिन सारा जगत भी दर्पण बन जाता है। फिर हम अपने को भी प्रतिपल सब जगह देख पाते हैं। लेकिन जगत को दर्पण नहीं बनाया जा सकता। बनाया तो जा सकता है दर्पण स्वयं को ही। इसलिए यात्री — साधना का यात्री — अपने को ही दर्पण बनाने से शुरू करता है।
ओशो , ईशावास्‍य उपनिषाद -5

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