तुम अगर किसी व्यक्ति को प्रेम करते हो, तो तुम्हें उसमें कुछ बातें दिखाई पडे़गी जो किसी और को दिखाई नहीं पडे़गी। तुम्हें उसमें कुछ माधुर्य दिखाई पडे़गा जो किसी और को दिखाई नहीं पडे़गा। वह माधुर्य नाजुक है; उसके लिए प्रेम का स्पर्श चाहिए, तो ही प्रकट होता है। तुम्हें उस व्यक्ति में एक गीत की अनुगूंज सुनाई पडे़गी, जो किसी और को सुनाई नहीं पडे़गी। उसके लिए जितने करीब आना जरुरी है, उतना कोई करीब नहीं है; तुम्हीं उतने करीब हो।
इसलिए जिसको हम प्रेम करते हैं; उसमें सौदर्य प्रकट होने लगता है। लोग सोचते हैं कि जिसमें सौदर्य होता है हम उसके प्रेम में गिरते हैं, वे गलत सोचते हैं। तुम जिसके प्रेम में पड़ जाते हो, उसमें सौदर्य दिखाई पड़ता है। उसमें जीवन की सारी महत्ता, सारी गरिमा प्रकट होने लगती है। और ऐसा नहीं है कि तुम कल्पना कर रहे हो; प्रेम की आंख खुलते ही तुम्हें अदृश्य दृश्य होने लगता है, अगोचर गोचर होने लगता है। जो छिपा है उसकी उपस्थिति अनुभव होने लगती है। बिना द्वार खुले कोई तुम्हारे भीतर आ जाता है।
ओशो,
मरौ हे जोगी मरौ
मरौ हे जोगी मरौ
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