Wednesday, 23 November 2016

विवाहित जीवन के संबंध में आपके क्या खयाल हैं?

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विवाहित जीवन के संबंध में आपके क्या खयाल हैं?
मैं विवाहित नहीं हूं, इससे ही मेरे क्या खयाल हैं, तुम्हें समझ में आ जाना चाहिए। इससे बड़ा वक्तव्य और क्या होगा?
तुम मुझसे पूछते हो कि विवाहित जीवन के संबंध में आपके क्या खयाल हैं? पहली तो बात, अविवाहित आदमी से ऐसा पूछना नहीं चाहिए। विवाहित आदमी से पूछना चाहिये। हालांकि विवाहित आदमी भी...अगर पत्नी मौजूद हो तो पति सच नहीं बोल सकता, अगर पति मौजूद हो तो पत्नी सच नहीं बोल सकती, या डर भी हो कि दूसरे को पता चल जाएगा तो भी सच नहीं बोला जा सकता।
टालस्टाय, चैखव, तुर्गनेव रूस के तीन बड़े विचारशील लेखक एक बगीचे में बैठकर गपशप कर रहे थे। बात विवाह की उठ गई। बात भी कहां है और इस दुनिया में! अब बोलो यहां तुम आध्यात्मिक सत्संग करने आये, बात विवाह की उठा ली! विवाह का भूत तुम्हारे पीछे पड़ा होगा। विवाह की बात उठ गई। चैखव ने कहा: तुर्गनेव से कि तुम्हारा क्या विचार है? तुर्गनेव ने अपना विचार बताया। तुर्गनेव ने पूछा चैखव से, तुम्हारा क्या विचार है? चैखव ने अपना विचार बताया। फिर दोनों ने पूछा टालस्टाय से, आप चुप क्यों हो? आप क्यों नहीं बोलते? उन्होंने कहा, मैं तब बोलूंगा जब मेरा एक पैर कब्र में। जल्दी से बोलकर मैं कब्र में समा जाऊंगा, क्योंकि मुझे पता है कि तुम दोनों मेरी पत्नी से भी मिलते-जुलते हो। मेरा मन्तव्य जल्दी पहुंच जायेगा उस तक। अभी मैं सत्य नहीं बोल सकता। सत्य तो मैं सिर्फ कब्र में जाते वक्त ही बोलूंगा, आखिरी वक्त कह दूंगा कि यह है सत्य।
एक ट्रेन में दो यात्री साथ बैठे हैं। एक ने पूछा दूसरे से: विवाहित जीवन के बारे में तुम्हें मेरे विचार मालूम हैं? दूसरे यात्री ने कहा: क्या तुम विवाहित हो?
पहला यात्री: हां।
तो दूसरे ने कहा: तो फिर मालूम हैं। अब और बताने को क्या है?
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उससे पूछ रही थी: क्या तुमने कभी सोचा मुल्ला कि यदि मेरी शादी किसी और से हो जाती तो कितना अच्छा होता? मुल्ला ने उत्तर दिया: नहीं, मैं किसी व्यक्ति का बुरा क्यों चाहने लगा!
एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन मेरे पास बैठा था। अखबार सामने पड़ा था, शिमला की तस्वीर छपी थी--सुंदर झील, सुंदर पहाड़ियां! मुल्ला एकदम बोला: अहा शिमला! प्यारा शिमला! जिंदगी के रंगीन और मधुर क्षण मुझे शिमला ने ही दिये हैं!
मैं थोड़ा चौंका, क्योंकि मुझे पता है मुल्ला नसरुद्दीन कभी शिमला गया नहीं। तो मैंने पूछा: मगर मुल्ला, तुम तो कभी शिमला गये ही नहीं!...उसने कहा कि नहीं, मेरी पत्नी गई थी।
एक आदमी मुझसे आकर पूछा कि ओशो, आपके आश्रम का कोई युवक नियम भंग करके शादी कर ले तो आप उसे क्या सजा देते हैं? मैंने कहा: कुछ नहीं। उसने कहा: क्यों? मैंने कहा: वही उसकी सजा है। और बेचारे को सजा! इतना पर्याप्त है, अब भोगेगा।
अकेले लोग रह नहीं सकते, साथ चाहिए। साथ भी रह नहीं सकते, क्योंकि जब अकेले ही नहीं रह सकते तो साथ कैसे रह सकेंगे? जब अपने साथ न रह सके तो दूसरे के साथ कैसे रह सकेंगे? दो व्यक्ति जो दोनों ही अकेले रहने में असमर्थ हैं, जब मिल जायेंगे तो उनके दुखों में जोड़ ही नहीं होगा, गुणनफल हो जाता है। और यही हो रहा है। विवाह के नाम पर ऐसे व्यक्ति साथ हो लेते हैं, जिनको अभी अकेले में जीना भी नहीं आता। तो साथ जीना तो जरा और कुशलता की बात है, और कला की बात है।
सहज योग--(प्रवचन--19)

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