Monday, 15 August 2016

संभोग से समाधि की ओर (ओशो)

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लेकिन जो जानते है, वे यह कहेंगे, दो व्‍यक्‍ति अनिवार्यता: दो अलग-अलग व्‍यक्‍ति है। वे जबरदस्‍ती क्षण भी को मिल सकते है। लेकिन सदा के लिए नहीं मिल सकते। यही प्रेमियों की पीड़ा और कष्‍ट है कि निरंतर एक संघर्ष खड़ा हो जाता है। जिसे प्रेम करते है, उसी से संघर्ष करते है, उसी से तनाव, अशांति और द्वेष खड़ा हो जाता है। क्‍योंकि ऐसा प्रतीत होने लगता है। जिससे मैं मिलना चाहता हूं, शायद वह मिलने को तैयार नहीं। इसलिए मिलना पूरा नहीं हो पाता।
लेकिन इसमें व्‍यक्‍तियों का कसूर नहीं है। दो व्‍यक्‍ति अनंत कालीन तल पर नहीं मिल सकते। हम क्षण के लिए मिल सकते है। क्‍योंकि सीमित है। उनके मिलने का क्षण भी सीमित होगा। अगर अनंत मिलन चाहिए तो वह परमात्‍मा से हो सकता है। वह समस्‍त अस्‍तित्‍व से हो सकता है।
जो लोग संभोग की गहराई में उतरते हैं, उन्‍हें पता चलता है, एक क्षण मिलन का इतना आनंद है, तो अनंत काल के लिए मिल जाने का कितना आनंद होगा। उसका तो हिसाब लगाना मुश्किल होगा। एक क्षण मिलन की इतनी अद्भुत प्रतीति है तो अनंत से मिल जाने की कितनी प्रतीति होगी, कैसी प्रतीति होगी।
जैसे एक घर में दीया जल रहा हो और उस दीये से हम हिसाब लगाना चाहें कि सूरज की रोशनी में कितने दीये जल रहे है। हिसाब लगाना बहुत मुशिकल है। एक दिया बहुत छोटी बात है। सूरज बड़ी बात है। सूरज पृथ्‍वी से साठ हजार गुणा बड़ा है। दस करोड़ मील दूर है। तब भी हमें तपाता है। तब भी हमें झुलसा देता है। उतने बड़े सूरज को एक छोटे से दीये से हम तौलने जायें तो कैसे तोल सकेंगे?
लेकिन नहीं, एक दीये से सूरज को तौला जा सकता है। क्‍योंकि दीया भी सीमित है और सूरज भी सीमित है। दीये में एक कैंडल का लाइट है तो अरबों-खरबों कैंडल का लाइट होगा सूरज में। लेकिन सीमा आंकी जा सकती है, तौली जा सकती है।
लेकिन संभोग में जो आनंद है और समाधि में जो आनंद है, उसे फिर भी नहीं तौला जा सकता। क्‍योंकि संभोग अत्‍यंत क्षणिक दो क्षुद्र व्‍यक्‍तियों का मिलन है और समाधि बूंद का अनंत के सागर से मिल जाना है। उसे कोई भी नहीं तौल सकता। उसे तौलने का कोई भी उपाय नहीं है। उसे......कोई मार्ग नहीं कि हम जाँचे कि वह कितना होगा।
इसलिए जब वह उपलब्‍ध होता है, जब वह उपलब्‍ध हो जाता है तो फिर कहां सेक्‍स, फिर कहां संभोग, फिर कहां कामना? जब इतना अनंत मिल गया तब कोई कैसे सोचेगा, कैसे विचार करेगा उसी क्षण भर के सुख को पाने के लिए? तब वह सुख दुःख जैसा प्रतीत होता है। तब वह सुख पागलपन जैसा प्रतीत होता है। तब वह सुख शक्‍ति का अपव्‍यय प्रतीत होता है, और ब्रह्मचर्य सहज फलित हो जाता है।
लेकिन संभोग और समाधि के बीच एक सेतु है, एक ब्रिज है, एक यात्रा है, एक मार्ग है। समाधि जिसका अंतिम छोर है आकाश में जाकर, संभोग उस सीढ़ी का पहला सोपान है, पहला पाया है। और जो इस पाये के ही विरोध में जाते है, वे आगे नहीं बढ़ पाते। यह मैं आपसे कह देना चाहता हूं, जो पहले पाये को इंकार करने लगते है, वे दूसरे पाये पर पैर नहीं रख सकते है। मैं आपसे यह कह देना चाहता हूं। .इस पहले पाये पर भी अनुभव से ज्ञान से, बोध से पैर रखना जरूरी है। इसलिए नहीं कि हम उसी पर रुके रह जायें। बल्‍कि इसलिए कि हम उस पर पैर रखकर आगे निकल जा सकें।
लेकिन मनुष्‍य जाति के साथ एक अदभुत दुर्घटना हो गयी। जैसा मैंने कहा, वह पहले पाये के विरोध में हो गया है। और अंतिम पाये पर पहुंचना चाहता है। उसे पहले पाये का ही अनुभव नहीं, उसे दीये का भी अनुभव नहीं और वह सूरज के अनुभव की आकांशा करता है। यह कभी भी नहीं हो सकता। जो दीया मिला है प्रकृति की तरफ से पहले उस दीये की रोशनी को समझ लेना जरूरी है, पहले उस दीये की हल्‍की सी रोशनी को जो क्षण भर में जीती है, और बुझ जाती है। जरा सा हवा का झोंका जिसे मिटा देता है। उस रोशनी को भी जान लेना जरूरी है। ताकि सूरज की आकांशा की जा सके। ताकि सूरज तक पहुंचने के लिए कदम उठाया जा सके, ताकि सूरज की प्‍यास, असंतोष, आकांक्षा, और अभीप्‍सा भीतर पैदा की जा सके।
संगीत के छोटे से अनुभव से ही परम संगीत की तरफ जाया जा सकता है। प्रकाश के छोटे से अनुभव से अनंत प्रकाश की तरफ जाया जा सकता है। एक बूंद को जान लेना पूरे सागर को जान लेने के लिए पहला कदम है। एक छोटे से अणु को जानकर हम पदार्थ की सारी शक्‍ति को जान लेते है।
संभोग का एक छोटा सा अणु है, जो प्रकृति की तरफ से मनुष्‍य को मुफ्त में मिला हुआ है। लेकिन हम उसे जान नहीं पाते हे। आँख बन्‍द करके जी लेते है किसी तरह, पीठ फेर कर जी लेते है। उसकी स्‍वीकृति नहीं हमारे मन में, स्‍वीकार नहीं हमारे मन में। आनंद और अहो भाव से उसके जानने और जीने और उसमें प्रवेश करने की कोई विधि नहीं हमारे हाथ में।
मैंने जैसा आप से कहा, जिस दिन आदमी इस विधि को जान पायेगा, उस दिन हम दूसरे तरह के मनुष्‍य को पैदा करने में समर्थ हो जायेगे।
मैं इस संदर्भ में आपसे यह कहना चाहता हूं कि स्‍त्री और पुरूष दो निगेटिव पोल्‍स है, विद्युत के—पाजीटिव और निगेटिव, विधायक और नकारात्‍मक दो छोर है। उन दोनों के मिलन से एक संगीत पैदा होता है। विद्युत का पूरा चक्र पैदा होता है।
मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूं। कि अगर गहराई और देर तक संभोग स्‍थिर रह जायें तो दो जोड़ा....स्‍त्री और पुरूष का एक जोड़ा अगर आधे घंटे के पास तक संभोग में रह जाये तो दोनों के पास प्रकाश का एक विलय, दोनों के पास प्रकाश का एक घेरा निर्मित हो जाता है। दोनों की विद्युत जब पूरी तरह मिलती है तो आसपास अंधेरे में भी रोशनी दिखाई पड़ने लगती है।
कुछ अद्भुत खोजी यों ने इस दिशा में काम किया है। और फोटोग्राफ भी लिए है। जिस जोड़े को उस विद्युत का अनुभव उपलब्‍ध हो जाता है। दोनों की विद्युत जब पुरी तरह से मिलती है। वह जोड़ा सदा के लिए संभोग से बहार हो जाता है।
लेकिन यह हमारा अनुभव नहीं है, और ये बातें अजीब मालूम होती है। ये तो हमारे अनुभव में नहीं है बात। अगर अनुभव में नहीं है तो उसका मतलब है कि आप फिर से सोचें, फिर से देखें और जिन्‍दगी को कम से कम सेक्‍स की जिन्‍दगी को क ख ग से फिर से शुरू करें।
समझने के लिए बोध पूर्वक जीने के लिए—मेरी अपनी अनुभूति यह है, मेरी अपनी धारणा यह है कि महावीर यह बुद्ध या क्राइस्‍ट और कृष्‍ण आकस्‍मिक रूप से नहीं पैदा हाँ जाते। यह उन दो व्‍यक्‍तियों के परिपूर्ण मिलन का परिणाम है।
मिलन जितना गहरा होगा, जो संतति पैदा होगी। वह उतनी ही अद्भुत होगी। मिलन जितना अधूरा होगा, जो संतति पैदा होगी वह उतनी ही कचरा और दलित होगी।
आज सारी दुनिया में मनुष्‍यता का स्‍तर रोज नीचे चला जा रहा है। लोग कहते है कि कलयुग आ गया है। इसलिए स्‍तर नीचे जा रहा है। लोग कहते है कि नीति बिगड़ गयी है। इसलिए स्‍तर नीचे जा रहा है। गलत, बेकार की और फिजूल की बातें करते है।
सिर्फ एक फर्क पडा है। मनुष्‍य के संभोग का स्‍तर नीचे उतर गया है। मनुष्‍य के संभोग ने पवित्रता खो दी है। मनुष्‍य के संभोग ने वैज्ञानिकता खो दी है। सरलता और प्राकृतिकता खो दी है। मनुष्‍य का संभोग जबरदस्‍ती एक नाइट मेयर, एक दुखद स्‍वप्‍न जैसा हो गया है। मनुष्‍य के संभोग ने हिंसात्‍मक स्‍थिति ले ली है। वह एक प्रेमपूर्ण कृत्‍य नहीं है। वह एक पवित्र और शांत कृत्‍य नहीं है। वह एक ध्‍यान पूर्ण कृत्‍य नहीं है। इसलिए मनुष्‍य नीचे उतरता चला जायेगा।
एक कलाकार कुछ चीज बनाता हो, कोई मूर्ति बनाता हो और कलाकार नशे में हो, तो आप आशा करते है कि कोई सुन्‍दर मूर्ति बन पायेगी? एक नृत्‍यकार नाच रहा हो, क्रोध से भरा हो, अशांत हो, चिंतित हो, तो आप आशा करते है कि नृत्‍य सुन्‍दर हो सकेगा?
हम जो भी करते है वह हम किसी स्‍थिति में है, इस पर निर्भर करता है। और सबसे ज्‍यादा उपेक्षित निग्‍लेक्‍टेड., सेक्‍स है, संभोग है।
और बड़े आश्‍चर्य की बात है, उसी संभोग से जीवन की सारी यात्रा चलती है। नये बच्‍चे, नयी आत्‍माएं जगत में प्रवेश करती है।
शायद आपको पता न हो, संभोग तो एक सिचुएशनल है, जिसमें एक आकाश में उड़ती हुई आत्‍मा अपने योग्‍य स्‍थिति को समझकर प्रविष्‍ट होती है। आप सिर्फ एक अवसर पैदा करते है। आप बच्‍चे के जन्‍मदाता नहीं है, सिर्फ एक अवसर पैदा करते है। वह अवसर जिस आत्‍मा के लिए जरूरी उपयोगी और सार्थक मालूम होता है, वह आत्‍मा प्रविष्‍ट होती है।
अगर आपने एक रूग्‍ण अवसर पैदा किया है, अगर आप क्रोध में दुःख में, पीड़ा में और चिंता में है तो जो आत्‍मा अवतरित होगी, वह आत्‍मा उसी तल की हो सकती है। उसके ऊंचे तल की नहीं हो सकती है।
श्रेष्‍ठ आत्‍माओं की पुकार के लिए श्रेष्‍ठ संभोग का अवसर और सुविधा चाहिए तो श्रेष्‍ठ आत्‍माएं जन्‍मती है। और जीवन ऊपर उठता है।
इसलिए मैंने कहा कि जिस दिन आदमी संभोग के पूरे शस्‍त्र में निष्‍णात होगा। जिस दिन हम छोटे-छोटे बच्‍चों से लेकर सारे जगत को उस कला और विज्ञान के सबंध में सारी बात कहेंगे और समझा सकेंगे, उस दिन हम बिलकुल‍ नये मनुष्‍य को, जिसे नीत्‍से सुपरमैन कहता था। जिसे अरविन्‍द अतिमानव कहते थे। जिसको महान आत्‍मा कहा जा सकता है, वैसा बच्‍चा वैसी संतति जगत में निर्मित की जा सकेगी। और जब तक हम ऐसा जगत निर्मित नहीं कर लेते है, तब तक न शांति हो सकती है विश्‍व में, और न युद्ध ही रूक सकते है, न घृणा रूकेगी, न अनीति रूकेगी, न दुश्चरित्र रूकेगी। न व्यभिचार रुकेगा, न जीवन का यह अंधकार रुकेगा।
लाख राजनीतिज्ञ चिल्‍लाते रहे....मत फिक्र करें, यह पाँच मिनिट के पानी गिरने से कोई फर्क न पड़ेगा। बंद कर लें छाते, क्‍योंकि दूसरे लोगों के पास छाते नहीं है। यह बहुत अधार्मिक होगा कि कुछ लोग छाते खोल लें। उसे बंद कर लें। सबके पास छाते होते तो ठीक था। और लोगों के पास नहीं है और आप खोलकर बैठेंगे तो कैसा बेहूदा होगा। कैसा असंस्‍कृत होगा। उसको बंद कर लें। मैं जरूर मेरे ऊपर छप्‍पर है, तो जितनी देर आप पानी में बैठे रहेंगे, मीटिंग के बाद उतनी देर में पानी में खड़ा हो जाऊँगा।
नहीं मिटेगे युद्ध, नहीं मिटेगी अशांति, नहीं मिटेगी हिंसा, नहीं मिटेगी ईर्ष्‍या। कितने दिन हो गये। दस हजार साल हो गये। मनुष्‍य जाति के पैगम्‍बर, तीर्थकर,अवतार समझा रहे है कि मत लड़ों, मत करो हिंसा, मत करो क्रोध, लेकिन किसी ने कभी नहीं सुना। जिन्‍होंने हमें समझाया कि मत करो हिंसा मत करो क्रोध उनको हमने सूली पर लटका दिया। यह उनकी शिक्षा का फल हुआ। गांधी हमें समझाते थे कि प्रेम करो, एक हो जाओ, हमने गोली मार दी। यह कुल उनकी शिक्षा का फल हुआ।
दुनिया के सारे मनुष्‍य सारे महापुरुष हार गये है, यह समझ लेना चाहिए। असफल हो चुके है। आज तक कोई भी मूल्‍य जीत नहीं सका। सब मूल्‍य हार गये। सब मूल्‍य असफल हो गये। बड़े से बड़े पुकारने वाले लोग, भले से भले लोग भी हार गये और समाप्‍त हो गये। और आदमी रोज अंधेरे और नरक में चला जाता रहा है। क्‍या इससे यह पता नहीं चलता कि हमारी शिक्षाओं में कहीं कोई बुनियादी भूल है।
अशांत आदमी इस लिए अशांत है कि वह अशांति में जन्‍मता है। उसके पास अशांति के कीटाणु है। उसके प्राणों की गहराई में अशांति को रोग है। जन्‍म के पहले दिन वह अशांति को, दुःख और पीड़ा का लेकिन पैदा हुआ है। जन्‍म के पहले क्षण में ही उसके जीवन का सारा स्‍वरूप निर्मित हो गया है। इसलिए बुद्ध हार जायेंगे, महावीर हार जायेंगे, कृष्‍ण हारे़ंगे, क्राइस्‍ट हारेंगे, हार चुके है। हम शिष्‍टता वश यह न कहते हों कि वह नहीं हारे है तो दूसरी बात है। लेकिन वह सब हार चुके है।
और आदमी रोज बिगड़ता चला गया है रोज बिगड़ता गया है। अहिंसा की इतने शिक्षा और हम छुरी से एटम और हाइड्रोजन बम पर पहुंच गये है।त्र यह अहिंसा की शिक्षा की सफलता होगी?
पिछले पहले महायुद्ध में तीन करोड़ लोगों की हत्‍या की। और उसके बाद शांति और प्रेम की बातें करने के बाद दूसरे महायुद्ध में हमने साढे सात करोड़ लोगों की हत्‍या की। और उसके बाद भी चिल्‍ला रहे है बर्ट्रेंड रसल से लेकर विनोबा भावे तक सारे लोग कि शांति चाहिए, शांति चाहिए। और हम तीसरे महायुद्ध की तैयारी कर रहे है। और तीसरा युद्ध दूसरे महायुद्ध को बच्‍चो का खेल बना देगा।
आइंस्‍टीन से किसी ने पूछा था तीसरे महायुद्ध में क्‍या होगा। आइंस्‍टीन ने कहा, तीसरे के बाबत कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन चौथे के संबंध में मैं कुछ कह सकता हूं। पूछने वालों ने कहा, आश्‍चर्य आप तीसरे के संबंध में नहीं कह सकते तो चौथे के संबंध में क्‍या कहेंगे। आइंस्‍टीन ने कहा चौथे के संबंध में एक बात निश्‍चित है कि चौथा महायुद्ध कभी नहीं हो सकता। क्‍योंकि तीसरे के बाद किसी आदमी के बचने की उम्‍मीद नहीं है।
यह मनुष्‍य की सारी नैतिक और धार्मिक शिक्षा का फल है। मैं आपसे कहना चाहता हूं, इसकी बुनियादी वजह दूसरी है। जब तक हम मनुष्‍य के संभोग को सुव्‍यवस्‍थित, मनुष्‍य के संभोग को आध्‍यात्‍मिक जि तक हम मनुष्‍य के संभोग को समाधि का द्वार बनाने में सफल नहीं होते, तब तक अच्‍छी मनुष्‍यता पैदा नही हो सकती हे। रोज को जन्‍म दे जायेंगे। हर पीढ़ी नीचे उतरती चली जायेगी। यह बिलकुल ही निश्‍चित है। इसकी ‘प्रोफेसी’ की जा सकती है, इसकी भविष्‍यवाणी की जा सकती है।
ओशो
संभोग से समाधि की ओर,
प्रवचन—4
गोवा लिया टैंक, बम्‍बई,

Sunday, 14 August 2016

संन्यास क्या है ? (ओशो)

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मनुष्य है एक बीज— अनन्त सम्भावनाओं से भरा हुआ।बहुत फूल खिल सकते हैं मनुष्य में, अलग—अलग प्रकार के। बुद्धि विकसित हो मनुष्य की तो विज्ञान का फूल खिल सकता है और हृदय विकसित हो तो काव्य का और पूरा मनुष्य ही विकसित हो जाए तो संन्यास का।संन्यास है, समग्र मनुष्य का विकास। और पूरब की प्रतिभा ने पूरी मनुष्यता को जो सबसे बड़ा दान दिया— वह है संन्यास।संन्यास का अर्थ है, जीवन को एक काम की भांति नहीं वरन एक खेल की भांति जीना।जीवन नाटक से ज्यादा न रह जाए, बन जाए एक अभिनय। जीवन में कुछ भीइतना महत्वपूर्ण न रह जाए कि चिन्ता को जन्म दे सके। दुख हो या सुख, पीड़ा हो या संताप, जन्म हो या मृत्यु संन्यास का अर्थ है इतनी समता में जीना—हर स्थिति में— ताकि भीतर कोई चोट न पहुंचे। अन्तरतम में कोई झंकार भी पैदा न हो। अंतरतम ऐसा अछूता रह जाए जीवन कीसारी यात्रा में, जैसे कमल के पत्ते पानी में रहकर भीपानी से अछूते रह जाते हैं। ऐसे अस्पर्शित, ऐसे असंग,ऐसे जीवन से गुजरते हुए भी जीवन से बाहर रहने की कला का नाम संन्यास है।यह कला विकृत भी हुई। जो भी इस जगत में विकसित होता है, उसकी सम्भावना विकृत होने की भी होती है। संन्यास विकृत हुआ, संसार के विरुद्ध खड़े हो जाने के कारण—संसार की निंदा, संसार की शत्रुता के कारण। संन्यास खिल सकता है वापस, फिर मनुष्य के लिए आनन्द का मार्ग बन सकता है, संसार के साथ संयुक्त होकर, संसार को स्वीकृत करके। संसार का विरोध करनेवाला, संसार की निन्दा और संसार को शत्रुता के भाव से देखने वाला संन्यास अब आगे सम्भव नहीं होगा। अब उसकाकोई भविष्य नहीं है। है भी रुग्ण वैसी दृष्टि।यदि परमात्मा है तो यह संसार उसकी ही अभिव्यक्ति है।इसे छोड़कर, इसे त्यागकर परमात्मा को पाने की बात ही ना—समझी है। इस संसार में रहकर ही इस संसार से अछूतेरह जाने की जो सामर्थ्य विकसित होती है, वही इससंसारका पाठ है, वही इस संसार की सिखावन है। और तब संसार एकशत्रु नहीं वरन एक विद्यालय हो जाता है और तब कुछ भी त्याग करके—सचेष्ट रूप से त्याग करके, छोड़कर भागनेकी पलायन— वृत्ति को प्रोत्साहन नहीं मिलता वरन जीवन को उसकी समग्रता में, स्वीकार में, आनन्दपूर्वक,प्रभु का अनुग्रह मानकर जीने की दृष्टि विकसित होती है। भविष्य के लिए मैं ऐसे ही संन्यास की सम्भावना देखता हूं जो परमात्मा और संसार के बीच विरोध नहीं मानता, कोई खाई नहीं मानता वरन संसार को परमात्मा का प्रगट रूप मानता है। परमात्मा को संसार का अप्रगट छिपा हुआ प्राण मानता है।संन्यास को ऐसा देखेंगे तो वह जीवन को दीन—हीन करने की बात नहीं, जीवन को और समृद्धि और सम्पदा से भर देने की बात है। वास्तव में जब भी कोई व्यक्ति जीवन को बहुत जोर से पकड़ लेता है तब ही जीवन कुरूप हो जाता है। इस जगत में जो भी हम जोर से पकड़ेंगे, वही कुरूप हो जाएगा। और जिसे भी हम मुक्त रख सकते हैं, स्वतंत्र रख सकते हैं, मुट्ठी बांधे बिना रख सकते हैं, वही इस जगत में सौंदर्य को, श्रेष्ठता को शिवत्वको उपलब्ध हो जाता है। जीवन के सब रहस्य ऐसे हैं, जैसे कोई मुट्ठी में हवा को बांधना चाहे। जितने जोर से बांधी जाती है मुट्ठी, हवा मुट्ठी के उतने ही बाहरहो जाती है। खुली मुट्ठी रखने की सामर्थ्य हो तो मुट्ठी हवा से भरी रहती है और बंधी मुट्ठी ही हवा से खाली हो जाती है। उल्टी दिखाई पड़नेवाली, उलट—बासी सी यह बात कि मुट्ठी खुली हो तो हवा भरी रहती है और बंद की गई हो, बंद करने की आकांक्षा हो तो मुट्ठी खाली हो जाती है, जीवन के समस्त रहस्यों पर यह बात लागू होती है। कोई अगर प्रेम को पकड़ेगा, बांधेगा तो प्रेम नष्ट हो जाएगा। कोई अगर आनंद को पकड़ेगा, बांधेगा तो आनंद नष्ट हो जाएगा और अगर कोई जीवन को भीपकड़ना चाहे, बांधना चाहे तो जीवन भी नष्ट हो जाता है।संन्यास का अर्थ है : खुली हुई मुट्ठीवाला जीवन, जहांहम कुछ भी बांधना नहीं चाहते,जहां जीवन एक प्रवाह हैऔर सतत नये की स्वीकृति और कल जो दिखाएगा उसके लिए भीपरमात्मा को धन्यवाद का भाव। बीते हुए कल को भूल जाना है, क्योंकि बीता हुआ कल अब स्मृति के अतिरिक्त और कहीं नहीं है। जो हाथ में है, उसे भी छोड़ने की तैयारी रखनी है, क्योंकि इस जीवन में सब कुछ क्षणभंगुर है। जो अभी हाथ में है, क्षणभर बाद हाथ के बाहर हो जाएगा। जो सांस अभी भीतर है, क्षणभर बाद बाहरहोगी। ऐसा प्रवाह है जीवन।इसमें जिसने भी रोकने की कोशिश की, वह वही गृहस्थ है और जिसने जीवन के प्रवाह में बहने की सामर्थ्य साध ली, जो प्रवाह के साथ बहने लगा —सरलता से, सहजता से, असुरक्षा में, अनजान में, अज्ञान में—वही संन्यासी है।संन्यास के तीन बुनियादी सूत्र खयाल में ले लेने जैसे हैं।पहला—जीवन एक प्रवाह है।उसमें रुक नहीं जाना, ठहर नहीं जाना, वहां कहीं घर नहीं बना लेना है। एक यात्राहै जीवन। पड़ाव है बहुत, लेकिन मंजिल कहीं भी नहीं। मंजिल जीवन के पार परमात्मा में है।दूसरा सूत्र—जीवन जो भी दे उसके साथ पूर्ण संतुइष्टऔर पूर्ण अनुग्रह, क्योंकि जहां असंतुष्ट हुए हम तो जीवन जो देता है, उसे भी छीन लेता है और जहां संतुष्ट हुएहम कि जीवन जो नहीं देता, उसके भी द्वार खुल जाते हैं।और तीसरा सूत्र— जीवन में सुरक्षा का मोह न रखना।सुरक्षा संभव नहीं है। तथ्य ही असंभावना का है। असुरक्षा ही जीवन है। सच तो यह है कि सिर्फ मृत्यु हीसुरक्षित हो सकती है। जीवन तो असुरीक्षत होगा ही। इसलिए जितना जीवंत व्यक्तित्व होगा, उतना असुरक्षित होगा और जितना मरा हुआ व्यक्तित्व होगा, उतना सुरक्षित होगा।सुना है मैंने, एक सूफी फकीर मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने मरते वक्त वसीयत की थी कि मेरी कब्र पर दरवाजा बना देना और उस दरवाजे पर कीमती से कीमती, वजनी से वजनी, मजबूत से मजबूत ताला लगा देना, लेकिन एक बात ध्यान रखना, दरवाजा ही बनाना, मेरी कब्र की चारों तरफदीवार मत बनाना। आज भी नसरुद्दीन की कब्र पर दरवाजा खड़ा है, बिना दीवारों के, ताले लगे हैं— जोर से, मजबूत। चाबी समुद्र में फेंक दी गई, ताकि कोई खोज न ले। नसरुद्दीन की मरते वक्त यह आखिरी मजाक थी— संन्यासी की मजाक, संसारियों के प्रति। हम भी जीवन में कितने ही ताले डालें, सिर्फ ताले ही रह जाते हैं।चारों तरफ जीवन असुरक्षित है सदा, कहीं कोई दीवार नहीं है। जो इस तथ्य को स्वीकार करके जीना शुरू कर देता है —कि जीवन में कोई सुरक्षा नहीं है, असुरक्षाके लिए राजी हूं मेरी पूर्ण सहमति है, वही संन्यासी है और जो असुरक्षित होने को तैयार हो गया— निराधार होने को—उसे परमात्मा का आधार उपलब्ध हो जाता है।– ओशो[संन्यास: मेरी दृष्टि में]

Saturday, 13 August 2016

how to stay healthy (in hindi)

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जब से मैने होश सम्भाला है अधिकांशतः लोगो को तरह तरह की बीमारियो से घिरा पाया है आज के समय मे निरोगी जीवन, एक सपाना बनकर रह गया है डाक्टर आज परिवारिक सदस्य की तरह हो गये है एसा परिवार मिलना आज के समय मे मुश्किल है जिसमे किसी न किसी सदस्य  को कोई गम्भीर बीमारी न हो अधिकांशतः परिवार  तो एसे है परिवार के सभी सदस्य बीमार है ।  ऐसा लगता है बच्चे के पैदा होते ही डाक्टर से उसका ऐसा सम्बन्ध बन जाता है जैसे मा –बाप के बाद जो उसे सबसे प्रिय है वह डाक्टर ही है जो उसके मरने तक डाक्टर से उसका सम्बन्ध बना रहता है । निरोगी व्यक्ति निरोगी परिवार मिलना आज के समय मे मुश्किल हो गया है । मगर मेरा अपना अनुभन है अगर हम अपनी जीवनशैली मे थोड़ा सा परिवर्तन कर ले तो हम निरोगी जीवन जी सकते है । भारत जैसे देश मे यह मुश्किल नही है । जितना आप प्रकृति के नजदीक रहेगे उतना आप स्वस्थ रहेगे । मेरा परिवार भी एक समय डाक्टरो के चक्कर काटता रहता था । कुछ ऐसी बीमारियाँ थी जो आज मै काफी लोगो मे देखता हूँ । डाक्टरो का कहना था दवाई आप को जिन्दगी भर खानी पड़ेगी ।
  हमारे जीवन मे दो महापुरुषों का प्रेवेश  हुआ
 1-ओशो  जिनकी ध्यान की जादूई विधियो द्वारा जीवन मे आन्नद की लहर दौड़ने लगी
 2-राजीव दिक्षित जिनकी बताई गयी छोटी –छोटि बातो को जीवन मे उतारने का प्रयास किया
और आज दस वर्ष से ऊपए हो गये है एलोपैथी दवाईया और डाक्टर से दूर है ।
दोनो  ही महापुरुषो मे एक समानता थी दोनो का ही जोर  एक बात पर है जितने आप प्रकृति के नजदीक रहेगे उतने आप स्वस्थ और आन्नद से रहेगे ।
मै आप को ऐसी छोटी छोटी बाते बता रहा हू जिनको अपनाकर आप भी निरोगी व आन्नदित जीवन जी सकते है।
1-प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व सोकर उठे । उठकर जितना हो सके घुट घुँट पानी पिय्रे  ।
2-प्रतिदिन प्राणायाम ध्यानयोग करे । नियमित रुप से सक्रिय ध्यान करने से सम्पूर्ण शरीर की मांसपेशियाँ सक्रिय हो जाती है रक्तसंचार बढ़ता है शरीर मे चुस्ती फुर्ती आती है । मधुमेह थाइराइड ब्लडप्रेशर ह्रदय रोग मोटापा आदि अनेक रोगो मे लाभ होता है ।
3-स्वस्थ शरीर मे ही स्वस्थ मन निवास करता है इसलिए शरीर को स्वस्थ रखे ।
4-रिफाइन्ड के स्थान पर सरसो का तेल या देशी घी का उपयोग करे।
5-एल्यूमिनियम के किसी भी बरतन का उपयोग न करे,कुकर का भी नही ।
6- हमारे देश के अधिकांश हिस्सो की जलवायू गर्म है इसलिए चाय का प्रयोग न करे ।
इसके स्थान पर दिव्यपेय या कोई प्राकृतिक चाय का उपयोग कर सकते है ।
7-कोल्डड्रिन्क के स्थान पर निंबूपानी का उपयोग करे
8-पिज्जा बर्गर चाउमिन आदि फास्टफ्रुड से स्वंय एवं बच्चो को दूर रखे।
9-फ्रिज  के पानी के स्थान पर घड़े के पानी का प्रयोग करे ।
10-नित्य या हफ्ते मे एक बार पूरे शरीर की तिल के तेल से या सरसो के तेल से मालिश करे ।
11-नित्य अपने भोजन मे फलो और कच्ची सब्जियो को सामिल करे ।
12- हमेशा शान्त और प्रसन्न रहे कम बोलने की आदत डाले जितना आवश्यक हो उतना ही बोले ।
13-भोजन करते समय क्रोध न करे । भोजन थोड़ा थोड़ा परमात्मा का प्रसाद समझते हुए प्रेम से खाये । कभी भोजन मे कमी न निकाले । अगर नमक कम रह जाये या न डाला गया हो तो ऊपर से नमक न डाले । न ही भोजन मे कमी निकाले । उसे स्वाद ले लेकर धीरे धीरे खाये
14-अच्छा साहित्य पढे । कुछ अच्छा पढकर ही घर से निकले । अश्लील एवं उत्तेजक साहित्य पढ़ने से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है ।
15-शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दवाइयों का सहारा लेने की उतनी आवश्यकता नही है जितनी शरीर के अंगो को स्वस्थ और मजबूत रखने की आवश्यकता है ।
16-प्राकृतिक चीजो का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करे ।
17- सैम्पू और साबुन के स्थान पर मुलतानी मिट्टी का उपयोग करे ।
18-भोजन के पश्चात या बीच मे पानी का सेवन न करे । पानी भोजन करने के 60 मिनट पश्चात और भोजन करने के 45 मिनट पूर्व पीना चाहिए ।
19-रात्रि मे भोजन न करे तो अच्छा है अगर लेना हो तो हल्का भोजन ले ।
20-हमेशा हँसते रहिए दिन म्रे कम से कम 4-5 बार अवश्य जोर से ठहाका लगा कर हँसे ।
आपकी रसोई आपका सबसे अच्छा औषद्यालय है।
1-खांसी –काली मिर्च को महीन पीसकर शहद या मिश्री के साथ  खाये । सुखी खाँसी मे शीघ्र आराम होगा ।
 दुध मे ½ चम्मच हल्दी एक चुटकी सोंठ पाउडर पकाकर ले किसी भी प्रकार की खांसी व गले मे कैसा भी इंफैकशन हो शीघ्र आराम होगा । किसी भी प्रकार के दर्द चोट मे भी लाभदायक है । इसके सेवन से जुकाम भी अतिशिघ्र ठीक हो जाता है ।

सुखा धनिया चुसन्रे से सुखा धस्का, गले मे टान्सिल को शीघ्र आराम मिलता है ।
2-आज के समय मे सबसे बड़ी समस्या पेट की है । अगर आप को खाना हजम नही होता है आपको कई बार प्रेशर बनता है । जीरा और सोंफ 50-50ग्राम लेकर अलग-अलग तवे पर भून लीजिए । फिर इसको मिक्सी मे पीसकर चूर्ण बना लीजिए । खाना खाने के बाद ½ चम्मच सादे पानी से खाये ।
कब्ज हो तो इसका सेवन गर्म पानी से करे ।
3- मुँह मे छाले हो तो जीरा और बड़ी इलाइची बराबर मात्रा मे लेकर पीस ले । दिन मे 3-4 बार ले । अतिशीघ्र लाभ होगा ।
4- आँखों की रोशनी बढानी हो तो नित्य प्रातः मुँह  की राल आँखों मे काजल की तरह से लगाये।
मुँह मे पानी भरकर आँखों मे पानी के झपाके दे । कुछ समय के प्रयोग से आँखों की रोशनी बढने लगती है।
5-प्रतिदिन भोजन के बाद एक लोंग मुँह मे रखकर चूसने से मुँह मे बदबू नही आती है ।
6-भुख न लग रही हो खाने से अरुचि हो तो धनिया छोटी इलाइची और काली मिर्च का समान मात्रा मे चूर्ण बना ले । और इसमे समान मात्रा मे घी और मिश्री मिलाकर खाये ।
7-हाथ पैरो मे दर्द हो तो 100ग्राम सरसो का तेल पका ले जब वह ठंडा हो जाये उसमे 5 ग्राम कपूर मिला कर कांच की शीशी मे भरकर रख ले । जहाँ दर्द हो वहाँ हल्के हाथो से मालिश करे । मालिश हमेशा ऊपर से नीचे की और करे ।
8-नारियल के तेल मे निंबू का रस मिलाकर मालिश करने से खुजली ठीक हो जाती है ।
9- सेंधा नमक का कपड़छन चूर्ण हल्दी सरसो के तेल मे मिलाकर दाँतों एवं मसूड़ों मे धीरे धीरे मलने से मुख की दुर्गंध और पायरिया ठीक हो जाता है । दाँत स्वच्छ और मजबूत बनते है ।
10 – कब्ज मे एक चम्मच सोंफ 5 काली मिर्च चबाकर एक गिलास गर्म पानी मे नींबू और काला नमक मिलाकर रत्रि मे सोते समय पीले ।


           
   





 

Wednesday, 10 August 2016

स्तनों के आकर्षण का वैज्ञानिक अर्थ और उससे मुक्त होने का बेजोड़ प्रयोग (osho)

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एक मित्र ने मुझे सवाल पूछा है कि यह जो यहां कीर्तन होता है, यह बहुत खतरनाक चीज है। और यह तो ऐसा मालूम पड़ता है कि कीर्तन करने वाले साधु, संन्यासी, संन्यासिनिया कामवासना निकाल रहे हैं अपनी! और उन्हीं मित्र ने आगे पूछा है कि यह भी मुझे पूछना है कि जब मैं लोगों को कीर्तन करते देखता हूं? तो अगर स्त्रियां कीर्तन कर रही हैं, तो मेरा ध्यान उनके स्तन पर ही जाता है!
अब कीर्तन करते समय जिसका ध्यान स्तन पर जा रहा हो, वह यह कह रहा है कि उसे लगता है कि सब संन्यासी अपनी कामवासना निकाल रहे हैं! उसे यह खयाल नहीं आता कि उसे जो दिखाई पड रहा है, वह उसके संबंध में खबर है, किसी और के सबंध में खबर नहीं है। और वह खुद ही नीचे लिख रहा है कि मुझे उनके स्तन पर ध्यान जाता है।
निश्चित ही, इस व्यक्ति को मां के स्तन से दूध पीने का पूरा मौका नहीं मिला होगा। इसको स्तन में अभी भी अटकाव रह गया है। इसको एक काम करना चाहिए। बच्चों के लिए जो दूध पीने की बोतल आती है, वह खरीद लेनी चाहिए। उसमें दूध भरकर रात उसको चूसना चाहिए, दस—पंद्रह मिनट सोने के पहले। तीन महीने के भीतर इसको स्तन दिखाई पड़ने बंद हो जाएंगे।
स्तन दिखाई पड़ने का मतलब ही यह है कि बच्चे का जो रस था स्तन में, वह कायम रह गया है। स्तन पूरा नहीं पीया जा सका। इसलिए आदिवासियों में जाएं, जहां बच्चे पूरी तरह अपनी मां का स्तन पीते हैं, वहा किसी की उत्सुकता स्तन में नहीं है। अगर आप आदिवासी स्त्री को, हाथ रखकर भी उसके स्तन पर, पूछें कि यह क्या है? तो वह कहेगी कि दूध पिलाने का थन है। आप अपने इस समाज की स्त्री के स्तन की तरफ आंख भी उठाएं, वह भी बेचैन, आप भी बेचैन। आप भी आंख बचाते हैं, तब भी बेचैन, वह भी स्तन को छिपा रही है और बेचैन है। और छिपाकर भी प्रकट करने की पूरी कोशिश कर रही है, उसमें भी बेचैन है।
और सबकी नजर वहीं लगी हुई है। चाहे फिल्म देखने जाएं, चाहे उपन्यास पढ़ें, चाहे कविता करें, चाहे कहानी लिखें, स्तन बिलकुल जरूरी हैं! अगर कभी कोई दूसरे ग्रह की सभ्यता के लोग इस जमीन पर आए , तो वे हमें कहेंगे कि ये लोग स्तनों से बीमार समाज है। क्योंकि मूर्ति बनाओ तो, चित्र बनाओ तो, स्तन पहली चीज है; स्त्री गौण है। मगर यह बच्चे का दृष्टिकोण है। असल में बच्चा जब पहली दफा मां से संबंधित होता है—और वह उसका पहला संबंध है, उसके पहले उसका कोई संबंध किसी से नहीं है, वह उसका पहला समाज में पदार्पण है, वह उसका पहला अनुभव है दूसरे का—तो वह पूरी मां से संबंधित नहीं होता; सिर्फ उसके स्तन से संबंधित होता है। पहला अनुभव स्तन का है। और पहले वह स्तन को ही पहचानता है; मां पीछे आती है। स्तन प्रमुख है, मां गौण है। और अगर आपको बाद की उम्र में भी स्तन प्रमुख है, स्त्री गौण लगती है, तो आप बचकाने हैं और आपकी बुद्धि परिपक्व नहीं हो पाई। आपको फिर से स्तन नकली खरीदकर बाजार से, पीना शुरू कर देना चाहिए। उससे राहत मिलेगी।
गुरु बोलता था, शिष्य सुनता था। लेकिन शिष्य के सुनने में भी गुरु देखता था,उसका  रस कहां है! उसकी आंख कहा चमकने लगती है और कहा फीकी हो जाती है! कहा उसकी आंख की पुतली खुल जाती है और फैल जाती है, और कहा सिकुड़ जाती है! कहां उसकी रीढ़ सीधी हो जाती है, और कहां वह शिथिल होकर बैठ जाता है! वह देख रहा है। बाहर और भीतर उसकी चेतना में क्या हो रहा है, वह देख रहा है। और इस माध्यम से वह भी चुन रहा है कि इस शिष्य के लिए क्या जरूरी होगा, क्या उपयोगी होगा।
इसलिए कृष्ण ने सारे मार्गों की बात कही है। उन सारे मार्गों पर अर्जुन को चलना नहीं है। अर्जुन को चलना तो होगा एक ही मार्ग पर। लेकिन इन सारो को चलने के पहले जान लेना जरूरी है।
ओशो
गीता दर्शन

power politics (osho)


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इस दुनिया में सारे लोग कहते हैं, अच्छे हो जाओ। लेकिन वह आपको कहते ही इसलिए हैं कि आप अच्‍छे हो नहीं पाते। और अच्‍छे हो जाओ, यह कह कर वे आपकी निंदा कर देते है और आपको दबा देते हैं। एक दूसरे को डॉमिनेट करने का यह उपाय है। अगर आप सच में अच्छे हो जाओ, तो जो जो आपको अच्छा बनाना चाहते थे, वे सबसे पहले आपके प्रति असंतुष्ट हो जाएंगे। क्योंकि उनकी मालकियत खो जाएगी और उनके हाथ के नीचे से दबा हुआ आदमी मुक्त हो जाएगा।
तो जितने लोग कहते हैं, अच्छे हो जाओ, यह पावर पालिटिक्स है, इसके भीतर राजनीति है। लेकिन कोई किसी को अच्छा देखना नहीं चाहता। क्योंकि अच्छा देखने से ही खुद नीचा हो जाता है, दूसरा ऊपर हो जाता है। जिंदगी का जाल है।
लेकिन एक बात खयाल रखनी जरूरी है तुम जो भी हो, जहां भी हो, वहीं से रास्ता परमात्मा तक आता है। ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां से उसका रास्ता न जाता हो। इसलिए हर जगह का उपयोग कर लेना और हर अनुभव को उसकी दिशा में मोड़ देना।
बुरे से बुरा अनुभव भी उसकी दिशा में मुड़ जाता है। और पाप से पाप भरा हुआ अनुभव भी, उसकी तरफ मुड़ते ही पुण्य हो जाता है। लेकिन यह सारा का सारा आसान है करना, अगर एक बात खयाल में रहे कि इस जगत में हम अलग नहीं हैं, एक ही चैतन्य के हिस्से हैं, एक ही बड़े सागर की लहरें हैं।
साधना सूत्र
ओशो

how to increase memory ( in hindi)

                          स्मरणशक्ति कैसे बढ़ाए      

                            

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जो भी हम देखते सुनते है पढ़ते है, कार्य करते है इन सब का संग्रह करना स्मरण शक्ति का कार्य है और समय पर प्रकट करना स्मृति का कार्य है ।  हमारे मस्तिष्क मे संग्रह तो सब रहता है मगर समय पर प्रकट नही होता उसे स्मरण शक्ति की दुर्बलता कहा जाता है । जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है स्मरणशक्ति दुर्बल होती जाती है ।

  स्मरण शक्ति दुर्बल होती क्यो है  ?

जो भी हम आहार लेते है वह पचकर रस बनता है रस से मॉस  मज्जा रक्त  हड्डी और वीर्य का निर्माण होता है इन सब मे वीर्य शक्तिरुप होने पर ओज कहलाता है और  ओज से ही शरीर तेजवान बनता है ओज से ही मस्तिष्क पुष्ट होता है और स्मरणशक्ति को भी ठीक रखता है । चेहरे की आभा ओज से ही है ओज बनता है वीर्य से, वीर्य का धारण होता है ब्रहमच्रर्य से। और जिस प्रकार से आज हम काम वासना की और सम्मोहित हो रहे है मस्तिष्क से सम्बन्धित  बीमारिया बढ़ती जा रही है स्मरणशक्ति दुर्बल होती जा रही है कामवासना जैसे जैसे बढ़ेगी वीर्य का नाश होगा और वीर्य का नाश होने से ओज का क्षय होता है ओज के क्षय से स्मरणशक्ति कम होती चली जाती है ।
 दैनिक जीवन मे तनाव भरी जीवन शैली का भी मस्तिष्क  पर प्रभाव पड़ता है । मस्तिष्क के थक जाने पर स्मरण शक्ति धीरे धीरे कमजोर होने लगती है । शरीर के स्वस्थ रखने के बारे मे तो थोड़ा बहुत सोचते भी है मगर मस्तिष्क के बारे मे सोचते ही नही ।
 उम्र बढ़ने के साथ ही वीर्य बनना कम हो जाता है वीर्य नही बनता तो ओज नही बनता । इसलिए उम्र बढ़ने के साथ ही स्मरण शक्ति कम होती चली जाती है ।

  स्मरण शक्ति कैसे बढाये ।

1-      प्रतिदिन प्राणायाम , ध्यान करने से स्मरणशक्ति बढती है । कम से कम 30 मिनट शान्त एकाग्र होकर अवश्य बैठे ।
2-      सूर्यप्रणाम प्रतिदिन करे
3-      हमेशा अध्यात्मिक सकरात्मक साहित्य पढे ।
4-      नकरात्मक लोगो को, विचारो को अपने से दूर रखे ।
5-      अपने दिन की शुरुआत हमेशा उत्साह से करे ।
6-      हमेशा सन्तुलित सात्विक भोजन करे । भोजन से ही रस वीर्य ओज बनता है भोजन कभी क्रोध मे न करे । भोजन हमेशा शान्तचित  एकाग्रता  शुद्ध वातावरण मे  करे ।
7-      रात्रि सोने से पुर्व  दिन भर किये अच्छे व सकरात्म कार्यो को याद करे ।
8-      हमेशा उन बातो का स्मरण करे जिन्हे याद करके आन्नद की अनुभूति होती हो । कभी उन बातो को स्मरण न रखे जिन्हे याद करके दुख या क्रोध उतपन्न  होता हो ।
9-      हमेशा छोटी छोटी खुशियो को भी उत्सव की तरह मनाये ।
10-   हमेशा दुसरो मे अच्छे गुणो को देखे दुसरे की बुराईयो को नजरान्दाज करे ।

स्मरण शक्ति बढाने के घरेलू व आयुर्वेदिक उपचार

     

1       -      असगन्ध नागोरी, शतावरी, सफेद मुसली सुबह शाम दुध से ले  ।
2       -      ब्राहमी रसायन सुबह शाम दुध से ले ।
3       -      अखरोट की गिरी  भी प्रतिदिन खाने से काफी लाभ होता है ।
4       -      भूने हूए चने और किसमिस खाये ।
5       -      गाजर चुकन्दर व अनार सेब नियमित खाने से काफी लाभ होता है ।
6       -      बदाम सोफ मिश्री बराबर मात्रा मे लेकर चूर्ण बना ले । नियमित लेने से स्मरण शक्ति तो बढ़ती  है साथ ही आँखों की रोशनी भी तेज होती है ।
7       -      दालचीनी का पाउडर बना ले उसको शहद के साथ खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती  है
8       -      सात बदाम (छिलका उतरे हुए ) सात मुनक्का पाँच कालीमिर्च प्रतिदिन खाने से स्मरण शक्ति  बढ़ती है।





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