सभी सुखी जीवन जीना
चाहते है हम जो कुछ भी कर रहे है या भविष्य के बारे मे सोचते है वह सब सुखी जीवन के
लिये ही कर रहे है मै सुखी रहूँ मेरा परिवार सुखी रहे, कोई भी अस्वस्थ नही होना चाहता मगर आज जहाँ तक भी द्र्ष्टि
जाती है अधिकांशतः अस्वस्थ तनाव मे नजर आते है हँसते खिलखिलाते चेहरे मिलने ही मुश्किल
हो गये ।
कही एसा तो नही, चाह हमारी सही
हो मगर राह गलत हो।
जिस देश मे
स्वस्थ रहने के लिए ग्रंथ उपनिषेद लिखे गये हो,जहा राम कृष्ण महावीर बुद्ध गुरुनानक
विवेकानन्द जैसे महापुरुष पैदा हुए हो जिन्होने सम्पुर्ण मनुष्य जाति को आन्नद से जीने
का रास्ता बताया हो उस देश मे अराजकता तनावपुर्ण जीवन,अधिकांशतः अस्वस्थ, यह समझ से
बहार की बात है निश्चय ही हम गलत मार्ग पर चल रहे है हमारी संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है
इस बात को हम सब मानते है, मानते तो है मगर जानने का प्रयास नही करते ।
कारण क्या है
हम जो कुछ भी करते है temporary मजे के लिए करते है हमे पता होता है जल्दी उठना
स्वाथ्य के लिए अच्छा होता है मगर temporary
मजे के लिय हम देर से सोकर उठते है । सबको पता है सुबह उठ्ते ही चाय पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है फिर भी
हम चाय पीते है सुबह उठकर योगा प्राणायाम ध्यान करना स्वास्थ के लिए अच्छा है फिर भी
हम नही करते । हम वह सब काम करते है जो हमारे लिए अच्छा नही है हमे पता है फिर भी करते
है ।
कारण क्या है ?
हम सिर्फ temporary सुख पाना चाहते है ।
temporary सुख हमे permanent
pain दे कर जाता है जबकि temporary pain हमे
permanent सुख दे कर जाता है ।
मन हमारा प्रत्येक पल सुख चाहता है वह वही कार्य
करना चाहता है जिसमे उसको मजा आ रहा होता है ।
आप कार के मालिक है
कार ड्राइवर चला रहा है आप पीछे की सीट पर
बैठे है बैठे-बैठे आपको नींद आ गयी ड्राइवर
ने देखा मालिक सो रहा है उसने कार की स्पिड बढा दी और उसने इतनी स्पीड बढा दी कार
उसके नियन्त्रण से बहार हो गयी, कभी सामने
से आ रही गाड़ी से टक्कर मार दी कभी साइड मे बने स्पीड ब्रेकर से टक्कर मार दी । क्या
होगा कार का हुलिया बिगड़ जायेगा कार कई जगह से डैमेज हो गयी । अचानक मालिक की आँख खुल
गयी उसने ड्राइवर को डाँट लगाई कैसे चला रहे हो ? अब ड्राइवर उसके नियंत्रण मे है जैसे
वह चाहता है ड्राइवर वैसे ही अब कार चला रहा है अब वह ड्राइवर को दिशानिर्देश दे रहा
है और ड्राइवर उसके नौकर की तरह आज्ञा मान रहा है ।
कार आपकी बोडी है ड्राइवर
आपका मन है मालिक आप (आत्मा) हो । अगर आप जागे
हो तो मन आपका गुलाम है । आप सोये है तो मन मालिक बन जाता है ।
आप सोये है तो सुख भी आपका सोया है क्योकि मन एसी
चीजो मे जाता है जो आपके पास नही है।जो आपके पास है उसका आप सुख नही ले पाते पूरी जिन्दगी
कामनाओ की पुर्ति मे लगा देते है जो मरते समय तक पूरी नही हो पाती । मन हमारा कामनाओ
की तरफ भागता है मुझे ये लेना है मेरे पास ये भी होना चाहिए । मै यह काम कर लू, मै
यह भी काम कर लू । मन हमारा कभी इधर कभी उधर भागता रहता है। हम लोभ मोह क्रोध आदि से
टकराकर अपने को क्षतिग्रस्त करते रहते है।
जैसा पौधा लगाया है
वैसा ही फल मिलेगा, अगर अमरुद का पौधा लगाया है हम कहते रहे आम आयेगा आम आयेगा । जब
वह पौधा पेड़ बनेगा तो क्या उस पेड़ पर आम आयेगा ? कभी नही आयेगा
हम कितनी भी कोशिश कर ले उस पेड़ पर आम आ जाये, आम आ जाय । पौधा लगाया अमरुद
का तो उस पर तो अमरुद ही आयेगे ।
पौधा लगाया लोभ का, इच्छा रखे आनंद की, क्या ऐसा
सम्भव है ?
लोभ के पौधे से तो
सिर्फ क्रोध तनाव दुख ही मिल सकता है आपके पास कितना भी धन सम्पत्ति भोग की वस्तुए
आ जाये वह भी कम पड़ जायेगी कभी पूरी नही पड़ेगी ।
गीता मे लिखा है यह मनुष्य जीवन सिर्फ और दूसरो की
सेवा के लिए है अपने लिए कुछ नही करना है बच्चे पैदा करना खाना पीना सोना आदि ये सब
कर्म तो जानवर भी करते है । फिर हममे इनमे
फर्क क्या है ?
मनुष्य जीवन की सार्थकता तब है जब हम दूसरो को खुशियॉ
दे सके उनका दुख बांट सके । मगर उससे पहले
स्वंय जीना सिखना होगा स्वंय को आनंदित करना होगा जो स्वंय दुखी है वह क्या दूसरो को
सुख दे पायेगा जो आपके पास है वही आप दूसरो को दे सकते हो । सबसे पहले तो अपने लिए
जीना सिखये अपने विकारो को निकालकर बहार फेक दीजिए काम क्रोध लोभ मोह ये हमारे सबसे
बड़े शत्रु है इनका नाश किए बीना हम आनंद महसूस नही कर सकते । हमारे पास जो कुछ भी है
उसे परमात्मा का मानिए आपका कुछ है ही नही, लाभ हानी सुख-दुख होगा ही नही। नफा हुआ
तो परमात्मा का हुआ, नुकसान हुआ तो परमात्मा का हुआ यह सब इस संसार मे आकर ही आपको
प्राप्त हुआ है आपके पास पहले भी नही था कल भी नही रहेगा केवल कुछ समय के लिए वर्तमान
मे आपको कर्म करने के लिय ये धन –सम्पत्ति आदि मिले है । इसको एसे समझो – कोई व्यक़्ति
किसी कार्यालय मे कार्य करता है वहा उसे कम्पयूटर पैन पेपर कुर्सी मेज आदि मिलते है
वह सारे दिन उन वस्तुओ से कार्य करता है मगर वह उन वस्तुओ को घर नही ला सकता क्योकि
वह उसकी नही है केवल कार्यलय मे कार्य करने के लिए ही उसे मिली है अगर वह घर लाता है
तो समझ सकते है उसे क्या कहा जाता है ।
इसीप्रकार जो कुछ भी हमे मिला है वह सब संसार की
सेवा करने के लिए ही मिला है उनसे आसक्ति नही रखनी है कुछ भी अपना नही है ऐसा मान लेने
से सुख दुख की अनुभूति नही होती, और आनंद की अनुभूति होने लगती है ।
ध्यान (meditation) इस ओर ले जाने का एक रास्ता
है जो हमे स्वयं की पहचान कराता है । और हमारे अन्दर के विकारो को निकालने मे मदद करता
है । ध्यान करने से स्वस्थ तन ही नही मन भी मिलता है हम अपने शरीर के लिए बहुत कुछ
करते है व्यायाम भी करते है कई बार सोचते भी है शरीर को कैसे फीट रखे ? क्या कभी सोचा
है मस्तिष्क के बारे मे, सारा शरीर मस्तिष्क से ही संचालित होता है । हाथ कट जाये पैर
कट जाये फिर भी मनुष्य के जीवित रहने की सम्भानाये है । अगर गर्दन कट जाये तो क्या होगा ?
इसलिए इस मस्तिष्क की खुराक भी ध्यान करने से मिलती
है ।
ध्यान
(meditation) है क्या ?
अधिकांशतः लोग समझते
है शांत उदास चेहरा लेकर बैठ जाना ही ध्यान
(meditation) है । आप शांत होकर बैठ कैसे सकते है दुनिया भर का उपद्रव तो तुम्हारे अन्दर दबा हुआ है अगर आप बैठ भी गये
तो पाखंड के अतिरिक्त कुछ नही होगा आप शांत बैठने के दिखावा तो कर सकते है जिसके अन्दर
शान्ति आ गयी सब कुछ शान्त हो गया वह इमानदार हो जाता है तुम दिखावा करते हो तो बेइमानी करते हो तो तुम पाखंडी हो ।
हमारे पेट मे जो कुछ दबा है नकरात्मक विचार लोभ
काम क्रोध आदि सब कुछ निकालना है
ध्यान का पहला नियम
है जो भी तुम्हारे अन्दर दबा हुआ है उसे बहार निकाल देना । प्राणयाम द्वारा गहरी श्वास
छोड़िये श्वास इतनी गहरी हो आप न रहे आपकी सिर्फ श्वास ही रह जाये जितना भी आपने अन्दर
दबाया हुआ है सब निकल जाता है और अन्दर से शान्त होते चले जाते है जैसे जैसे आप अन्दर
से शान्त होते चले जाते है एक आन्नद की लहर दौड़ने लगती है स्वच्छ नई उर्जा का संचार होने लगता है ।
अगर आपके जीवन मे आन्नद ही आन्नद हो, तनाव दुख रोग
न हो तो सारा समाज सारा संसार खुबसूरत नजर आने लगता है अन्दर से एसे प्रेम का उदय होता
है कि मन करता है सबसे प्रेम करे । जिन्दगी मस्त हो जाती है । स्वर्ग नरक यही है बस
देखने का नज़रिया है आप दुखी है परेशान है तनाव मे है तो आपको यह संसार नरक लगता है आपके जीवन मे सिर्फ आन्नद ही आन्नद
है तो आपको यह संसार स्वर्ग लगता है ।
कुछ सालो पहले मै भी यही समझता था यह जिन्दगी कितनी
बकवास है यहा दुख तनाव के सिवा है क्या ? शरीर मे अनेक बीमारियो ने अपना घर बना लिया
कुछ तो एसी जो जीवन भर साथ रहेंगी । जिन्दगी मे बहुत सारे तनाव थे यह जीवन नीरस लगने
लगा था बस अपने परिवार के लिए जिन्दा रहना
है । अगर मै न रहु तो बच्चो का क्या होगा ?
पूरा परिवार ही तनाव मे था ।
सिर्फ एक वाक्य ने मेरी जिन्दगी बदल दी ।
आप दूसरो को नही बदल सकते सिर्फ अपने आप को बदल
सकते है
उस दिन से मै सिर्फ अपने लिये जीता हू । स्वार्थी
बन गया । मै सिर्फ अपनी खुशियो के लिए जीता हूँ जो आपके पास है वही आप दूसरो को दे
सकते है अगर आप खुश है तो आप दूसरो को खुशियॉ ही दोगे
अगर आप दुखी है तो
आप दूसरो को क्या खुशियॉ दे सकते हो ? आप दुखी हो तो दूसरो के साथ दुख ही बाँट सकते
हो । आप जो हो वही आप दूसरो से शेयर करते हो ।
आन्नद से रहने के लिये नये-नये रास्ते खोजने शुरु
किये । इतना तो समझ मे आ गया था जब तक तन और
मन स्वस्थ नही होगा आन्नद की अनुभूति नही हो
सकती मैने योगा शुरु किया कुछ समय बाद हीं
शरीर स्वस्थ होने लगा मगर मन बीमार था उसे ज्यादा फायदा नही हो पा रहा था जीवन
मे थोड़ी भी समस्या आती तो शरीर टुट जाता एसा लगता जैसे कब का बीमार हूँ ।
तब मैने
ध्यान (meditation) के बारे मे सोचना शुरु किया और कल्पना की एसा ध्यान
(meditation) हो जो हमे शारीरिक और मानसिक दोनो तरह से फिट रखे ।
Spiritul & energetic meditation ने मेरी दुनिया
ही बदल दी, जीवन मे आन्नद आने लगा ।
तब मैने निश्चय किया मै लोगो की जिन्दगी से दुख तनाव रोग मिटाकर खुशियों से भरने का प्रयास करुगा, एहसास कराऊँगा कि जिन्दगी कितनी खुबसूरत है ।