Friday, 22 January 2016

secrets of a long happy life ( in hindi)

                                                     

सभी सुखी जीवन जीना चाहते है हम जो कुछ भी कर रहे है या भविष्य के बारे मे सोचते है वह सब सुखी जीवन के लिये  ही कर रहे है मै  सुखी रहूँ मेरा परिवार सुखी रहे, कोई  भी अस्वस्थ नही होना चाहता मगर आज जहाँ तक भी द्र्ष्टि जाती है अधिकांशतः अस्वस्थ तनाव मे नजर आते है हँसते खिलखिलाते चेहरे मिलने ही मुश्किल हो गये ।
कही एसा तो नही, चाह हमारी सही हो मगर राह गलत हो।
 जिस देश मे  स्वस्थ रहने के लिए ग्रंथ उपनिषेद लिखे गये हो,जहा राम कृष्ण महावीर बुद्ध गुरुनानक विवेकानन्द जैसे महापुरुष पैदा हुए हो जिन्होने सम्पुर्ण मनुष्य जाति को आन्नद से जीने का रास्ता बताया हो उस देश मे अराजकता तनावपुर्ण जीवन,अधिकांशतः अस्वस्थ, यह समझ से बहार की बात है निश्चय ही हम गलत मार्ग पर चल रहे है हमारी संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है इस बात को हम सब मानते है, मानते तो है मगर जानने का प्रयास नही करते ।
कारण क्या है
 हम जो कुछ भी करते है temporary  मजे के लिए करते है हमे पता होता है जल्दी उठना स्वाथ्य के लिए अच्छा होता है मगर temporary  मजे के लिय हम देर से सोकर उठते है । सबको पता है सुबह उठ्ते ही  चाय पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है फिर भी हम चाय पीते है सुबह उठकर योगा प्राणायाम ध्यान करना स्वास्थ के लिए अच्छा है फिर भी हम नही करते । हम वह सब काम करते है जो हमारे लिए अच्छा नही है हमे पता है फिर भी करते है ।
 कारण क्या है ?
 हम सिर्फ temporary  सुख पाना चाहते है ।
temporary  सुख हमे permanent pain दे कर जाता है जबकि temporary pain हमे  permanent सुख दे कर जाता है ।
 मन हमारा प्रत्येक पल सुख चाहता है वह वही कार्य करना चाहता है जिसमे उसको मजा आ रहा होता है ।
आप कार के मालिक है कार ड्राइवर चला रहा है आप पीछे  की सीट पर बैठे है बैठे-बैठे आपको नींद आ  गयी ड्राइवर ने देखा मालिक सो रहा है उसने कार की स्पिड बढा दी और उसने इतनी स्पीड बढा दी  कार उसके नियन्त्रण से बहार हो गयी,  कभी सामने से आ रही गाड़ी से टक्कर मार दी कभी साइड मे बने स्पीड ब्रेकर से टक्कर मार दी । क्या होगा कार का हुलिया बिगड़ जायेगा कार कई जगह से डैमेज हो गयी । अचानक मालिक की आँख खुल गयी उसने ड्राइवर को डाँट लगाई कैसे चला रहे हो ? अब ड्राइवर उसके नियंत्रण मे है जैसे वह चाहता है ड्राइवर वैसे ही अब कार चला रहा है अब वह ड्राइवर को दिशानिर्देश दे रहा है और ड्राइवर उसके नौकर की तरह आज्ञा मान रहा है ।
कार आपकी बोडी है ड्राइवर आपका मन है मालिक आप (आत्मा) हो ।  अगर आप जागे हो तो मन  आपका गुलाम है  । आप सोये है तो मन मालिक बन जाता है ।
 आप सोये है तो सुख भी आपका सोया है क्योकि मन एसी चीजो मे जाता है जो आपके पास नही है।जो आपके पास है उसका आप सुख नही ले पाते पूरी जिन्दगी कामनाओ की पुर्ति मे लगा देते है जो मरते समय तक पूरी नही हो पाती । मन हमारा कामनाओ की तरफ भागता है मुझे ये लेना है मेरे पास ये भी होना चाहिए । मै यह काम कर लू, मै यह भी काम कर लू । मन हमारा कभी इधर कभी उधर भागता रहता है। हम लोभ मोह क्रोध आदि से टकराकर अपने को क्षतिग्रस्त करते रहते है।
जैसा पौधा लगाया है वैसा ही फल मिलेगा, अगर अमरुद का पौधा लगाया है हम कहते रहे आम आयेगा आम आयेगा । जब वह पौधा पेड़ बनेगा तो क्या उस पेड़ पर आम आयेगा ? कभी नही आयेगा
 हम कितनी भी कोशिश कर ले  उस पेड़ पर आम आ जाये, आम आ जाय । पौधा लगाया अमरुद का तो उस पर तो अमरुद ही आयेगे  ।
 पौधा लगाया लोभ का, इच्छा रखे आनंद की, क्या ऐसा सम्भव है ?
लोभ के पौधे से तो सिर्फ क्रोध तनाव दुख ही मिल सकता है आपके पास कितना भी धन सम्पत्ति भोग की वस्तुए आ जाये वह भी कम पड़ जायेगी कभी पूरी नही पड़ेगी ।
 गीता मे लिखा है यह मनुष्य जीवन सिर्फ और दूसरो की सेवा के लिए है अपने लिए कुछ नही करना है बच्चे पैदा करना खाना पीना सोना आदि ये सब कर्म तो जानवर भी करते है । फिर  हममे इनमे फर्क क्या है ?
 मनुष्य जीवन की सार्थकता तब है जब हम दूसरो को खुशियॉ दे सके उनका दुख बांट सके । मगर  उससे पहले स्वंय जीना सिखना होगा स्वंय को आनंदित करना होगा जो स्वंय दुखी है वह क्या दूसरो को सुख दे पायेगा जो आपके पास है वही आप दूसरो को दे सकते हो । सबसे पहले तो अपने लिए जीना सिखये अपने विकारो को निकालकर बहार फेक दीजिए काम क्रोध लोभ मोह ये हमारे सबसे बड़े शत्रु है इनका नाश किए बीना हम आनंद महसूस नही कर सकते । हमारे पास जो कुछ भी है उसे परमात्मा का मानिए आपका कुछ है ही नही, लाभ हानी सुख-दुख होगा ही नही। नफा हुआ तो परमात्मा का हुआ, नुकसान हुआ तो परमात्मा का हुआ यह सब इस संसार मे आकर ही आपको प्राप्त हुआ है आपके पास पहले भी नही था कल भी नही रहेगा केवल कुछ समय के लिए वर्तमान मे आपको कर्म करने के लिय ये धन –सम्पत्ति आदि मिले है । इसको एसे समझो – कोई व्यक़्ति किसी कार्यालय मे कार्य करता है वहा उसे कम्पयूटर पैन पेपर कुर्सी मेज आदि मिलते है वह सारे दिन उन वस्तुओ से कार्य करता है मगर वह उन वस्तुओ को घर नही ला सकता क्योकि वह उसकी नही है केवल कार्यलय मे कार्य करने के लिए ही उसे मिली है अगर वह घर लाता है तो समझ सकते है उसे क्या कहा जाता है ।  
 इसीप्रकार जो कुछ भी हमे मिला है वह सब संसार की सेवा करने के लिए ही मिला है उनसे आसक्ति नही रखनी है कुछ भी अपना नही है ऐसा मान लेने से सुख दुख की अनुभूति नही होती, और आनंद की अनुभूति होने लगती है ।
             
  ध्यान (meditation) इस ओर ले जाने का एक रास्ता है जो हमे स्वयं की पहचान कराता है । और हमारे अन्दर के विकारो को निकालने मे मदद करता है । ध्यान करने से स्वस्थ तन ही नही मन भी मिलता है हम अपने शरीर के लिए बहुत कुछ करते है व्यायाम भी करते है कई बार सोचते भी है शरीर को कैसे फीट रखे ? क्या कभी सोचा है मस्तिष्क के बारे मे, सारा शरीर मस्तिष्क से ही संचालित होता है । हाथ कट जाये पैर कट जाये फिर भी मनुष्य के जीवित रहने की सम्भानाये है ।  अगर गर्दन कट जाये तो क्या होगा ?
 इसलिए इस मस्तिष्क की खुराक भी ध्यान करने से मिलती है ।
ध्यान (meditation) है क्या ?
अधिकांशतः लोग समझते है शांत उदास चेहरा लेकर बैठ जाना ही ध्यान  (meditation) है । आप शांत होकर बैठ कैसे सकते है दुनिया भर का उपद्रव  तो तुम्हारे अन्दर दबा हुआ है अगर आप बैठ भी गये तो पाखंड के अतिरिक्त कुछ नही होगा आप शांत बैठने के दिखावा तो कर सकते है जिसके अन्दर शान्ति आ गयी सब कुछ शान्त हो गया वह इमानदार हो जाता है तुम दिखावा करते हो तो बेइमानी   करते हो तो तुम पाखंडी  हो ।
  हमारे पेट मे जो कुछ दबा है नकरात्मक विचार लोभ काम क्रोध आदि सब कुछ निकालना है
ध्यान का पहला नियम है जो भी तुम्हारे अन्दर दबा हुआ है उसे बहार निकाल देना । प्राणयाम द्वारा गहरी श्वास छोड़िये श्वास इतनी गहरी हो आप न रहे आपकी सिर्फ श्वास ही रह जाये जितना भी आपने अन्दर दबाया हुआ है सब निकल जाता है और अन्दर से शान्त होते चले जाते है जैसे जैसे आप अन्दर से शान्त होते चले जाते है एक आन्नद की लहर दौड़ने लगती है  स्वच्छ नई उर्जा का संचार होने लगता है ।
 अगर आपके जीवन मे आन्नद ही आन्नद हो, तनाव दुख रोग न हो तो सारा समाज सारा संसार खुबसूरत नजर आने लगता है अन्दर से एसे प्रेम का उदय होता है कि मन करता है सबसे प्रेम करे । जिन्दगी मस्त हो जाती है । स्वर्ग नरक यही है बस देखने का  नज़रिया  है आप दुखी है परेशान है  तनाव मे है तो आपको यह संसार  नरक लगता है आपके जीवन मे सिर्फ आन्नद ही आन्नद है तो आपको यह संसार स्वर्ग लगता है ।
 कुछ सालो पहले मै भी यही समझता था यह जिन्दगी कितनी बकवास है यहा दुख तनाव के सिवा है क्या ? शरीर मे अनेक बीमारियो ने अपना घर बना लिया कुछ तो एसी जो जीवन भर साथ रहेंगी । जिन्दगी मे बहुत सारे तनाव थे यह जीवन नीरस लगने लगा था बस अपने परिवार के लिए   जिन्दा रहना है । अगर मै न रहु तो बच्चो का क्या होगा ?  पूरा परिवार ही तनाव मे था ।
 सिर्फ एक वाक्य ने मेरी जिन्दगी बदल दी ।
  आप दूसरो को नही बदल सकते सिर्फ अपने आप को बदल सकते है
 उस दिन से मै सिर्फ अपने लिये जीता हू । स्वार्थी बन गया । मै सिर्फ अपनी खुशियो के लिए जीता हूँ जो आपके पास है वही आप दूसरो को दे सकते है अगर आप खुश है तो आप दूसरो को खुशियॉ ही दोगे
अगर आप दुखी है तो आप दूसरो को क्या खुशियॉ दे सकते हो ? आप दुखी हो तो दूसरो के साथ दुख ही बाँट सकते हो । आप जो हो वही आप दूसरो से शेयर करते हो ।
 आन्नद से रहने के लिये नये-नये रास्ते खोजने शुरु किये ।  इतना तो समझ मे आ गया था जब तक तन और मन  स्वस्थ नही होगा आन्नद की अनुभूति नही हो सकती मैने योगा शुरु किया कुछ समय बाद हीं   शरीर स्वस्थ होने लगा मगर मन बीमार था उसे ज्यादा फायदा नही हो पा रहा था जीवन मे थोड़ी भी समस्या आती तो शरीर टुट जाता एसा  लगता जैसे कब का बीमार हूँ ।
 तब मैने  ध्यान (meditation) के बारे मे सोचना शुरु किया और कल्पना की एसा ध्यान (meditation) हो जो हमे शारीरिक और मानसिक दोनो तरह से फिट रखे ।
 Spiritul & energetic meditation ने मेरी दुनिया ही बदल दी, जीवन मे आन्नद आने लगा ।
 तब मैने निश्चय किया  मै लोगो की जिन्दगी से दुख तनाव रोग मिटाकर खुशियों  से भरने का प्रयास करुगा,  एहसास कराऊँगा  कि जिन्दगी कितनी खुबसूरत है ।
                                            


Tuesday, 19 January 2016

How to become success in life for student {in hindi}

              
सभी सफल होना चाहते है सफलता सभी को अच्छी लगती है केवल कुछ ही लोग सफलता के शिखर पर पहुँच पाते है सफल तो सभी होते है अपने जीवन मे,मगर हम समझ नही पाते,एक छोटी सी कहानी आपने सुनी  होगी ।
अकबर ने एक लकीर खीची और अपने दरबारियो से कहा –‘ इस लकीर को छोटी करना है मगर इस लकीर को मिटाना नही है । सभी दरबारियो ने दिमाग लगाया मगर कोई भी इस लकीर को छोटी नही कर पाया अंत मे बीरबल आया उसने उसके बराबर मे उससे बड़ी एक लकीर खीच दी अकबर की खीची लकीर छोटी हो गयी ।
 यही हमारे जीवन मे होता है । हमे कितनी भी सफलता मिल जाये अपेक्षा की लकीर हमेशा बड़ी खीच जाती है हमे जो कुछ भी मिलता है हम उसका मजा नही ले पाते । क्यो नही ले पाते ? जो कुछ भी हमे मिलता है हमेशा कम पड़ जाता है अपेक्षा की लकीर हमेशा बड़ी हो जाती है । कितने भी अच्छे नम्बर आ जाये उसका कभी मजा नही ले पाते अपेक्षा हमेशा उससे ज्यादा की होती है किसी के 70% मार्क्स आये वह भी कहता है बड़े कम आये किसी के 90% आये 95%आये वह और भी ज्यादा की अपेक्षा लगाये बैठा है और तो और किसी के 99% भी आ गये वह भी कहता है 1% और आ जाते तो मजा आ जाता । आज आप के लिये जो मार्क्स है वह कल आपके लिये रुपये बनने वाले है आज आप student है कल  कोई नौकरी करेगा कोई व्यापार करेगा या जो भी करेगा मगर उसका वह मजा नही ले पायेगा हमेशा तनाव मे रहेगा उसे जो भी मिलता है अपेक्षा की लकीर उससे बड़ी खीच जाती है ।  
 मेरे कहने का यह मतलब नही है  ज्यादा मार्कस लाना या धन कमाना बूरा  है। भाई मार्कस या धन बूरा नही  है मगर जितना मिला है उसका मजा लो ज्यादा की अपेक्षा करके उसका मजा खराब मत करो उसको enjoy करो ।
 मगर इस समय जो आपका कर्म है उसको 100% दो ।
Student की लाइफ का सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या है?
इस समय आपको नौकरी नही करनी है व्यापार नही करना है डाक्टर आप नही बन सकते हिरो बनने का सपना तो आप देख सकते हो मगर हिरो नही बन सकते । आप सपने तो बड़े –बड़े देख सकते हो मगर सपने देखने से कुछ होने वाला नही है आपका इस समय कर्म कया है ? सिर्फ पढ़ना , उसमे आपको अपनी क्षमता के अनुसार अपना100% देना है अगर एक बार आपने अपना 100% देना सिख लिया तो कल आप चाहे नौकरी करो व्यापार करो या जो भी करोगे आप अपना 100% दोगे क्योकि आपने Student लाइफ मे 100% देना सिख लिया । 
 समस्या क्या है ?
हम  किसी भी कार्य मे 100% दे क्यो नही पाते ? हम असफल क्यो होते है । हम जो भी कर्म करते है कामना के  आकर्षण  के कारण करते है । हम जब संसार मे देखते है कोई डाक्टर है सीए है इंजीनियर है या अन्य प्रोफेशन मे है बहुत पैसा कमा रहे है हम आकर्षित हो जाते है मुझे भी सीए बनना है डाक्टर बनना है क्योकि उसमे पैसो का आकर्षण हैं । इसलिए नही कि मै क्या चाहता हु। मुझमे क्या टेलेन्ट है हम जो भी करते है आकर्षण के कारण करते है पहले आकर्षित होते है फिर कामना पैदा होती है कामना से मोह पैदा होता है हम जो भी करना चाहते है उसी प्रोफेशन से मोह पैदा हो गया । कोई खुबसूरत लड़की हमे दिखाई दी उसे देखते ही अन्दर से कुछ हलचल शुरु हो गयी अन्दर कुछ बनना शुरु हो गया एक कामना पैदा हुयी उसे प्राप्त करने की उससे मोह हो गया वह दुबारा दिखाई दे उससे सिर्फ मोह है उसे सिर्फ पाना चाहते है एक आकर्षण है क्योकि वह तुम्हे सुन्दर लग रही है जिसे हम प्रेम का नाम दे देते है । जबकि वह प्रेम नही है मोह है प्रेम और मोह मे बहुत बड़ा अन्तर है प्रेम मे कुछ पाने की लालसा नही होती प्रेम निष्काम होता है सिर्फ देने का भाव होता है और जब हमे अपने कर्म से प्रेम हो जाता है तो पाने के लिए कुछ नही रहता मुझे पढ़ना है पढ़ कर कुछ बनना है अपने लिए नही मुझे अपने परिवार को बेहतर जिन्दगी देनी है समाज के लिए कुछ करना है इसलिए पढ़कर कुछ बनना है जबकि मोह मे पाने की लालसा होती है इस प्रोफेशन मे इतना पैसा है इसलिए मुझे पढ़ना है पढ़कर यह बनना है वह मुंगेरीलाल कि तरह सपने देखता रहेगा   कोई न्यू माडल कार बाजार मे आयी आप उसकि और आकर्षित हो गये आपके मन के किसी कोने मे पाने की कामना पैदा हो गयी आपको उस कार से मोह पैदा हो गया आपके बजट मे अगर है तो आप उसे ले भी लेते हो आप को बहुत खुशी होती है मगर वाली बात है  यह खुशी कितने दिन रहती है कुछ समय बाद ही नया माँड्ल बाजार मे आ गया उसकी और आकर्षित हो गये अब देखिये कितने मजे की बात है वह कार जिसे पाने के लिए इतने ललाइत थे उसमे आकर्षण खत्म हो गया
  हम कामना पहले करते है काम के बारे मे बाद मे सोचते है । अक्सर हम उस लाइन मे जाना चाहते है जहॉ  पैसा बहुत है जहॉ पैसा का आकर्षण है इस लिए हम उस काम को करना चाहते है । जबकी हमारी सोच ये होनी चाहिये मेरा इस काम मे interst है मुझे मजा आता है इस लिये मुझे यह काम करना है । इस लिए नही करना है कि दुसरे ने किया और बहुत पैसा बनाया । जिस काम को करने मे आपको मजा आता है उसमे मेहनत नही करनी पड़ती आपको 18 घंटे भी काम करना पड़े तो भी आपको थकान महसूस नही होगी क्योकि उसमे आपको रस आ रहा है कोई कामना नही है सिर्फ आप अपने मजे के लिए कर रहे है निष्काम भाव से कार्य कर रहे है । जहाँ आप कामना पहले रखकर काम करते है आपका उस काम मे interst तो है नही सिर्फ फल के लिये कार्य कर रहे है उसमे आपको मेहनत करनी होगी और जहाँ मेहनत होती है वहाँ थकान जल्दी आ जाती है।
          यह सकाम बुध्दि हमेशा असफल होती है लाभ हो तो भी हानि दिखाई पड़ती है । अपेक्षा की लकीर मिटा दो निष्काम कर्म का अर्थ यही है अपेक्षा रहित, अगर अपेक्षा की लकीर मिटा दे तो फिर छोटा सा कर्म भी तृप्ति लाता है कितना ही छोटा है वह भी बड़ा हो जाता है क्योकि तोलने के लिए कोई लकीर नही होती इसलिए जो निष्काम कर्म करता है वह कभी दुखी नही होता सिर्फ सकामकर्मी ही दुख को उपलब्ध होता है ।
   एक छोटी सी कहानी से समझने का प्रयास करते है ।   
 एक घ्रर मे एक संत गये वहा सभी चिन्तित थे परेशान से दिख रहे थे । संत ने पूछा आखिर बात क्या है ? क्या बताए बहुत परेशान है पाँच लाख का नुकसान हो गया । दुख तो होना स्वाभिक है संत ने उनकी पत्नी से पूछा- पाँच लाख का नुकसान कैसे हो गया । पत्नी ने कहा – आप इनकी बातो मे मत पड़ना । इन्हे पाँच लाख का नुकसान नही हुआ है बल्कि पाँच लाख का फायदा हुआ है वह बड़ी मुश्किल मे पड़ गये । संत ने कहा – क्या कहती है आप ?
बिल्कुल ठीक कहती हुं उन्हे 10 लाख के लाभ की आशा थी मगर पाँच लाख का ही फायदा हुआ इसलिए इनको पाँच लाख का फायदा लग रहा है नींद हराम हो गयी ब्लडप्रेअशर बढा हुआ है दवाये चल रही है इन्हे  समझाने का कोई उपाय नही है ।
 इतना ध्यान रखना सकाम बुध्दि सदा असफल होती है लाभ भी होता है तो भी हानी ही होती है क्योकि अपेक्षा का कोई अंत नही होता जो भी मिलता है वह कम पड़ता है जो भी सफलता मिलती है कभी तृप्ति नही होती कुछ भी मिल जाये संतोष की कोई झलक नही मिलती सकाम कर्म हमेशा असफल होने को बाध्य है

 निष्काम कर्म का छोटा सा भी कृत्य सफल होता है जब निष्काम है अपेक्षा रहित है इसलिए जो भी  मिल जाए वह बहुत है क्योकि कोई अपेक्षा ही नही थी जिसमे उसको छोटा बताया जा सके इस समय आपका कर्म क्या है पढना, नम्बर्स के लिए नही पढ़ना हमारा इस समय कर्म है पढ़ना, जब आप अपना 100% दोगे तो नम्बर्स तो अपने आप आयेगे जहाँ निष्काम कर्म होता है वहाँ फल छाया की तरह साथ साथ चलता है जो भी आपको मिलता है उसका enjoy करो मजा लो  mind आपका freash है  उस मे कुछ भरा हुआ नही है  mind  आगे और बेहतर करेगा जब हम कोई अपेक्षा नही रखते 70,80 या 50% भी क्यो आये, जम कर सेलिब्रेट करे हमने अपना 100% दिया जो भी मिला उसकी हमे परवाह नही

 कृष्ण ने भी गीता मे कहा है निष्काम कर्म का कोई भी कदम व्यर्थ नही जाता निष्काम कर्म का छोटा सा प्रयास भी व्यर्थ नही जाता इसके विपरीत सकाम कर्म का बड़े से बड़ा प्रयास भी व्यर्थ हो जाता है ।
यह तो हो गयी निष्काम कर्म की बात –
 Student  की  problam क्या है हम अपना 100% क्यो नही दे पाते, चाहते तो सब है पढ़ना, मगर पुरा नही दे पाते । कारण क्या हैं? हमारी सबसे बड़ी समस्या है हम चाहते न चाहने हुए भी गलत ट्रैक पर   चले जाते है।
 गलत ट्रैक क्या है ?
 सिगरेट पीना गुटखा खाना शराब पीना, टीवी देखना मोबाईल पर बैठे  रहना, फेसबुक व्हाटशेप पर बैठे रहना । मोबाइल बुरा नही है टीवी बुरा नही है अगर  मनोरंजन के लिय 30-40 मिनट देखते है तो ठीक है मगर टीवी से adiction हो  जाये तो गलत है आप सारे दिन टीवी पर चिपके रहे यह गलत ट्रैक है आपका मोबाइल बुरा नही है आपका मोबाइल से adiction हो जाये यह बुरा है खाना का रहे है खाना खाते हुए भी फेसबुक व्हाटशेप पर देखले कोई मैसेज तो नही है हम से वह छुट ही नही पाता । पढ़ रहे होते है तो भी mind मे चल रहा होता है एक बार व्हाट्शेप पर देख लू कोई मैसेज है क्या ?
 सही टैक क्या है ? अगर हम Student  है तो हमारे लिए  जरुरी  क्या है ? पढ़ना  सिर्फ पढ़ना ।
अब  समस्या ये है concerntrate कैसे करे आपको फेसबुक मे interst है आप किसी से पूछते हो क्या फेसबुक खोलू या न खोलू सब मना करते है तब भी खोलते है इसका मतलब आप पढ़ तो रहे  है मगर आप का interst नही है अगर  आप 12th या 10th standerd मे है आप सपने देखते है  डाक्टर बनना चाहते है व्यापारी बनना चाहते है । इस समय आप कुछ नही कर सकते, सिर्फ एक काम के सिवा और वह है सिर्फ पढ़ना आप सिर्फ पढ सकते हो इस  समय यही आपका कर्म है इसके अलावा आप कुछ नही कर सकते । वह भी निष्काम भाव से कर्म करो जो भी मिले उसका enjoy करो निष्काम भाव से जब आप कर्म  करते है। बिना किसी फल की कामना के स्टडी करते है तो क्या टीचर्स आपको नम्बर्स देंगे नही ? जब हम निष्काम कर्म करते है तो फल उसके साय की तरह साथ चलता है सारे विश्व की उर्जा उनके साथ खड़ी होती है । आपको कामयाब होने से कोई नही रोक सकता । जब सकाम कर्म करते है पहले फल की इच्छा करते है । पहले फल आया फिर  फल को ध्यान मे रखते हुए कर्म करते है। आप का माइन्ड दो जगह बट गया फल और कर्म । और विश्व की सारी उर्जा आपके विपरित खड़ी हो जाती है और आप कभी भी सफलता का मजा नही ले सकते ।
 पढाई मे हमारा मन क्यो नही लगता  
हम सोते कयो है आप से कह दिया जाये आपको 10 दिनो तक नही सोना है आप सोये बीना नही रह सकते । क्यो नही रह सकते ? क्योकि आपके पास सोने की वजह है सोने से हमे ताजगी और ऊर्जा मिलती है सोने की हमा्रे पास वजह है अगर एसी ही कोइ वजह हमारे पास पढ्ने की हो कोई भी हम से कहे – मत पढो “ आप तब कहोगे नही मुझे तो सिर्फ पढना है । कोई बड़ी वजह होनी चाहिए आप सोये बीना नही रह सकते
  आपको  जिन्द्गी मे क्या करना है मुफ्त की रोटिया तोड़नी है या कुछ करना है अगर कुछ करना है तो पढ़ना है । पढ़ना भी किसी के लिए नही मम्मी के लिये नही पापा के लिए नही सिर्फ अपने लिए पढ़ना है । जीवन मे कुछ करना है तो पढ़ना है अपने मन को समझा दो जब भी मन इधर उधर भागे तो इस मंत्र का उच्चारण करो
 अगर जीवन मे कुछ करना है तो पढ़ना है ।
एक वजह तो आपको मिल गयी ।
जिस समय जो काम मिला है उसे निष्काम भाव से करना है अपना 100% देना है पढाई के बाद जिस भी प्रोफेशन मे जाते है अपना 100% दो घर पर हो तो अपने परिवार को 100% दो कहने का मतलब है जहा जिस समय आपको जो कर्म मिला है उसे 100% देना ।
 कर्म करना हमार हाथ मे है अभी है यही है साहस दिखाना है बहादुरी दिखानी है फल को छोड़ने मे, संकल्प लेना है कर्म को करने मे । मै कभी पीछे नही हटुगा । फल छोड़ने का साहस निश्चित ही फल ले आता है लेकिन आपको फल की कामना नही करना है फल तो कर्म की छाया की तरह साथ साथ चलता है जिसने फल को छोड़ा,  विश्व की सारी उर्जा उसकी सहयोगी हो जाती है ।
 फल की कामना करते ही  सारी विश्व की उर्जा हमारे विपरित हो जाती है।
  जैसे ही हम कहते है जो तेरी मर्जी जो हमने करना था कर दिया तो सारी विश्व ऊर्जा  मित्र की तरह हमारे साथ खड़ी  हो जाती है ।
 जब हम कहते है मै कर्म कर रहा हु मुझे फल मिलना चाहिए तब हम विश्व ऊर्जा के विपरित खड़े हो जाते है इसलिए असफलता के अतिरिक्त कुछ नही मिलता ।
 सफलता केवल धन मिलना  नही होता सफलता का मतलब है आप संतुष्ट है खुश है मस्त है स्वस्थ है तब आप सफल है।
 कर्म करना आपके हाथ मे है फल परमात्मा का प्रसाद है।
                                                   

Saturday, 16 January 2016

भीतर है शांति, और भीतर है सुख, और भीतर है समाधि

मैं एक छोटी सी कहानी कहूंगा।
हिमालय की घाटियों में एक चिड़िया निरंतर रट लगाती है—जुहो! जुहो! जुहो!
अगर तुम हिमालय गए हो तो तुमने इस चिड़िया को सुना होगा। इस दर्द भरी पुकार से हिमालय के सारे यात्री परिचित हैं। घने जंगलों में, पहाड़ी झरनों के पास, गहरी घाटियों में निरंतर सुनायी पड़ता है—जुहो! जुहो! जुहो! और एक रिसता दर्द पीछे छूट जाता है। इस पक्षी के संबंध में एक मार्मिक लोक—कथा है।
किसी जमाने में एक अत्यंत रूपवती पहाडी कन्या थी, जो वर्ड्सवर्थ की लूसी की भांति झरनों के संगीत, वृक्षों की मर्मर और घाटियों की प्रतिध्वनियों पर पली थी। लेकिन उसका पिता गरीब था और लाचारी में उसने अपनी कन्या को मैदानों में ब्याह दिया। वे मैदान, जहां सूरज आग की तरह तपता है। और झरनों और जंगलों का जहां नाम—निशान भी नहीं। प्रीतम के स्नेह की छाया में वर्षा और सर्दी के दिन तौ किसी तरह बीत गए, कट गए, पर फिर आए सूरज के तपते हुए दिन—वह युवती अकुला उठी पहाड़ों के लिए। उसने नैहर जाने की प्रार्थना की। आग बरसती थी—न सो सकती थी, न उठ सकती थी, न बैठ सकती थी। ऐसी आग उसने कभी जानी न थी। पहाड़ों के झरनों के पास पली थी, पहाड़ों की शीतलता में पली थी, हिमालय उसके रोएं—रोएं में बसा था। पर सास ने इनकार कर दिया।
वह धूप में तपें गुलाब की तरह कुम्हलाने लगी। श्रृंगार छूटा, वेश—विन्यास छूटा, खाना—पीना भी छूट गया। अंत में सास ने कहा—अच्छा, तुम्हें कल भेज देंगे। सुबह हुई, उसने आकुलता से पूछा—जुहो? जाऊं? जुहो पहाड़ी भाषा में अर्थ रखता है—जाऊं? सुबह हुई, उसने पूछा—जुहो? जाऊं? सास ने कहा— भोल जाला। कल सुबह जाना। वह और भी मुरझा गयी, एक दिन और किसी तरह कट गया, दूसरे दिन उसने पूछा—जुहो? सास ने कहा—भोल जाला। रोज वह अपना सामान संवारती, रोज प्रीतम से विदा लेती, रोज सुबह उठती, रोज पूछती—जुहो? और रोज सुनने को मिलता— भोल जाला।
एक दिन जेठ का तप—तपा लग गया। धरती धूप में चटक गयी। वृक्षों पर चिडियाए लू खाकर गिरने लगीं। उसने अंतिम बार सूखे कंठ से पूछा—जुहो? सास ने कहा— भोल जाला। फिर वह कुछ भी न बोली। शाम एक वृक्ष के नीचे वह प्राणहीन मृत पायी गयी। गरमी से काली पड़ गयी थी। वृक्ष की डाली पर एक चिड़िया बैठी थी, जो गर्दन हिलाकर बोली—जुहो? और उत्तर की प्रतीक्षा के बिना अपने नन्हे पंख फैलाकर हिमाच्छादित हिमशिखरों की तरफ उड़ गयी।
तब से आज तक यह चिड़िया पूछती है—जुहो? जुहो? और एक कर्कश—स्वर पक्षी उत्तर देता है— भोल जाला। और वह चिड़िया चुप हो जाती है।
ऐसी पुकार हम सबके मन में है। न—मालूम किन शांत, हरियाली घाटियों से हम आए हैं! न—मालूम किस और दूसरी दुनिया के हम वासी हैं! यह जगत हमारा घर नहीं। यहां हम अजनबी हैं। यहां हम परदेशी हैं। और निरंतर एक प्यास भीतर है अपने घर लौट जाने की, हिमाच्छादित शिखरों को छूने की। जब तक परमात्मा में हम वापस न लौट जाएं तब तक यह प्यास जारी रहती है, प्राण पूछते ही रहते है—जुहो? जुहो?
तुमने पूछा है, 'मेरे भीतर एक प्यास है, बस इतना ही जानता हूं। किस बात की, यह साफ नहीं है। आप कुछ कहें। '
मैंने यह कहानी कही; इस पर ध्यान करना। सभी के भीतर है—पता हो, न पता हो। होश से समझो, तो साफ हो जाएगी; होश से न समझोगे, तो धुंधली— धुंधली बनी रहेगी और भीतर— भीतर सरकती रहेगी। लेकिन यह पृथ्वी हमारा घर नहीं है। यहां हम अजनबी हैं। हमारा घर कहीं और है—समय के पार, स्थान के पार। बाहर हमारा घर नहीं है, भीतर हमारा घर है। और भीतर है शांति, और भीतर है सुख, और भीतर है समाधि। उसकी ही प्यास है।

आगे हुए बिना कोई कीमत नहीं

                                                       Image result for school boy                                                                                                                                                        हम छोटे-छोटे बच्चों का मन भी जहर से भर देते हैं। छोटा-सा बच्चा स्कूल जा रहा है, पांच-छः साल का बच्चा है, बस्ता इत्यादि लटकाए स्कूल जा रहा है, उसको हम जहर पिलाना शुरू कर देते हैं, कि प्रथम आना, कक्षा में प्रथम आना! तीस बच्चों को पछाड़ कर आगे निकल जाना! तो ही तुम्हारी कुछ कीमत है। फिर अगर यही बच्चे जिंदगीभर आगे होने में लगे रहते हैं, कोई धन में आगे होने में लगा है, कोई पद में आगे होने में लगा है, कोई किसी तरह, कोई किसी तरह येन केन प्रकारेण, फिर कुछ भी हो, कुछ साधन अखत्यार करना पड़े–लेकिन किसी तरह आगे होना है! क्योंकि आगे हुए बिना कोई कीमत नहीं, कोई मूल्य नहीं। मूल्य है एक बात का कि तुम कहां हो, कितने लोग तुम्हारे पीछे हैं। जितने लोगों को तुम पीछे करते हो, उतने मूल्यवान हो।
लेकिन ध्यान रखना, जब तुम एक आदमी को पीछे करते हो, तुम उतने कठोर हो गए। दो को किया, और ज्यादा कठोर हो गए। तीन को किया, और ज्यादा कठोर हो गए।
महत्त्वाकांक्षी पत्थर हो जाएगा, बड़ा स्थूल हो जाएगा। राजनीतिज्ञ से ज्यादा स्थूल व्यक्ति संसार में दूसरा नहीं होता। राजनीतिज्ञ से ज्यादा धर्म के विपरीत दूसरा आदमी नहीं होता। यहां वेश्याएं भी धार्मिक हो सकती हैं। यहां पापी भी धार्मिक हो सकते हैं। लेकिन राजनीतिज्ञ का धार्मिक होना बहुत कठिन हो जाता है। कारण? उसकी दौड़ ही धर्म के बिल्कुल विपरीत है। जीसस कहते हैं: “जो यहां प्रथम है, वह अंतिम हो जाता है मेरे प्रभु के राज्य में; और जो अंतिम है वह प्रथम हो जाता है।’ तो यहां तो प्रथम राजनीतिज्ञ हैं। यह जो प्रथम होने की दौड़ है, यह अहंकार की ही उद्घोषणा है। और अहंकार परमात्मा से तोड़ता है।
अजहूं चेत गंवार, प्रवचन # ११, ओशो

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