लेकिन सभ्यता ने मनुष्य को ऐसा जकड़ा है कि वह नाच भी नहीं सकता। मेरी समझ में, दुनिया को अगर वापस धार्मिक बनाना हो तो हमें जीवन की सहजता को वापस लौटाना पडे।
तो यह हो सकता है कि जब ध्यान की ऊर्जा जगे आपके भीतर तो सारे प्राण नाचने लगें, उस वक्त आप शरीर को मत रोक लेना। अन्यथा बात वहीं ठहर जाएगी, रुक जाएगी; और कुछ होनेवाला था, वह नहीं हो पाएगा। लेकिन हम बड़े डरे हुए लोग हैं। हम कहेंगे कि अगर मैं नाचने लगू मेरी पत्नी पास बैठी है, मेरा बेटा पास बैठा है, वे क्या सोचेंगे, कि पिता जी और नाचते हैं! अगर मैं नाचने लगै तो पति पास बैठे हैं, वे क्या सोचेंगे, कि मेरी पत्नी पागल तो नहीं हो गई।
अगर ये भय रहे तो उस भीतर की यात्रा पर गति नहीं हो पाएगी।
और शरीर की मुद्राओं, आसनों के साथ—साथ और बहुत कुछ भी प्रकट होता है।
एक बड़े विचारक हैं। न मालूम कितने संन्यासी, साधुओं, आश्रमों, न मालूम कहां—कहां गए। इधर कोई छह महीने पहले मेरे पास आए। तो उन्होंने कहा, सब समझ में आता है, लेकिन मुझे कुछ होता नहीं।
फिर, मैंने उनसे कहा, आप होने न देते होंगे।
वे कुछ विचार में पड़ गए। उन्होंने कहा, यह मेरे खयाल में नहीं आया। शायद आप ठीक कहते हैं। लेकिन, एक बार आपके ध्यान में आया था, वहां मैंने किसी को रोते देखा, तो मैं तो बहुत सम्हलकर बैठ गया कि कहीं भूल—चूक से ऐसा मुझे न हो जाए, अन्यथा लोग क्या कहेंगे!
लोगों से प्रयोजन क्या है? ये लोग कौन हैं जो सबके पीछे पड़े हुए हैं? और लोग, जब मरेंगे तो बचाने न आएंगे; और लोग, जब आप दुख में होंगे तो दुख छीनने न आएंगे; और लोग, जब आप भटकेंगे अंधेरे में तो दीया न जलाएंगे। लेकिन जब आपका दीया जलने को हो, तब अचानक लोग आपको रोक लेंगे। ये लोग कौन हैं? कौन आपको रोकने आता है? आप ही अपने भय को लोग बना लेते हैं, आप ही अपने भय को फैला लेते हैं चारों तरफ।
वे मुझसे कहने लगे, हो सकता है; मैं तो डर गया जब मैंने किसी को रोते देखा और मैं सम्हलकर बैठ गया कि कहीं कुछ ऐसा मुझसे न हो जाए। मैंने उनसे कहा, आप एक महीने एकांत में चले जाएं; और जो होता हो होने दें। उन्होंने कहा, क्या मतलब? मैंने कहा कि अगर गालियां बकने का मन होता हो तो बके, चिल्लाने का मन होता हो तो चिल्लाएं; रोने का होता हो, रोएं; नाचने का होता हो, नाचे, दौड़ने का होता हो, दौड़े; पागल होने का मन होता हो तो महीने भर के लिए पागल हो जाएं। उन्होंने कहा, मैं न जा सकूंगा। मैंने कहा, क्यों? उन्होंने कहा कि आप जैसा कहते हैं, मुझे कई बार डर लगता है कि अगर मैं अपने को बिलकुल छोड़ दूं जैसा सहज आप कहते हैं, तो ठीक है कि मुझमें पागलपन प्रकट हो जाएगा।
तो मैंने उनसे कहा, आप दबाए रहेंगे, इससे कुछ फर्क तो नहीं पड़ता। प्रकट होगा तो निकल जाएगा, दबा रहेगा तो सदा आपके साथ रह जाएगा।
हम सबने बहुत कुछ सप्रेस किया है, दबाया है। न हम रोए हैं, न हम हंसे हैं, न हम नाचे हैं, न हम खेले हैं, न हम दौड़े हैं। हमने सब दबा लिया है, हमने अपने भीतर सब तरफ से द्वार बंद कर लिए हैं। और हर द्वार पर हम पहरेदार होकर बैठ गए हैं।
अब अगर हमें परमात्मा से मिलने जाना हो तो ये दरवाजे खोलने पड़ेंगे। तो डर लगेगा, क्योंकि जो—जो हमने रोका है वह प्रकट हो सकता है। अगर आपने रोना रोका है तो रोना बहेगा; हंसना रोका है, हंसना बहेगा।
उस सबको बह जाने दें, उस सबको निकल जाने दें....ओशो
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