जीवन इतने पर समाप्त नहीं है.
सितारों के आगे जहां और भी हैं
इश्क के अभी इम्तिहां और भी है
इश्क के अभी इम्तिहां और भी है
जो तुमने जाना वह तो कुछ भी नहीं है. ' सितारों के आगे जहां और भी है. ' अभी और जानने को शेष है. अभी जाना ही कुछ नहीं. अभी तो जानने का पहला कदम भी नहीं उठाया. अज्ञान में तो दग्ध होओगे ही.अज्ञान ही अग्नि है. नरक में तुमने जिस कड़ाहों की बात सुनी है कि कड़ाहे जल रहे हैं और आदमी कड़ाहों में भूने जा रहे हैं, इस भ्रांति में मत रहना कि ये कड़ाहे वस्तुत: कहीं हैं. यह तुम कैसे जिते हो, इसपर निर्भर है. तुमने अपने चारों तरफ कड़ाही बना ली है, इसमें भूने जा रहे हो.तुम जरा गौर से अपने जीवन को तो देखो !
मगर हम इतने होशियार है कि हमने नरक को भी बहुत दूर पाताल में रख दिया है. इस तरह यह भ्रांति बनी रहती है कि हम कोई नरक में नहीं हैं. थोड़ा दान - पुण्य कर लेंगे, गंगा में स्नान कर आएंगे, काबा की यात्रा करके हाजी हो जाएंगे, थोड़ा गरीबों को, भिखमंगो को, ब्राम्हणों को दान दे देंगे -- बस स्वर्ग अपना है. एक पिंजड़ा- पोल खुलवा देंगे, गौ- रक्षा करवा देगे, विधवा आश्रम बनवा देंगे, कि अनाथ बच्चों के लिए अनाथालय खुलवा देंगे. करोड़ों रूपये कमाओगे और दस - पांच हजार लगा कर एक हनुमान जी की मढ़िया बनवा दोगे. और सोचते हो स्वर्ग निश्चित !
तुमने स्वर्ग को भी दूर बना दिया है, वह भी होशियारी है. वह भी यहां स्वर्ग से बचने का उपाय.और तुमने नरक को दूर रख दिया है, ताकि तुम्हें यह न दिखाई पड़े कि तुम जहां हो वह नरक है.
मै चाहता हूं कि तुम दोने को पास ले आओ. नरक भी तुम्हारे वातावरण का नाम है और स्वर्ग भी. और फिर बात तुम्हारे हाथ में हैं. फिर बाजी तुम्हारे हाथ में है.
ओशो,
ज्यूं मछली बिन नीर
ज्यूं मछली बिन नीर
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