Saturday, 3 October 2015

तुम्हें ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना(ओशो)

गरीब जान के हमको न तुम भुला देना
तुम्हें ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना
दर्द में ही दवा है। दर्द के अतिरिक्त और कोई दवा नहीं है। इसीलिए तो मैंने तुमसे कहा कि विरह में मिलना छिपा है। आंसुओ में मुस्कुराहट छिपी है। अगर तुम हृदय पूर्वक रो सको, तो मिलन हो जाए। तुम दर्द ही नहीं उठने देते, वही तकलीफ है। वही अड़चन है। तुम दवा की तलाश में हो, और दवा दर्द की गहराई में है।
इसलिए तो तुमसे बार—बार कहता हूं—रोओ, पुकारों, चीखो, तड़फो—मछली की तरह तड़फो; जैसे मछली को किसी ने सागर से खींच कर किनारे पर पटक दिया हो। तुम ऐसी ही मछली हो जिसका सागर खो गया है और संसार की कड़ी धूप और गर्म रेत में तुम पड़े हो। तड़फो, दवा की तलाश मत करो। पुकारों, उछलों—कूदो। उसी उछल—कूद से सागर में वापस लौट जाने की व्यवस्था है। जिस दिन दर्द इतना गहरा हो जाए कि दर्द ही बचे और दर्दी न बचे, उसी दिन दवा हो जाती है। दर्द का हद से गुजर जाना है दवा हो जाना।
अंगूर में थी मय यह पानी की चंद बूंदें
जिस दिन से खिंच गयी है तलवार हो गयी।
आदमी और आदमी में इतना फर्क पड़ जाता है। एक साधारण संसारी है और एक भक्त। इतना फर्क पड़ जाता है जैसे, ‘ अंगूर में थी मय यह पानी की चंद बूंदें’ जब तक अंगूर में रहती है शराब तो कुछ भी नहीं है, पानी की चंद बूंद; ‘जिस दिन से खिंच गयी हैं तलवार हो गयीं’ जब तक तुम छोटी—मोटी पीड़ाओं में पड़े हो, तुम पानी की चंद बूंद हो। धन के लिए रो रहे, यह भी कोई रोना है! आंसू जैसी कीमती चीज धन जैसी बेकीमत चीज के लिए गंवा रहे हो! यह भी कोई रोना है। पत्नी मर गयी, पति मर गया और तुम रो रहे हो, यह भी कोई रोना है! क्योंकि जो मरना ही था, वह मर गया, वह मरने ही वाला था। यहां सब मरणधर्मा है। अमृत के लिए रोओ। मरणधर्मा के लिए रोकर तुम व्यर्थ ही अपना समय खराब कर रहे हो। अपनी आंखें गला रहे हो। मकान गिर गया और तुम रो रहे हो। यहां सब मकान गिर जाने हैं। यहां कोई मकान टिकनेवाला नहीं। यहां सब मकान खंड़हर हो जानेवाले हैं। तुम किन चीजों के लिए रो रहे हो! आंसू जैसी बहुमूल्य चीज कहा गंवा रहे हो! इनसे तो हीरे खरीदे जा सकते हैं, तुम कंकड़—पत्थरों में गिरा रहे हो।
अंगूर में थी मय यह पानी की चंद बूंदें
जिस दिन से खिंच गयीं हैं तलवार हो गयीं।
जिस दिन से तुम्हारे आंसू परमात्मा की तलाश में निकल पडेंगे, तुम्हारे भीतर तलवार पैदा हो जाएगी। तुम पर धार आएगी। तुम्हारे भीतर प्रतिभा का आविर्भाव होगा। दर्द को दबाओ मत। देखते हो, दवा शब्द बड़ा अच्छा है, उसका मतलब ही होता है—’दबाना’ दर्द को दबाओ मत, दवा की तलाश मत करो। दर्द को उभासे। दर्द को जगाओ। फिर इतनी जल्दी क्या है? जिस दिन पकेगा फल उसी दिन गिरेगा। इतना अधैर्य क्यों है?
तुझको पा लेने में यह बेताब कैफियत कहा,
जिंदगी वो है, जो तेरी जुस्तजू में कट जाए।
उसकी प्रार्थना में, उसकी तलाश में उसकी इंतजारी में, ‘जिंदगी वो है जो तेरी जुस्तजु में कट जाए’। पाने की इतनी जल्दी मत करो। पाना तो हो जाएगा। विरह का भी आनंद है। यह दर्द भी मीठा है। इस दर्द की मिठास अभी लो। एक दफा मिलन हो गया, फिर यह दर्द की मिठास दुबारा नहीं संभव होगी। इस दर्द की मिठास को भोग लो। यह दर्द तुम्हें मिटाएगा यह दर्द तुम्हें गलाएगा। यह दर्द तुम्हें समाप्त कर देगा। उसी समाप्ति में तो दवा है, उसी समाप्ति में तो मिलन है।
मगर एक ही बात खयाल रखो। मिटने में बुराई नहीं है। अगर विराट के लिए मिट रहे हो तो सौभाग्य है। क्षुद्र के लिए मत मिटना। कहे वाजिद पुकार ओशो

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