Monday, 29 June 2015

Osho rahimandhaga prem ka

सोमरस

जो श्रेष्‍ठतम हे, उसे वेदों ने सोमरस कहा है। सदिया हो गई, न मालूम कितने लोग सोमरस की तलाश में रहे है। वैज्ञानिक हिमालय की खाइयों में, पहाड़ियों में, सोमरस किस पौधे से पैदा होता था, उसकी अनथक अन्वेषण करते रहे है। अब तक कोई जान नहीं पाय कि सोमरस कैसे पैदा होता था? सोमरस क्‍या था?
वे जान भी नहीं पाएंगे। सोमरस स्‍थूल बात नहीं है। सोमरस तो ऋषियों के पास, उनकी सन्‍निधि में, उनके मौन में, उनके ध्‍यान में लय वद्ध हो जाने से मिलता था। वह किन्‍हीं पौधों से नहीं मिलता था। वह किन्‍हीं फलों से नहीं मिलता। वह किन्‍हीं फूलों से नहीं मिलता। वह तो जिनको चेतना का कमल खिला है, उनसे जो उठती है सुवास, उनसे जो गंध उठती है। उनसे जो आलोक बिखरता है, उससे मिलता है।
सोम चंद्रमा का नाम है। साधारणत: व्‍यक्‍ति सूर्य का अंश होता है। साधारणत: सभी सूर्यवंशी होते है। सिर्फ बुद्ध पुरूषों को छोड़ कर। सूर्यवंशी होने का अर्थ है कि तुम्‍हारे भीतर ऊर्जा उत्‍तप्‍त है। जैसे बुखार में हो; विक्षिप्‍त है। इस सूर्य की उत्‍तप्‍त ऊर्जा को जब कोई व्‍यक्‍ति अपने भीतर शांत कर लेता है। जब काम राम में रूपांतरित होता है। तब तुम चंद्र वंशी हो जाते हो। तब तुम सूर्य से हटते हो, चंद्रमा की तरफ तुम्‍हारी यात्रा शुरू होती है। और एक ऐसी पूर्ण घड़ी भी आती है जीवन में, अपूर्व घड़ी भी आती है—रहस्‍य की, अनुपम अनुभव की—जब तुम चंद्र हो जाते हो।
इसी बात को बुद्ध के जीवन में प्रतीक रूप से कहा गया है। गौतम बुद्ध का जन्‍म पूर्णिमा की रात को हुआ। उन्‍हें बुद्धत्‍व भी प्राप्‍त हुआ पूर्णिमा की रात्रि को। और उसी पूर्णिमा की रात्रि को बुद्ध की मृत्‍यु भी हुई। उनका देह त्‍याग भी उसी महा की पूर्णिमा, वहीं पूर्णिमा को। जैसे जन्‍म, जीवन और मृत्‍यु सब एक बिंदु पर आकर मिल गए। सब पूर्णिमा पर आकर मिल गए। जैसे चंद्रमा पुर्ण हुआ। बुद्ध के पास बैठ कर जिन्‍होंने पिया। उन्‍होंने ही जाना की सोमरस क्‍या है? बुद्ध के कमल से जो गंध उठी, उनके चंद्र से जो किरणें फैली, उसकी पीने की क्षमता जुटाने वालों को ही पता चलेगा। वहीं सोमरस ऋषियों के संग बैठ कर उन शिष्‍यों ने जाना। जो उनके इतने पास आते थे उनके लिए ही सूक्ष्‍म रसों की प्रक्रिया शुरू हो जाती थी। लेकिन सोमरस तभी पिलाया जा सकता है। जब किसी का पात्र तैयार हो। ये केवल शिष्‍य ही पी सकते है।
सोमरस से सुंदर और कोई नाम नहीं है। मैं यहां तुम्‍हें सोमरस पिला रहा हूं। पीओ जी भर कर कंजूसी मत करना जरा भी।

ओशो ,प्रवचन-7, रहिमन धागा प्रेम का.

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