जीवन भर कैसे रहे निरोगी
1-आहार- आहार ही मनुष्य व अन्य
प्राणीयो का पोषक माना जाता है यही उसे उर्जा प्रदान करता है । आहार के कुछ नियम है ।
1-उष्ण भोजन स्वादिष्ट
लगता है भोजन करने पर जठराग्नि मे अग्नि प्रजलित हो जाती है जिससे भोजन जल्द पचता है
दुषित वायु नही बनती है तो आहार गुणवान हो जाता है इन्द्रियों का पोषण बल की वृधि होती है ।
2-आहार हमेशा उचित
मात्रा मे करना चाहिये न कम हो न ज्यादा हो,उचित मात्रा मे आहार का
सेवन करने से वात कफ का संतुलन बना रहता है। आहार पचने के उपरान्त समय पर मल का
विसर्जन होता है वह भी बिना कषट के।
3-जब तक आहार पच नही
जाता दुसरा आहार नही करना चाहिए भोजन पचे बिना द्वारा भोजन करने से वात कफ पित मे
असंतुलन आ जाता है और कई रोग होने की सम्भावना रहती है । पहले आहार को पचने मे कम
से कम छः घंटे का समय लगता है दुसरा आहार हमे छः घंटे से पहले नही करना चाहिए ।
4-आहार के लिये निर्धारण
शुध्द स्थान होना चाहिए,कही भी भोजन करना स्वास्थ्य के लिये ठीक नही है । आहार का
सेवन हमेशा जमीन पर बैठ कर एक निश्चित स्थान पर करना चाहिए । इस नियम से स्थान की
अशुद्धिया दूर होती है। आहार के उपयोग के समय प्रयोग होने वाले बर्तनो का आहार के
गुणो पर विशेष प्रभाव पड़ता है अतः बर्तन शुध्द व स्वच्छ होने चाहिए । मिट्टी व कांच
के बर्तन सबसे शुध्द माने गये है अतः भोजन करते समय इनका प्रयोग करना चाहिए ।
5-भोजन हमेश आराम से
करना चाहिए । भोजन खुब चबा-चबा कर करना चाहिए तेजी से भोजन करने से कई बार भोजन अन्न
नली के स्थान पर श्वास नली मे प्रवेश कर जाता है। और पचने मे भी अत्यधिक समय लगता
है ।भोजन को इतना चबाना चाहिए उसका मुंह के अन्दर ही पेस्ट बन जाए । भोजन हमेशा
आराम से इत्मीनाम से करना चाहिए शीघ्रता से भोजन करने से कई रोगो का जन्म होता है
।
6-भोजन ज्यादा धीरे भी
नही करना चाहिए,भोजन करने से तर्प्ति भी न मिले आहार भी ठ्न्डा हो गया । इससे पाचन
क्रिया वीकृत हो जाती है ।
7-भोजन करते समय हँसना
नही चाहिए न ही बात करनी चाहिए,एसी अवस्था मे भोजन श्वास
नली मे प्रवेश कर सकता है भोजन हमेशा एकाग्र हो कर मन लगाकर स्वाद लेकर करना चाहिए
।
8-आहार हमेशा परमात्मा
का स्मरण लेकर करना चाहिए ।
विहार-शरिर को स्वस्थ रखने
के लिए प्रतिदिन की दिनचर्या मे आयुर्वेद के अनुसार नियमो का पालन करने वालो के
पास रोग नही फट्कता है ।
1-प्रातः उठ्ने के बाद
स्वयं एक क्षण विचार करना चाहिए कि मेरी शारीरिक स्थिति प्रतिदिन जैसी है या कुछ विचार करने योग्य है। यदि किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्या दिखाई देती है
उसका निदान करने का प्रयास करना चाहिए छोटी से छोटी समस्या
की उपेक्षा करना ही भविष्य मे महान कष्टकारी हो जाता है ।
2- प्रातः सोकर उठते
ही सर्वप्रथम हमे एक या दो गिलास पानी घुँट- घुँट पीना चाहिए । उठते ही कुल्ला नही
करना चाहिए क्योकि सारी रात की जो लार बनती है वह पेट मे जानी चाहिए । कुल्ला
करेंगे तो वह बाहर आ जायेगी,यह अपने आप मे जबर्द्स्त मेडिसिन
है जो हमारा डाइजेशन ही सही नही रखती वरन् कई बीमारियो से बचाती है ।
3-मल विसर्जन करने के
उपरान्त अपनी सुविधा के अनुसार दातोन या मंजन का प्रयोग करना चाहिए दाँतौन के लिए
नीम महुए बबूल आम अमरुद आदि की दातौन सर्वश्रेष्ठ है व जीवणू नाशक व शरीर रचना के पोषण करने वाली मानी गयी है । चुट्की भर हल्दी व सेन्दा नमक व सरसो का तेल की कुछ
बुंदे, इन सबको मिलाकर दाँतों को रगड़ने से पायरिया
आदि रोग नष्ट हो जाते है । यह प्रयोग भी प्रतिदिन कर सकते है ।
4-श्वास नली को साफ
करने के लिए प्राणायाम करना चाहिए, 10 मिनट गहरी श्वास ले व छोड़ने से श्वास नली की
सफाई हो जाती है ।
5-नेत्रो की सुरक्षा
एवं रोशनी को तेज रखने के लिये प्रातः मुँह मे पानी भरकर
तीस-चालिस बार आँखो पर पानी के छींटे देने चाहिए इससे आँखे तो साफ रहती है वरन्
आँखों की ज्योति भी बढ्ती है । व मुँह की लार सोकर उठ्ते ही आँखों मे काजल की तरह
से लगाने से आँखों की ज्योति तेज होती है । 6-तिल के तेल को मुख
मे भर कर कुछ समय तक रोक कर उसका कुल्ला करना चाहिए। स्व्र्र उत्तम होता है, आँखों
की रोशनी तेज होती है पाचन क्रिया सही रहती है । मुख की त्वचा कोमल व नींद अच्छी
आती है सारे दिन शरीर मे फुर्ती रहती है ।
7-प्रतिदिन स्नान से
पूर्व सम्पूर्ण शरीर की तिल के तेल या सरसो के तेल की मालिश करनी चाहिए । इससे शरीर
मुलायम हो जाता है त्वचा स्मबन्धी रोगो के होने की सम्भावना नही रहती,सारे
दिन ताजगी का अनुभव होता है थकान नही होती । सर्दी-गर्मी सहने की क्षमता बढ़ जाती
है ।
8-दोनो पैरो के तलवो
मे नित्य सरसो या तिल के तेल की मालिश करने से वायू का नाश होता है आँखों की रोशनी तेज़ होती है पैर फट्ते नही व स्थिर व बलवान बनते है ।
9-रात्रि मे
नियमानुसार हल्का भोजन करना चाहिए। भोजन के उपरान्त दस मिनट ब्रजासन मे बैठना
चाहिए । उसके बाद धर्मग्रन्थो को पढ़ना चाहिए या सत्संग भजन करके सोना चाहिए । नींद
और सपने अच्छे आते है ।
सद्व्रत मानसचर्या – मन को स्वस्थ व उर्जावान
बनाये रखने के लिये नियमो का पालन करना आवश्यक है मन स्वस्थ शरीर स्वस्थ । मन स्वस्थ नही तो तन भी स्वस्थ नही रह सकता,मन
स्वस्थ होता है सदाचार से,
1-प्रात सूर्योदय से
पूर्व उठ्ना चाहिए । स्वास्थय के लिए प्रातःकाल उठना सबसे पहला नियम है संसार मे
जितने भी महापुरुष हुए है वे सब प्रातःकाल उठते रहे है प्रक्रति के नियमानूसार
पशु-पक्षी आदि प्राणी प्रातः ही जागकर अम्रतबेला के वास्तविक आनन्द का अनुभव करते
है । सब प्राणीयो मे श्रेष्ठ मनुष्य आलस्यवश सोता रहे और प्रकर्ति के अनमोल उपहार
से वंचित रहे तो उसके लिए कितनी लज्जा की बात है । जो सुर्योदय तक
सोते रहते है उनकी बुद्धि और इन्द्रिया मन्द पड़ जाती है शरीर मे आलस्य भर जाता है
अत: प्रातः देर से उठनेवाला हमेशा दरिद्र व दुखी रहता है अत: सूर्योदय तक सोते
रहने का स्वभाव छोड़कर प्रात: जागरण का अभ्यास करना चाहिए ।
2-दिन का आरम्भ
नित्यकर्मो से निबटकर गीता रामायण आदि ग्रन्थो का स्वाध्याय से करना चाहिए व सारे
दिन उसके अनुसार ही कार्य करना चाहिए ।
3-हमे प्रतिदिन सूर्योपासना
करनी चाहिए । सूर्य से हमे प्रसन्ता सौन्दर्य और योवन आदि की प्राप्ति होति है ।
सूर्य स्नान करने से अनेक रोग व कीटाणु नष्ट हो जाते है ।
4- हमारे धर्मग्रन्थो मे
आन्तरिक शुद्धि की द्रष्टि से प्रति पन्द्रह दिनो मे उपवास का विधान किया गया है । उपवास
से केवल शरीर ही शुध्द नही होता मन भी शुध्द व निर्मल बनता है ।
5-हमेशा प्रसन्न रहने का
प्रयास करे सब से मधुर भाषा का प्रयोग करे । एसी भाषा का प्रयोग न करे जो कोइ आपसे
करे तो उसे आप भी पसन्द न करे । किसी को आपके व्यवहार
से दुख न पहुँचे,दुसरे का दुख जहां तक सम्भव हो दूर करने का प्रयास करे।
6-असत्य न बोले,परधन,पराई स्त्री की कामना न करे ।
7-भोजन कैसा भी हो उसे
प्रसन्ता से ग्रहण करे,उसमे कमी न निकाले। भोजन जीवन निर्वाह
के लिए लेते है अत: भोजन एकाग्रचित्त होकर परमात्मा का प्रसाद समझकर ग्रहण करना
चाहिए ।
8-अपने धर्म का चिन्तन
करे । परमात्मा का ध्यान करते हुए यह निश्चय करे हमारे हाथो जितने भी कार्य हो वह
सब कुछ धर्म पुर्वक हो हम इमानदारी से कार्य करे जिससे हम भी प्रसन्न रहे और दुसरो
को भी प्रसन्न्ता हो ।
9-जैस मन मे विचार उत्पन्न होता है वैसा वाणी
से बोला जाता है और वैसा काम भी होता है हमारे मन पर सब कुछ निर्भर है यह मन आहार शुद्धि पर टिका
हुआ है । आहार सात्विक होना चाहिए,जब उसको बनाया जाय तो
परमात्मा का स्मरण करते हुए बनाया जाये ।
10-रोग रहित शरीर धर्म
का आधार है कमजोर स्वास्थ्य वालो की इन्द्रिया अपेक्षाकृत चंचल होती है हमे विशेष
रुप से शरीर शुद्धि का ध्यान देने की आवश्यकता है।