Sunday, 21 December 2014

how to live long & healty life (in hindi)

                                       जीवन भर कैसे रहे निरोगी 
                                                                                 वेदो मे मनुष्य के लिये दीर्घायु की कामना की गयी है जो शरीर निरोगी होने से सम्भव है । शरीर को  स्वस्थ व निरोगी रखने के लिये शुद्ध पुष्टिदायक रोगनाशक अन्न तथा जल का सेवन आवश्यक है क्योकि स्वास्थ्य को ऊर्जावान करके दिर्घ जीवन मिलता है। और रोगी के रोग का शमन करके प्रकर्ति स्थापन द्वारा आयु मे वृधि होती है । विकारो का नाश करने के लिये तीन सुत्र  है ।--आहार विहार सद्व्रत मानसचर्या
          1-आहार- आहार ही मनुष्य व अन्य प्राणीयो का पोषक माना जाता है यही उसे उर्जा प्रदान करता है ।  आहार के कुछ नियम है ।
     1-उष्ण भोजन स्वादिष्ट लगता है भोजन करने पर जठराग्नि मे अग्नि प्रजलित हो जाती है जिससे  भोजन जल्द पचता है दुषित वायु नही बनती है तो आहार गुणवान हो जाता है इन्द्रियों का पोषण बल की वृधि होती है ।
      2-आहार हमेशा उचित मात्रा मे करना चाहिये न कम हो न ज्यादा हो,उचित मात्रा मे आहार का सेवन करने से वात कफ का संतुलन बना रहता है। आहार पचने के उपरान्त समय पर मल का विसर्जन होता है वह भी बिना कषट के।
     3-जब तक आहार पच नही जाता दुसरा आहार नही करना चाहिए भोजन पचे बिना द्वारा भोजन करने से वात कफ पित मे असंतुलन आ जाता है और कई रोग होने की सम्भावना रहती है । पहले आहार को पचने मे कम से कम छः घंटे का समय लगता है दुसरा आहार हमे छः घंटे से पहले नही करना चाहिए ।
    4-आहार के लिये निर्धारण शुध्द स्थान होना चाहिए,कही भी भोजन करना स्वास्थ्य के लिये ठीक नही है । आहार का सेवन हमेशा जमीन पर बैठ कर एक निश्चित स्थान पर करना चाहिए । इस नियम से स्थान की अशुद्धिया दूर होती है। आहार के उपयोग के समय प्रयोग होने वाले बर्तनो का आहार के गुणो पर विशेष प्रभाव पड़ता है अतः बर्तन शुध्द व स्वच्छ होने चाहिए । मिट्टी व कांच के बर्तन सबसे शुध्द माने गये है अतः भोजन करते समय इनका प्रयोग करना चाहिए ।
      5-भोजन हमेश आराम से करना चाहिए । भोजन खुब चबा-चबा कर करना चाहिए तेजी से भोजन करने से कई बार भोजन अन्न नली के स्थान पर श्वास नली मे प्रवेश कर जाता है। और पचने मे भी अत्यधिक समय लगता है ।भोजन को इतना चबाना चाहिए उसका मुंह के अन्दर ही पेस्ट बन जाए । भोजन हमेशा आराम से इत्मीनाम से करना चाहिए शीघ्रता से भोजन करने से कई रोगो का जन्म होता है ।
     6-भोजन ज्यादा धीरे भी नही करना चाहिए,भोजन करने से तर्प्ति भी न मिले आहार भी ठ्न्डा हो गया । इससे पाचन क्रिया वीकृत  हो जाती है ।
    7-भोजन करते समय हँसना नही चाहिए न ही बात करनी चाहिए,एसी अवस्था मे भोजन श्वास नली मे प्रवेश कर सकता है भोजन हमेशा एकाग्र हो कर मन लगाकर स्वाद लेकर करना चाहिए ।
   8-आहार हमेशा परमात्मा का स्मरण लेकर करना चाहिए ।
      विहार-शरिर को स्वस्थ रखने के लिए प्रतिदिन की दिनचर्या मे आयुर्वेद के अनुसार नियमो का पालन करने वालो के पास रोग नही फट्कता है ।
            1-प्रातः उठ्ने के बाद स्वयं एक क्षण विचार करना चाहिए कि मेरी शारीरिक स्थिति प्रतिदिन जैसी है या कुछ विचार करने योग्य है।  यदि किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्या दिखाई देती है उसका  निदान करने का प्रयास करना चाहिए छोटी से छोटी समस्या की उपेक्षा करना ही भविष्य मे महान कष्टकारी हो जाता है ।
        2- प्रातः सोकर उठते ही सर्वप्रथम हमे एक या दो गिलास पानी घुँट- घुँट पीना चाहिए । उठते ही कुल्ला नही करना चाहिए क्योकि सारी रात की जो लार बनती है वह पेट मे जानी चाहिए । कुल्ला करेंगे तो वह बाहर आ जायेगी,यह अपने आप मे जबर्द्स्त मेडिसिन है जो हमारा डाइजेशन ही सही नही रखती वरन् कई बीमारियो से बचाती है ।
3-मल विसर्जन करने के उपरान्त अपनी सुविधा के अनुसार दातोन या मंजन का  प्रयोग करना चाहिए दाँतौन के लिए नीम महुए बबूल आम अमरुद आदि की दातौन सर्वश्रेष्ठ है व जीवणू नाशक व शरीर रचना के  पोषण करने वाली मानी गयी है । चुट्की भर हल्दी व सेन्दा नमक व सरसो का तेल की कुछ बुंदे, इन सबको मिलाकर दाँतों  को रगड़ने से पायरिया आदि रोग नष्ट हो जाते है । यह प्रयोग भी प्रतिदिन कर सकते है ।
4-श्वास नली को साफ करने के लिए प्राणायाम करना चाहिए, 10 मिनट गहरी श्वास ले व छोड़ने से श्वास नली की सफाई हो जाती है ।
5-नेत्रो की सुरक्षा एवं रोशनी को तेज रखने के लिये प्रातः मुँह  मे पानी भरकर तीस-चालिस बार आँखो पर पानी के छींटे देने चाहिए इससे आँखे तो साफ रहती है वरन् आँखों की ज्योति भी बढ्ती है । व मुँह की लार सोकर उठ्ते ही आँखों मे काजल की तरह से लगाने से आँखों  की ज्योति तेज होती है ।                                   6-तिल के तेल को मुख मे भर कर कुछ समय तक रोक कर उसका कुल्ला करना चाहिए। स्व्र्र उत्तम होता है, आँखों की रोशनी तेज होती है पाचन क्रिया सही रहती है । मुख की त्वचा कोमल व नींद अच्छी आती है सारे दिन शरीर मे फुर्ती रहती है ।
7-प्रतिदिन स्नान से पूर्व सम्पूर्ण शरीर की तिल के तेल या सरसो के तेल की मालिश करनी चाहिए । इससे शरीर मुलायम हो जाता है त्वचा स्मबन्धी रोगो के होने की सम्भावना नही रहती,सारे दिन ताजगी का अनुभव होता है थकान नही होती । सर्दी-गर्मी सहने की क्षमता बढ़ जाती है ।
8-दोनो पैरो के तलवो मे नित्य सरसो या तिल के तेल की मालिश करने से वायू का नाश होता है आँखों की रोशनी तेज़ होती है पैर फट्ते नही व स्थिर व बलवान बनते है ।
9-रात्रि मे नियमानुसार हल्का भोजन करना चाहिए। भोजन के उपरान्त दस मिनट ब्रजासन मे बैठना चाहिए । उसके बाद धर्मग्रन्थो को पढ़ना चाहिए या सत्संग भजन करके सोना चाहिए । नींद और सपने अच्छे आते है ।
सद्व्रत मानसचर्या  मन को स्वस्थ व उर्जावान बनाये रखने के लिये नियमो का पालन करना आवश्यक है मन स्वस्थ शरीर स्वस्थ । मन स्वस्थ नही तो तन भी स्वस्थ नही रह सकता,मन स्वस्थ होता है सदाचार से,
 1-प्रात सूर्योदय से पूर्व उठ्ना चाहिए । स्वास्थय के लिए प्रातःकाल उठना सबसे पहला नियम है संसार मे जितने भी महापुरुष हुए है वे सब प्रातःकाल उठते रहे है प्रक्रति के नियमानूसार पशु-पक्षी आदि प्राणी प्रातः ही जागकर अम्रतबेला के वास्तविक आनन्द का अनुभव करते है । सब प्राणीयो मे श्रेष्ठ मनुष्य आलस्यवश सोता रहे और प्रकर्ति के अनमोल उपहार से वंचित रहे  तो उसके लिए कितनी लज्जा की बात है । जो सुर्योदय तक सोते रहते है उनकी बुद्धि और इन्द्रिया मन्द पड़ जाती है शरीर मे आलस्य भर जाता है अत: प्रातः देर से उठनेवाला हमेशा दरिद्र व दुखी रहता है अत: सूर्योदय तक सोते रहने का स्वभाव छोड़कर प्रात: जागरण का अभ्यास करना चाहिए ।
2-दिन का आरम्भ नित्यकर्मो से निबटकर गीता रामायण आदि ग्रन्थो का स्वाध्याय से करना चाहिए व सारे दिन उसके अनुसार ही कार्य करना चाहिए ।
3-हमे  प्रतिदिन सूर्योपासना करनी चाहिए । सूर्य से हमे प्रसन्ता सौन्दर्य और योवन आदि की प्राप्ति होति है । सूर्य स्नान करने से अनेक रोग व कीटाणु नष्ट हो जाते है ।
4- हमारे धर्मग्रन्थो मे आन्तरिक शुद्धि की द्रष्टि से प्रति पन्द्रह दिनो मे उपवास का विधान किया गया है । उपवास से केवल शरीर ही शुध्द नही होता मन भी शुध्द व निर्मल बनता  है ।
5-हमेशा प्रसन्न रहने का प्रयास करे सब से मधुर भाषा का प्रयोग करे । एसी भाषा का प्रयोग न करे जो कोइ आपसे करे तो उसे आप भी पसन्द न करे ।  किसी को आपके व्यवहार से दुख न पहुँचे,दुसरे का दुख जहां तक सम्भव हो दूर करने का प्रयास करे।
6-असत्य न बोले,परधन,पराई स्त्री की कामना न करे ।
7-भोजन कैसा भी हो उसे प्रसन्ता से ग्रहण करे,उसमे कमी न निकाले। भोजन जीवन निर्वाह के लिए लेते है अत: भोजन एकाग्रचित्त होकर परमात्मा का प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए ।
8-अपने धर्म का चिन्तन करे । परमात्मा का ध्यान करते हुए यह निश्चय करे हमारे हाथो जितने भी कार्य हो वह सब कुछ धर्म पुर्वक हो हम इमानदारी से कार्य करे जिससे हम भी प्रसन्न रहे और दुसरो को भी प्रसन्न्ता हो ।
9-जैस मन मे विचार उत्पन्न होता है वैसा वाणी से बोला जाता है और वैसा काम भी होता है हमारे मन पर सब कुछ निर्भर है यह मन आहार शुद्धि पर टिका हुआ है । आहार सात्विक होना चाहिए,जब उसको बनाया जाय तो परमात्मा का स्मरण करते हुए बनाया जाये ।
10-रोग रहित शरीर धर्म का आधार है कमजोर स्वास्थ्य वालो की इन्द्रिया अपेक्षाकृत चंचल होती है हमे विशेष रुप से शरीर शुद्धि का ध्यान देने की आवश्यकता है।



Thursday, 11 December 2014

sciatica ayurvedic treatment (in hindi)

गृधसी (sciatica)का आयुर्वेदिक उपचार
सुरजान शीरी 30 ग्राम 
नागोरी असगंध  30 ग्राम 
सोंफ             30 ग्राम 
सोंठ  10 ग्राम 
जीरा  10 ग्राम 
सनाय  10 ग्राम 
सुखा  पोदीना  10 ग्राम 
काली मिर्च  5 ग्राम 
इन  सब को पीसकर छानकर आधी चम्मच सुबह शाम ले ,
गृधसी  ही नहीं ठण्ड  होने वाले दर्द भी शीघ्र सही हो जाते है 
आयुर्वेद अपनाए सुखी व स्वस्थ जीवन जिये 
          जय श्री कृष्णा 

Friday, 5 December 2014

high blood pressure aurvedic treatment

                                                                                                                                                                     हाई ब्लडप्रेशर :-
अश्वगंधा चूर्ण 3 ग्राम,
सूरजमुखी बीज का चूर्ण 2 ग्राम, मिश्री 5 ग्राम
और गिलोय
का बारीक चूर्ण (सत्व) 1 ग्राम की मात्रा में लेकर
पानी के
साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप (हाई
ब्लड प्रेशर) में लाभ होता है।
High bladapreshar:-3 grams powder, sunflower seed meal ashvagandha 2 grams, mishri 5 grams and 1 gram of finely giloy powders (satva) in the amount of water consumed 2-3 times a day with the hypertension (high blood pressure) is profit. (Translated by Bing)

Thursday, 4 December 2014

Difference between indian and western culture

                भारतीय संस्कृति व यूरोपियन संस्कृति  में अंतर                                                                                                         हमे गर्व है हमारा जन्म भारत देश मे हुआ है जहा राम कृष्ण  महावीर बुद्ध गुरु नानक विवेकानन्द आदि महापुरुषो ने जन्म लिया है,जो आनन्दित जीवन जीने का रास्ता बताते है । मनुष्य जीवन मे दुख है ही नही,सिर्फ आनन्द ही आनन्द है,गीता रामायण वेद जैसे ग्रन्थ इस देश मे है जो हमे कठिन परिस्थितियो से आनन्द्पुर्वक निकलना सिखाते है प्रत्येक परिस्थ्ति अनुकूल हो या प्रतिकूल सब मे सम रहना सिखाते है,फिर इस देश मे एसा क्या हो गया सब और अराजकता भ्रष्टाचार चोरी ड्केती बीमारिया दिखाई पड रही है । आयुर्वेद की भाषा मे पुर्ण स्वस्थ परिवार तो क्या पुर्ण स्वस्थ व्यक्ति भी मिलना मुश्किल है उच्चरक्तचाप शुगर मोटपा माइग्रेन आदि आम बात हो गयी है। अधिकान्शत परिवारो मे एक या एक से अधिक इनके रोगी मिलना आम बात है।
     स्वस्थ परिवार स्वस्थ समाज से ही मजबूत देश बनता है ।
1881 मे ब्रिर्टिश सरकार ने भारत मे एक सर्वे कराया था । जिसमे 100 मे से 80 पूर्ण स्वस्थ थे। आयुर्वेद् की भाषा मे जो तन से मन से भी स्वस्थ, प्ररत्येक परिस्थिति मे सम रहते है । 10%को साल मे कोइ हल्की फुल्की बीमारिया हो जाती थी । 10% को ही बीमार माना गया । उससे पहले की अगर बात करे 300 -400 साल पहले तो लोग जानते ही नही थे बीमारिया होती क्या है ? केवल प्राकृतिक आपदा वाली बीमारिया होती थी । जैसे अत्यधिक वर्षा हो गयी या सुखा पड़ गया । उनसे होने वाली बीमारिया ज्यादा दिन नही रहती थी । ये केवल 20-30 दिन ही रहती थी ।
 15वी शताब्दी मे फ़्रान्स से  एक लेखक भारत आया था जब वह यहा से गया तो उसने आपनी डायरी मे लिखा – भारत के लोग बडे अनोखे है । वहा कोइ भिखारी नही है । सभी सम्पन्न है वहा किसी को बीमार भी नही देखा,सबसे विचित्र बात, कोइ भी कही जाता है अपने घर को खुला छोड़ जाता है ताला लगा कर नही जाते,वे जानते ही नही ताला कहते किसको है । जबकि यूरोप के देशो मे भिखारी और चोरो की भरमार है ।
100-150  सालो मे भारत मे एसा क्या हो गया चोरी भ्रष्टाचार अनेक गम्भीर बीमारियाँ भिखारी अविश्वास आदि सब बहुतायात मे आ गये । इसका क्या कारण है ?
हमने भारत की सभ्यता को छोड़ यूरोप की सभ्य्ता को अपनाया ।
भारत की सभ्यता मे और यूरोप की सभ्यता मे एक बहुत  बडा अन्तर है ।
उनकी संस्कृति भोग पर आधारित है
हमरी त्याग पर आधारित है
भोग की संस्कृति मे सिर्फ अपने स्वार्थ की महत्ता है हम सिर्फ अपने हित के बारे मे सोचते है चाहे दूसरे का कितना भी अहित हो जाये।
त्याग की संस्कृति मे हम सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान देते है । वह भी सिर्फ दूसरो के लिये करते है । किसी को कोई दुःख न पहुँचे सिर्फ सेवा का भाव होता है। दूसरो को सुख पहुँचा कर हमे असीम आनन्द की अनुभूति होती है । हम जो भी कर्म करते है परिवार व समाज या परमत्मा के लिये करते है जब अपने लिये कुछ करना ही नही तो गलत कार्य हमसे हो ही नही सकते, हमेशा दूसरो के बारे मे सोचते है। राम जब बनवास  गये महल छोड़ दिया महावीर बुद्ध ने अपना राजपाट छोड़,जंगल का कांटों भरा रास्ता चुना,तब उनको भगवान माना गया । भगत सिंह चन्द्रशेखर आजाद सुभाष चन्द्र बोस ये सब बड़े बाप के बेटे थे,चाहते तो जिन्द्गी भर एश का  जीवन जी सकते थे मगर इन्होने इनका त्याग कर दिया।
 भोग की संस्कृति मे सिर्फ़ तनाव मिलता है तनाव से बीमारियाँ आती है । अपने सुख के लिये धन के संग्रह मे लगे रहते है । लोभ के कारण गलत रास्ते अपनाते है । भोग की संस्कृति का ही परिणाम है आज बलत्कार भ्रष्टाचार बेइमानी आदि बड़ी तेजी से बढ़ रही है । परिवारो मे भी आपस मे प्रेम नही रहा,स्वार्थ के कारण पति-पत्नि, भाई-बहन, माँ –बाप तक की हत्या की खबरे मिलना आम बात है । इस भोग की संस्कृति के कारण हमारी मानसिकता विक्रत हो गयी है ।
 हमने बीना सोचे समझे युरोप की संस्कृति को अपना लिया । इसका एक कारण और है कुछ भूले हमारे पुर्वजो से हो गयी जिसका हमे भयंकर परिणाम भुगतना पड़ रहा है । 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था तब 127 विदेशी कम्पनियां हमारे देश मे थी । आजदी के बाद सभी को देश से जाना चाहिए था मगर सिर्फ़ ईस्ट इन्डिया कम्पनी को ही वापस भेजा गया क्योकि उसका पूरे देश मे विरोध था । 126 विदेशी कम्पनियों को यही रहने दिया गया और जितने भी ब्रिटिश सरकार ने भारतीयो पर शासन करने के लिये कानून बनाये थे। देश आजाद होने के बाद भी सारे कानून ज्यो के त्यो रहे । केवल सरकार का मुखोटा बदल गया । हमे एहसास दिलाया गया हम आजाद हो गये । यह मानना हमारी सबसे बड़ी भूल थी हम मानसिक रुप से भी गुलाम हो गये। विदेशी हमे पहले भी लूट रहे थे आज भी लूट रहे है 15 अगस्त 1947 से पहले सिर्फ़ 127 कम्पनिया थी आज 4000 से भी ज्यादा है । जो हमे कोल्ड ड्रिंक बर्गर चिप्स कुरकुरे आदि ख़िलाकर छोटेपन से ही हमारी आँतो का सत्यानास कर रही है । छोटी उम्र से ही बीमारियाँ शुरु हो जाती है । दो साल का बच्चा  चिप्स कुरकुरे कोल्ड ड्रिंक आदि ख़ाने –पीने लगता है । 15-20 साल का होते-होते उसको अनेक बीमारियाँ लग जाती है ।  जो उम्र कुछ कर दिख़ाने की होती है । वह तनाव व बीमारियों  के जाल मे फंस कर रह जाता है ।
 पूरे देश मे चाय का जहर फैल चुका है । चाय हमारे देश का पेय नही है । इसमे थीन टेनीन कैफ़िन नामक जहर होता है जो पेट मे कब्ज पैदा करता है ब्लड प्रेशर की सबसे ज्यादा समस्या का कारण चाय है। दिन की शुरुआत ही चाय से करते है । गाँव हो कस्बा हो या महानगर, लगता है चाय के बीना जिन्द्गी अधूरी है । जो बीमारियाँ सिर्फ़ शहरो मे सुनने मे आती थी अब गाँव मे भी कोई परिवार एसा मिलना मुश्किल है जिसे कोई गम्भीर बीमारी न हो,जहॉ दुध मटठा पिया जाता था मेहमनो को भी पिलाया जाता था आज उसका स्थान चाय ने ले लिया हम तो जहर पीएँगे तुम्हे भी पिलायेंगे ।
 सब जानते है सुबह उठ्ते ही पानी पीना फायेदेबन्द होता है । सारी रात की बनी हुयी लार हमारे पेट मे जाती है जो हमारे digestion को सही रखती है । शरीर के अन्दर बनने वाले विषैले पदार्थ मूत्र मार्ग से बाहर निकलते है ।
 हमारा रहन-सहन खान-पान शिक्षा सब यूरोपियन संस्कृति पर आधारित है तो हम अपने आप को आजाद कैसे कह सकते है पहले हम सिर्फ गुलाम थे जिसका हमे एहसास था हम गुलाम है हमे आजादी लेनी है । मगर     आज हम मानसिक रुप से गुलाम है और इसका हमे आभास भी नही है । यह गुलामी उस गुलामी से ज्यादा भंयकर  है । एक बार फिर इनके खिलाफ हमने आन्दोलन शुरु करना है । एक बार फिर वन्देमतरम की आवश्यकता है । भगत सिंह चन्द्रशेखर आजाद सुभाष चन्द्र बोष जैसे क्रांतिकारियों  की आवश्यकता है जो एक बार फिर आजादी का बिगुल फूंक सके । इस युरोपियन संस्कृति को भारत से भगाना है और भारतिय संस्कृति को अपनाकर भारत को फिर से निरोगी मजबूत राष्ट्र बनाना है ।             
                          जय हिन्द 

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     ·    ·  ....... प्रेम आत्मा का भोजन है। प्रेम आत्मा में छिपी परमात्मा की ऊर्जा है। प्रेम आत्मा में निहित परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग ...