आजादी के 58 सालो में जिस तेजी से परिवर्तन आया है. बल्कि कहना होगा 1947 में भारत आजाद नहीं हुआ बल्कि भयंकर गुलाम बना। 1947 के बाद हम मानसिक रूप से गुलाम बने. 1947 से पहले हम मानसिक रूप से शुद्ध भारतीय थे। जो काम अंग्रेजो ने यहाँ रहते हुए नहीं किया वह उन्होंने यहाँ से जाने के बाद कर दिया।
हमने बीना सोचे समझे अंग्रेजो की जीवन शैली अपनाई या कहना चाहिए हमारे ऊपर थोपी गयी।
सबसे पहले चाय के बारे में बात करते है.
चाय हमारे देश में महानगर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रो तक जीवन का आवश्यक अंग बन गयी है.दिन की शुरुआत हो,मेहमान आ जाये या कोई भी समारोह हो. चाय के बीना अधूरा लगता है अंग्रेजो ने भारत छोड़ने से पहले चाय का इतना प्रचार किया। ग्रामीण क्षेत्रो तक में फ्री में स्टाल लगवाए।गली -गली मोहल्ले- मोहल्ले में चाय फ्री में पिलवाई गई.सबको अच्छी लगी इसको पीने के बाद स्फूर्ति व् ताज़गी का अनुभव होता है. मगर यह लाभप्रद न होकर अनेक दुर्गुणों से युक्त है अंग्रेजो के लिए यह एक medicine हो सकती है.जिस स्थान पर बहुत ज्यादा ठण्ड पड़ती है.जिनका ब्लडप्रेशर लो रहता है उनके लिय यह एक medicine का काम करती है.यूरोप में आठ -आठ महीने सूर्य नहीं निकलता भयंकर ठण्ड पड़ती है. -30 डिग्री तक टेम्प्रेचर चला जाता है वहा चाय लाभदायक साबित हो सकती है मगर हमारे देश में कुछ जगहों को छोड़ दे तो टेम्प्रेचर सामान्य रहता है.जिन लोगो का ब्लडप्रेशर हाई है या सामान्य है उन लोगो लिए चाय slow poison है।
चाय में तीन प्रकार के विष पाये जाते है.
1 -थीन 2 -टेनिन 3 -कैफीन - थीन -चाय पीने के बाद जो आनन्द महसूस होता है वह इसी थीन नामक विष के प्रभाव के कारण है.
टेनिन - इस विष के द्वारा ही कब्ज होता है यह पाचन शक्ति को नष्ट कर देता है। नींद को भी नष्ट करने की शक्ति इसमें ही होती है। इस विष के कारण ही चाय पीने के बाद ताजगी का अनुभव होता है मगर कुछ समय बाद खुश्की व थकान का अनुभव होता है। जिसके कारण और चाय पीने का मन करता है।
कैफीन-इसका प्रभाव शराब तम्बाकू में पाये जाने वाले विष निकोटीन के समान होता है यह दिल की धड़कनो को बढ़ाता है यह शरीर को निर्बल बनाता है इसी विष के नशे से वशीभूत होकर व्यक्ति चाय का आदि बनता है।
उपयुक्त विषो के होने के कारण ही चाय का प्रभाव अत्यधिक उत्तेजना देने वाला है आज जो ब्लडप्रेशर की भयंकर समस्या है इसका सबसे बड़ा कारण चाय के प्रचार की अधिकता है। चाय का नशा अंदर ही अपना कार्य करता है। और कुछ ही दिनों में शरीर को दीमक की तरह खोखला बना देता है.
चाय पीने से मूत्र की मात्रा में तीन गुना वृद्धि हो जाती है। शरीर की शुद्धि के लिए मूत्र का निकलना आवश्यक है मगर वह शरीर में बना रहता है जिसके कारण गठिया का दर्द ,गुर्दे मे पथरी,ब्लडप्रेशर आदि रोगो का शिकार बनना पड़ता है।
चाय के अत्यधिक सेवन के कारण टेनिन एसिड के नशीले प्रभाव से पेट में बादी, गैस ,कब्ज,बदहजमी,नींद का न आना आदि रोग होते है।
चाय पीने से दाँत पीले हो जाते है।
नेत्रो के भी कई रोग पैदा हो जाते है।
गरीब से अमीर तक चाय जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। भोजन मिले या न मिले मगर चाय अवश्य मिलनी चाहिए। चाय के अवगुणो को देखते हुए इस विनाशकारी चाय का तुरंत त्याग कर देना चाहिए। चाय छोड़ते ही कई बीमारिया स्वतः ही समाप्त हो जाएगी।
related post