हमारी life होली के रंगों की तरह colourfull है मगर उसको हम black & white बना देते है! colourfull reprasant करता है आनंदित जीवन का,black & white reprasant करता है सुख और दुःख का
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हमारी life है तो colourfull मगर उसको बना देते है black & white,हमेशा उन चीजों में सुख ढूढ़ने का प्रयास करते है जिसमे सुख है नही,यह मानव शरीर परमत्मा की कृपा से मिलता है तो आनन्द भी उसमेँ से हीं मिलेगा मगर हम आनन्द खोजने का प्रयास करते है सांसारिक वस्तुओ मे जिनमे आनन्द नहीं,है। कुछ क्षणो का सुख तो मिलता है मगर वह भी बाद मे दुख का कारण बनता है जबकि सब जानते है जो चीज जहाँ से आती है उसको वही जाना पड़ता है आनन्द भी उसको वही से प्राप्त होता है जितना हम इस संसार के पीछे भागते है हम परमत्मा से दुर होते चले जाते है! actual मे हमसे एक गलती होतीं है !
मै सदा जीता रहूँ कभी मरुँ नहीं,मुझसे समझदार कोइ नही,मै ज्ञानी हुँ मै सदा सूखी रहूँ !
हम हमेशा अपने बारे मे गलत सोचते है ओर life को colourfull के स्थान पर black & white बना देते है इस संसार में कोइ ऐसा नहीं जिसे मरना न हो, जो सुख चाहता है उसे दुख न मिले, दुख का बड़ा कारण भी यही है सुख की कामना करना,कोइ भी कामना करना दुख का कारण है, कामना भी दो प्रकार की होती है !
सांसारिक भोग और संग्रह की कामना ,दूसरी होती है पारमार्थिक यानी अपने कल्याण की कामना,
सांसारिक भोग और संग्रह क़ी कामना परधर्म है,यह जो नष्ट होने वाला है, शरीर मन बुद्धि आदि इसको संतुष्ट करने के लिये जो कामना करते है वह परधर्म है क्योकि कितनी भी धन सम्पत्ति ऐशो-आराम की वस्तुए हमारे पास इकट्ठी हो जाय, हमारा लोभ कभी कम नही होता निरन्तर बढ़ता चला जाता है हमे कभी संतुष्टि नहीं मिलती, कभी नुकसान हो जाएं तो दुख होता है!
एक सन्त अपने शिष्य के घर गए वहा देखा सब उदास थे उनका शिष्य किसी काम से घर से बहार गया उनसे रहा नही गया उन्होने शिष्य की पत्नि से पुछा -क्या बात सब परेशान है !
पत्नि ने जवाब दिया -इन्हे व्यापार में घाटा हो गया इसलीये थोड़े परेशान है
संत ने पूछा -क्या ज्यादा घाटा हो गया
पत्नि ने उत्तर दिया -नुकसान भी नहीं हुआ और हो भी गया
मै कुछ समझा नहीं '-
गुरूजी बात दरअसल यह है इन्हे एक जगह से दस लाख का नफा होना था मगर वहा से इन्हे पांच लाख का ही हुआ,यह पांच लाख का नुकसान मान रहे है. इसलिए दुखी है
जितना हम संसार से अपना सम्बन्ध जोड़ेगे, धन सम्पत्ति को अपना मानेगे उतना ही सुख और दुख के भंवर मे फंसे रहेंगे उसे कितनी भी धन -संपत्ति मिल जाय कभी संतुष्ट नहीं होता ,उसका लोभ बढ़ता ही चला जाता है हमे लगता है जितना हमारे पास धन -समपत्ति ज्यादा होगा उतने हम सुखी होंगे यह हमारा अज्ञान औऱ दुर्भाग्य है जैसे कोई शराबी नशे मे बेहोश होकर गँदी नाली मे पड़ा है और कुत्ते उसके ऊपर मूत्र त्याग करके जा रहे रहे है,फिर भी वह अपने को सुखी मानता है। सांसारिक धन सम्पत्ति से अपने को सुखी मानने वाले मनुष्य का सुख समुद्र से उठने वाली लहरो के समान है। यह केवल उसका अज्ञान है। वे विनाशकारी एवं पतन की ओर ले जाने वाले क्षणिक सुख को ही असली सुख मान लेते है जबकि सांसारिक वस्तुओं,धन -संपत्ति आदि मे सुख है ही नहीं,क्योकि इस सँसार मे जो भी वस्तुए है सब एक न दिन नष्ट होने वाली है उसका नाश निश्चित है। यहा तक की यह हमारा शरीर भी एक न एक दिन नष्ट होना है जिसे हम अपना मानते है। जितना भी हम सांसारिक वस्तुओ की कामना करेँगे उतना लोभ भी बढ़ता चला जाता है हमे कभी संतुष्टि नही मिल पाती,कामनाए कभी किसी की पूरी नही हुयी,कामनाए उस अग्नि के समान है जितना घी डालोगे उतना ही भड़केगी,हमारे दुःखो का मुल काऱण हीं हमारी असीमित कामनाये है जब तक हृदय मे इक्छाये है आनन्द की अनुभूति नहीं हो सकती। कामनाये ही हमें उच्च विचारो से गर्त मे ले जाती है जिसके विचार अच्छे नही वह कभी आनन्द को महसूस नहीं कर सकते, जिसके विचार उच्च है वह कभी दुखी नहीं रह सकता,उसके ह्रदय मे कामना तो होती है मगर वह सांसारिक भोग और संग्रह की नहीं होती,परमात्मा से मिलन की होती है परम आनंद की होती है एक बार आनंद की अनुभूति हो जाय फिर इतना ज्ञान हो जाता है कि सांसारिक कामनाओ में सुख है ही नही,
प्रत्येक मनुष्य में two sources होती है good sources and bed sources,सांसारिक भोग पदार्थ व संग्रह की कामना ही सम्पूर्ण पापो का कारण है उस कामना के बढ़ जाने से ही हमारे अंदर bed sources बढ़ते चले जाते है। जैसे धन की कामना अधिक बढ़ने से झूठ कपट,छल, बेईमानी आदि बढ़ जाते है वह यह सोचता रहता है अधिक से अधिक धन कैसे मिले-उसका लोभ बढ़ता ही चला जाता है। फिर वह अनुचित तरीके से धन अर्जित करने की कामना करता है। इससे उसका लोभ ओर बढ़ जाता है,वह धन के लिए अपने सगे- सम्बंधिओ,दोस्तों को भी धोखा दे देता है यहा तक की वह हत्या करने में भी नहीं हिचकिचाता। इस प्रकार उसमे क्रूरता बढ़ती चली जाती है। उसमे लोभ के साथ-साथ अभिमान भी आ जाता है कि हमने अपने प्रयास से,बुद्धिमानी से,होशियारी से ,चालाकी से इतना धन -संपत्ति मान -सम्मान प्राप्त किया है। इतना और प्राप्त कर लेंगे। जैसे -जैसे लोभ बढ़ता चला जाता है उसकी कामनाये भी बढ़ती चली जाती है। उसका चिंतन भी बढ़ता चला जाता है-वह खाते -पीते,भोजन करते हुए,पूजा -पाठ.भजन -जप करते हुए भी धन कैसे बढ़े चिंतन करता है इतनी संपत्ति और हो जाय इतना धन और बढ़ जाये तो अच्छा रहेगा।मेरा और मेरे बच्चो का भविष्य सुखी हो जायेगा।
जब अपने और अपने परिवार बारे सोचता है तब वह सांसारिक वस्तुओ की कामना करने लगता है अमुक चीजे हमारे पास हो तो हम सुख से रहेंगे एक के बाद एक वह वस्तुओ का संग्रह करता चला जाता है ऐसी कामना करते -करते वह कब बूढ़ा हो गया उसे पता ही नहीं चला कि इस सामग्री का वह क्या करेगा और यह वस्तुए किस काम आएगी ? अंत में इसका मालिक कोन होगा ? मरते समय यह धन -संपत्ति स्वयं दुःख देगी,इस धन संपत्ति के लोभ के कारण ही बेटा और बहु से डरना पड़ता है। अंतिम समय उसका कष्ट पीड़ा में व्यतीत होता है। मन में अशांति,हलचल आदि कब होते है ? जब धन -संपत्ति,स्त्री -पुत्र आदि नाशवान चीजो का सहारा लेते है ये सब चीजे आने -जाने वाली है। इनसे जब तक मोह,ममता रहेगी,life में सुख -दुःख लगा रहेगा हमे कभी आनंद की अनुभूति नहीं होगी कभी मन शांत नहीं होगा। ये सब चीजे अपना कर्त्तव्य समझ कर करने की है, न कि उनसे ममता मोह में फसना है।
मन की प्रसन्ता कैसे प्राप्त करे
सांसारिक वस्तु ,सगे सम्बन्धी अन्य व्यक्ति,अनुकूल -प्रतिकूल परिस्थिति,समय,घटना आदि को लेकर मन में राग -द्वेष पैदा न होने दे।
मन को सदा क्षमा, दया उदारता आदि भावो से परिपूर्ण रखे।
अपने स्वार्थ और अभिमान को लेकर किसी से पक्षपात न करे।
मन में सदा सबके हित का भाव रखे।
सांसारिक कोई भी कार्य कर रहे हो मन में प्रत्येक क्षण परमात्मा का स्मरण करते रहे। उनके किसी भी नाम का जप करते रहे।
ह्रदय में हिंसा,क्रोध ,क्रूरता आदि भावो के न रहने से,कोई हमारे साथ कैसा भी व्यवहार करे,हमारे अंदर राग -द्वेष पैदा न होना।
प्रत्येक परिस्थिति में सिर्फ परमात्मा का सहारा होना ,उसका ही चिंतन करना, कोई भी कार्य उसका समझ कर करना,जो कुछ भी हमारे पास है वह सब उसका ही समझना।
अपने को सदा प्राणी मात्र का सेवक माने।
मन प्रसन्न रहता है तो आनंद की अनुभूति अपने आप होने लगती। bed sources का स्थान good sources ले लेता है और life colourful हो जाती है।
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हमारी life है तो colourfull मगर उसको बना देते है black & white,हमेशा उन चीजों में सुख ढूढ़ने का प्रयास करते है जिसमे सुख है नही,यह मानव शरीर परमत्मा की कृपा से मिलता है तो आनन्द भी उसमेँ से हीं मिलेगा मगर हम आनन्द खोजने का प्रयास करते है सांसारिक वस्तुओ मे जिनमे आनन्द नहीं,है। कुछ क्षणो का सुख तो मिलता है मगर वह भी बाद मे दुख का कारण बनता है जबकि सब जानते है जो चीज जहाँ से आती है उसको वही जाना पड़ता है आनन्द भी उसको वही से प्राप्त होता है जितना हम इस संसार के पीछे भागते है हम परमत्मा से दुर होते चले जाते है! actual मे हमसे एक गलती होतीं है !
मै सदा जीता रहूँ कभी मरुँ नहीं,मुझसे समझदार कोइ नही,मै ज्ञानी हुँ मै सदा सूखी रहूँ !
सांसारिक भोग और संग्रह की कामना ,दूसरी होती है पारमार्थिक यानी अपने कल्याण की कामना,
सांसारिक भोग और संग्रह क़ी कामना परधर्म है,यह जो नष्ट होने वाला है, शरीर मन बुद्धि आदि इसको संतुष्ट करने के लिये जो कामना करते है वह परधर्म है क्योकि कितनी भी धन सम्पत्ति ऐशो-आराम की वस्तुए हमारे पास इकट्ठी हो जाय, हमारा लोभ कभी कम नही होता निरन्तर बढ़ता चला जाता है हमे कभी संतुष्टि नहीं मिलती, कभी नुकसान हो जाएं तो दुख होता है!
एक सन्त अपने शिष्य के घर गए वहा देखा सब उदास थे उनका शिष्य किसी काम से घर से बहार गया उनसे रहा नही गया उन्होने शिष्य की पत्नि से पुछा -क्या बात सब परेशान है !
पत्नि ने जवाब दिया -इन्हे व्यापार में घाटा हो गया इसलीये थोड़े परेशान है
संत ने पूछा -क्या ज्यादा घाटा हो गया
पत्नि ने उत्तर दिया -नुकसान भी नहीं हुआ और हो भी गया
मै कुछ समझा नहीं '-
गुरूजी बात दरअसल यह है इन्हे एक जगह से दस लाख का नफा होना था मगर वहा से इन्हे पांच लाख का ही हुआ,यह पांच लाख का नुकसान मान रहे है. इसलिए दुखी है
जितना हम संसार से अपना सम्बन्ध जोड़ेगे, धन सम्पत्ति को अपना मानेगे उतना ही सुख और दुख के भंवर मे फंसे रहेंगे उसे कितनी भी धन -संपत्ति मिल जाय कभी संतुष्ट नहीं होता ,उसका लोभ बढ़ता ही चला जाता है हमे लगता है जितना हमारे पास धन -समपत्ति ज्यादा होगा उतने हम सुखी होंगे यह हमारा अज्ञान औऱ दुर्भाग्य है जैसे कोई शराबी नशे मे बेहोश होकर गँदी नाली मे पड़ा है और कुत्ते उसके ऊपर मूत्र त्याग करके जा रहे रहे है,फिर भी वह अपने को सुखी मानता है। सांसारिक धन सम्पत्ति से अपने को सुखी मानने वाले मनुष्य का सुख समुद्र से उठने वाली लहरो के समान है। यह केवल उसका अज्ञान है। वे विनाशकारी एवं पतन की ओर ले जाने वाले क्षणिक सुख को ही असली सुख मान लेते है जबकि सांसारिक वस्तुओं,धन -संपत्ति आदि मे सुख है ही नहीं,क्योकि इस सँसार मे जो भी वस्तुए है सब एक न दिन नष्ट होने वाली है उसका नाश निश्चित है। यहा तक की यह हमारा शरीर भी एक न एक दिन नष्ट होना है जिसे हम अपना मानते है। जितना भी हम सांसारिक वस्तुओ की कामना करेँगे उतना लोभ भी बढ़ता चला जाता है हमे कभी संतुष्टि नही मिल पाती,कामनाए कभी किसी की पूरी नही हुयी,कामनाए उस अग्नि के समान है जितना घी डालोगे उतना ही भड़केगी,हमारे दुःखो का मुल काऱण हीं हमारी असीमित कामनाये है जब तक हृदय मे इक्छाये है आनन्द की अनुभूति नहीं हो सकती। कामनाये ही हमें उच्च विचारो से गर्त मे ले जाती है जिसके विचार अच्छे नही वह कभी आनन्द को महसूस नहीं कर सकते, जिसके विचार उच्च है वह कभी दुखी नहीं रह सकता,उसके ह्रदय मे कामना तो होती है मगर वह सांसारिक भोग और संग्रह की नहीं होती,परमात्मा से मिलन की होती है परम आनंद की होती है एक बार आनंद की अनुभूति हो जाय फिर इतना ज्ञान हो जाता है कि सांसारिक कामनाओ में सुख है ही नही,
प्रत्येक मनुष्य में two sources होती है good sources and bed sources,सांसारिक भोग पदार्थ व संग्रह की कामना ही सम्पूर्ण पापो का कारण है उस कामना के बढ़ जाने से ही हमारे अंदर bed sources बढ़ते चले जाते है। जैसे धन की कामना अधिक बढ़ने से झूठ कपट,छल, बेईमानी आदि बढ़ जाते है वह यह सोचता रहता है अधिक से अधिक धन कैसे मिले-उसका लोभ बढ़ता ही चला जाता है। फिर वह अनुचित तरीके से धन अर्जित करने की कामना करता है। इससे उसका लोभ ओर बढ़ जाता है,वह धन के लिए अपने सगे- सम्बंधिओ,दोस्तों को भी धोखा दे देता है यहा तक की वह हत्या करने में भी नहीं हिचकिचाता। इस प्रकार उसमे क्रूरता बढ़ती चली जाती है। उसमे लोभ के साथ-साथ अभिमान भी आ जाता है कि हमने अपने प्रयास से,बुद्धिमानी से,होशियारी से ,चालाकी से इतना धन -संपत्ति मान -सम्मान प्राप्त किया है। इतना और प्राप्त कर लेंगे। जैसे -जैसे लोभ बढ़ता चला जाता है उसकी कामनाये भी बढ़ती चली जाती है। उसका चिंतन भी बढ़ता चला जाता है-वह खाते -पीते,भोजन करते हुए,पूजा -पाठ.भजन -जप करते हुए भी धन कैसे बढ़े चिंतन करता है इतनी संपत्ति और हो जाय इतना धन और बढ़ जाये तो अच्छा रहेगा।मेरा और मेरे बच्चो का भविष्य सुखी हो जायेगा।
जब अपने और अपने परिवार बारे सोचता है तब वह सांसारिक वस्तुओ की कामना करने लगता है अमुक चीजे हमारे पास हो तो हम सुख से रहेंगे एक के बाद एक वह वस्तुओ का संग्रह करता चला जाता है ऐसी कामना करते -करते वह कब बूढ़ा हो गया उसे पता ही नहीं चला कि इस सामग्री का वह क्या करेगा और यह वस्तुए किस काम आएगी ? अंत में इसका मालिक कोन होगा ? मरते समय यह धन -संपत्ति स्वयं दुःख देगी,इस धन संपत्ति के लोभ के कारण ही बेटा और बहु से डरना पड़ता है। अंतिम समय उसका कष्ट पीड़ा में व्यतीत होता है। मन में अशांति,हलचल आदि कब होते है ? जब धन -संपत्ति,स्त्री -पुत्र आदि नाशवान चीजो का सहारा लेते है ये सब चीजे आने -जाने वाली है। इनसे जब तक मोह,ममता रहेगी,life में सुख -दुःख लगा रहेगा हमे कभी आनंद की अनुभूति नहीं होगी कभी मन शांत नहीं होगा। ये सब चीजे अपना कर्त्तव्य समझ कर करने की है, न कि उनसे ममता मोह में फसना है।
मन की प्रसन्ता कैसे प्राप्त करे
सांसारिक वस्तु ,सगे सम्बन्धी अन्य व्यक्ति,अनुकूल -प्रतिकूल परिस्थिति,समय,घटना आदि को लेकर मन में राग -द्वेष पैदा न होने दे।
मन को सदा क्षमा, दया उदारता आदि भावो से परिपूर्ण रखे।
अपने स्वार्थ और अभिमान को लेकर किसी से पक्षपात न करे।
मन में सदा सबके हित का भाव रखे।
सांसारिक कोई भी कार्य कर रहे हो मन में प्रत्येक क्षण परमात्मा का स्मरण करते रहे। उनके किसी भी नाम का जप करते रहे।
ह्रदय में हिंसा,क्रोध ,क्रूरता आदि भावो के न रहने से,कोई हमारे साथ कैसा भी व्यवहार करे,हमारे अंदर राग -द्वेष पैदा न होना।
प्रत्येक परिस्थिति में सिर्फ परमात्मा का सहारा होना ,उसका ही चिंतन करना, कोई भी कार्य उसका समझ कर करना,जो कुछ भी हमारे पास है वह सब उसका ही समझना।
अपने को सदा प्राणी मात्र का सेवक माने।
मन प्रसन्न रहता है तो आनंद की अनुभूति अपने आप होने लगती। bed sources का स्थान good sources ले लेता है और life colourful हो जाती है।