ध्यान के दौरान खुजली व दर्द जैसी बाधा डालने वाली भावनाओं से कैसे निबटा जाए ?
ध्यान में, ज्यादातर शारीरिक दर्द बाधा डालते हैं। क्या आप बताएंगे कि जब दर्द हो रहा है तब उस पर ध्यान कैसे किया जाए?
ओशो - यह वही है जिसकी मैं बात कर रहा था। यदि तुम दर्द महसूस करते हो तो इसके बारे में सतर्क रहो, कुछ करो नहीं। ध्यान बहुत बड़ी तलवार है। तुम सिर्फ दर्द पर ध्यान दो।
उदाहरण के लिए, तुम ध्यान के आखिरी चरण में शांति से बैठे हो, बिना हिले-डुले, और तुम बहुत सी परेशानियां शरीर में महसूस करोगे। तुम महसूस करोगे कि पैर मरते जा रहे हैं, सिर में भी खुजली हो रही है, तुम महसूस करोगे कि शरीर पर चींटियां रेंग रही हैं और तुमने बहुत बार देखा – वहां चींटियां नहीं हैं। रेंगना अन्दर महसूस हो रहा है, बाहर नहीं। तुम क्या करोगे? तुम महसूस करते हो पैर मरने जा रहे हैं – इस पर ध्यान करो, इसको सिर्फ सम्पूर्ण ध्यान दो। खुजली महसूस करो – खुजलाना मत, क्योंकि वह मदद नहीं करेगा। सिर्फ ध्यान दो। अपनी आंखें भी मत खोलो। सिर्फ अंदर से ध्यान दो और सिर्फ इंतजार करो और देखो, और कुछ क्षणों में खुजली गायब हो जाएगी। चाहे कुछ भी हो – यदि तुम दर्द भी महसूस करो, तेज दर्द पेट में या सिर में। यह संभव है, क्योंकि ध्यान में सारे शरीर में बदलाव आते हैं। ध्यान शरीर में रसायनिक बदलाव लाता है। नई चीजें होना शुरू हो जाती हैं; शरीर में एक अव्यवस्था होती है। कई बार पेट प्रभावित होता है क्योंकि पेट में तुमने बहुत सी भावनाएं दमित की हुई हैं, और उनमें उथल-पुथल मचती है। कई बार तुम्हें उल्टी आने को होगी, जी मिचलाएगा। कई बार तुम्हें तेज सिर दर्द महसूस होगा क्योंकि ध्यान तुम्हारे दिमाग का अन्दरूनी ढांचा बदल रहा होता है। ध्यान में तुम वास्तव में एक अव्यवस्था से गुजरते हो। जल्द ही चीजें व्यवस्थित हो जायेंगी। लेकिन, कुछ समय के लिए, हर चीज अव्यवस्थित होगी।
तो तुम्हें क्या करना है? सरलता से सिर में हो रहे दर्द को देखो; इसे देखते रहो। दृष्टा बने रहो। भूल जाओ कि तुम कर्ता हो, और धीरे-धीरे हर चीज शांत हो जाएगी और इतनी खूबसूरती से और इतनी सौम्यतापूर्वक कि तुम इसका विश्वास नहीं कर सकोगे यदि तुमने इसे अनुभव नहीं किया हो। और इतना ही नहीं कि सिर दर्द गायब हो जाएगा: वह ऊर्जा जिसने दर्द पैदा किया था उसे यदि सिर्फ देखा गया था, दर्द गायब हो जाएगा और वही ऊर्जा आनंद बन जाएगी। ऊर्जा वही है। दर्द और आनंद उसी ऊर्जा के दो आयाम हैं।
यदि तुम खामोशी से बैठे रहते हो और व्यवधानों पर ध्यान देते हो, सभी व्यवधान गायब हो जाएंगे। और जब सभी व्यवधान गायब हो जाएंगे, तुम्हें अचानक पता चलेगा कि सारा शरीर गायब हो गया है।
वास्तव में, क्या हो रहा था? ये चीजें क्यों हो रही थी? और जब तुम ध्यान नहीं करते हो तब वे नहीं होतीं। तुम सारे दिन मौजूद हो और हाथ कभी खुजली नहीं करते, सिर में दर्द नहीं होता और पेट भी बिल्कुल सही है और पैर भी सही हैं। सभी चीजे सही हैं। वास्तव में क्या हो रहा है? ये चीजें ध्यान के दौरान अचानक क्यों शुरु हो जाती हैं? शरीर लंबे समय तक प्रभुत्व में रहा है, और ध्यान में तुम शरीर को उसके प्रभुत्व के बाहर फेंक रहे हो। तुम इसे अपदस्थ कर रहे हो। यह चिपका रहता है; यह हर संभव तरीके से प्रभुत्व में रहने की कोशिश करता है। यह तुम्हें हटाने के लिए बहुत सी चीजे पैदा करेगा जिससे कि ध्यान खत्म हो जाये; तुम संयम खो देते हो और शरीर प्रभुत्व मंा आ जाता है। अब तक, शरीर प्रभुत्व में रहा है और तुम गुलाम रहे हो। ध्यान के माध्यम से, तुम सभी चीजें बदल रहे हो; यह एक महान क्रांति है। और, वास्तव में, कोई भी सम्राट ताकत नहीं छोड़ना चाहता।
शरीर राजनैतिक दांव-पेंच करता है – इसलिए यह हो रहा है। जब वह काल्पनिक दर्द पैदा करता है, तो खुजली होती है, चींटी चल रही होती हैं, शरीर तुम्हें भटकाने की कोशिश करता है। और यह स्वाभाविक है, क्योंकि शरीर लंबे समय से शासक रहा है, बहुत से जन्मों से यह सम्राट रहा है और तुम गुलाम। अब तुम हर चीज को पूरा बदल रहे हो। तुम अपनी सत्ता पुन: पाना चाह रहे हो, और यह स्वाभाविक है कि शरीर तुम्हें भटकाने की जो भी कोशिश कर सकता है करेगा। यदि तुम विचलित हो जाते हो, तुम खो जाओगे। साधारणतः, लोग इन चीजों को दबा देते हैं। वे मंत्र का उच्चारण शुरू देंगे; वे शरीर को नहीं देखेंगे।
मैं तुम्हें किसी तरह का दमन नहीं सिखा रहा हूं। मैं सिर्फ होश सिखाता हूं। सिर्फ देखो, ध्यान दो, और क्योंकि यह काल्पनिक है, यह तुरंत गायब हो जाएगा। जब सभी दर्द और खुजली और चीटियां गायब हो जाएंगी और शरीर गुलाम की तरह सही जगह पर स्थिर हो जाएगा, अचानक बहुत-सा आनंद उत्पन्न होता है तुम उसे संजो नहीं सकते। अचानक इतना उत्सव पैदा होता है कि तुम प्रकट नहीं कर सकते; तुम्हारे भीतर से एक ऐसी शांति छलकती है जो समझ से परे है, एक आनंद जो कि इस संसार का नही है।
ओशो, योग: दी मास्टरी बीओडं माइंड प्रवचन #2 – मैं केवल होश सिखाता हूं
Sunday, 22 November 2015
दर्द में कैसे करे ध्यान
Sunday, 8 November 2015
the value of life (story of bhagwan budh)in hindi
एक आदमी ने भगवान बुद्ध से पुछा : जीवन का मूल्य क्या है?
बुद्ध ने उसे एक Stone दिया
और कहा : जा और इस stone का
मूल्य पता करके आ , लेकिन ध्यान
रखना stone को बेचना नही है I
और कहा : जा और इस stone का
मूल्य पता करके आ , लेकिन ध्यान
रखना stone को बेचना नही है I
वह आदमी stone को बाजार मे एक संतरे वाले के पास लेकर गया और बोला : इसकी कीमत क्या है?
संतरे वाला चमकीले stone को देख
कर बोला, "12 संतरे लेजा और इसे
मुझे दे जा"
कर बोला, "12 संतरे लेजा और इसे
मुझे दे जा"
आगे एक सब्जी वाले ने उस चमकीले stone को देखा और कहा
"एक बोरी आलू ले जा और
इस stone को मेरे पास छोड़ जा"
"एक बोरी आलू ले जा और
इस stone को मेरे पास छोड़ जा"
आगे एक सोना बेचने वाले के
पास गया उसे stone दिखाया सुनार
उस चमकीले stone को देखकर बोला, "50 लाख मे बेच दे" l
पास गया उसे stone दिखाया सुनार
उस चमकीले stone को देखकर बोला, "50 लाख मे बेच दे" l
उसने मना कर दिया तो सुनार बोला "2 करोड़ मे दे दे या बता इसकी कीमत जो माँगेगा वह दूँगा तुझे..
उस आदमी ने सुनार से कहा मेरे गुरू
ने इसे बेचने से मना किया है l
ने इसे बेचने से मना किया है l
आगे हीरे बेचने वाले एक जौहरी के पास गया उसे stone दिखाया l
जौहरी ने जब उस बेसकीमती रुबी को देखा , तो पहले उसने रुबी के पास एक लाल कपडा बिछाया फिर उस बेसकीमती रुबी की परिक्रमा लगाई माथा टेका l
फिर जौहरी बोला , "कहा से लाया है ये बेसकीमती रुबी? सारी कायनात , सारी दुनिया को बेचकर भी इसकी कीमत नही लगाई जा सकती
ये तो बेसकीमती है l"
ये तो बेसकीमती है l"
वह आदमी हैरान परेशान होकर सीधे बुद्ध के पास आया l
अपनी आप बिती बताई और बोला
"अब बताओ भगवान ,
मानवीय जीवन का मूल्य क्या है?
"अब बताओ भगवान ,
मानवीय जीवन का मूल्य क्या है?
बुद्ध बोले :
संतरे वाले को दिखाया उसने इसकी कीमत "12 संतरे" की बताई l
सब्जी वाले के पास गया उसने
इसकी कीमत "1 बोरी आलू" बताई l
इसकी कीमत "1 बोरी आलू" बताई l
आगे सुनार ने "2 करोड़" बताई l
और
जौहरी ने इसे "बेसकीमती" बताया l
और
जौहरी ने इसे "बेसकीमती" बताया l
अब ऐसा ही मानवीय मूल्य का भी है l
तू बेशक हीरा है..!!
लेकिन,
सामने वाला तेरी कीमत,
अपनी औकात - अपनी जानकारी - अपनी हैसियत से लगाएगा।
लेकिन,
सामने वाला तेरी कीमत,
अपनी औकात - अपनी जानकारी - अपनी हैसियत से लगाएगा।
घबराओ मत दुनिया में..
तुझे पहचानने वाले भी मिल जायेगे।
तुझे पहचानने वाले भी मिल जायेगे।
love is god- life hope & truth (osho)
प्रेममय हो
नहीं कहता तुमसे पत्नी को छोडो, बल्कि कहता हूं इतना प्रेम करो कि पत्नी में परमात्मा दिखाई पड़ने लगे। नहीं कहता पति को छोड़ो, इतना प्रेम करो कि पति में परमात्मा दिखाई पड़ने लगे। प्रेम जैसे गहरा होता है, वहीं परमात्मा की झलक आनी शुरू हो जाती है। है ही नहीं परमात्मा कुछ और सिवाय प्रेम की गहरी झलक के, प्रेम की गहरी लपट के। बच्चों को छोड़ कर मत भागो! उनकी आखों में झांको। वहां अभी परमात्मा ज्यादा ताजा है। अभी वहां धूल नहीं जमी। अभी बच्चे सूख नहीं गए हैं; अभी रसपूर्ण हैं। उनसे कुछ सीखो!……..
अच्छी दुनिया होगी तो हम बच्चे को सिखाएंगे कम, उससे सीखेंगे ज्यादा। और जो सिखाएंगे, वे उसे सजग करके सिखाएंगे कि ये दो कौड़ी की बातें हैं कामचलाऊ हैं, उपयोगी हैं तेरी जिंदगी में, रोटी रोजी कमाने में सहयोगी होंगी, इनसे आजीविका मिल जाएगी, इनसे जीवन नहीं मिलता। और हम बच्चे से सीखेंगे जीवन। उसकी आखों में झलकता हुआ प्रेम, आश्चर्यचकित विमुग्ध भाव। बच्चे की अवाक हो जाने की क्षमता। छोटी—छोटी चीजों से ध्यानमग्न हो जाने की कला। एक तितली के पीछे ही दौड़ पडा तो सारा जगत भूल जाता है, ऐसा उसका चित्त एकाग्र हो जाता है। एक फूल को ही देखता है तो ठिठका रह जाता है। भरोसा नहीं आता। इतना सौदर्य भी इस जगत में हो सकता है! इसीलिए तो बच्चे पूछे जाते हैं, प्रश्नों पर प्रश्न पूछे जाते हैं; थका देंगे तुम्हें, इतने प्रश्न पूछते हैं। उनके प्रश्नों का कोई अंत नहीं। क्योंकि उनकी जिज्ञासा का कोई अंत नहीं। उनकी मुमुक्षा का कोई अंत नहीं। जानने की कैसी अभीप्सा है।
अगर हम में समझ हो, तो हम बच्चों से उनकी सरलता सीखेंगे, उनका प्रेम सीखेंगे, उनका निर्दोष भाव सीखेंगे, उनकी आश्चर्यविमुग्ध होने की क्षमता और पात्रता सीखेगे। तब शायद तुम्हारा हृदय भरने लगे एक नये रस से। तुम भी शायद नाच सको छोटे बच्चों के साथ। तुम भी शायद खेल सको छोटे बच्चों की भांति। तुम्हारे जीवन में भी एक लीला प्रकट हो। परमेश्वर लीलामय है, तुम भी थोड़े लीलामय हो जाओ तो उसकी भाषा समझ में आए, उससे सेतु बने, उससे थोड़ा संबंध जुड़े, उससे थोडी गांठ बंधे।
इसलिए कहता हूं रसमय होओ। रसमय होओ अर्थात प्रेममय होओ, प्रीतिमय होओ। इसलिए कहता हूं : रसमय होओ। चांद तारे नाच रहे हैं, पशु पक्षी नाच रहे हैं, पृथ्वी, ग्रह उपग्रह नाच रहे हैं, सारा अस्तित्व नाच रहा है। एक तुम क्यों खडे हो उदास? क्यों अलग थलग? क्यों अपने को अजनबी बना रखा है? क्यों तोड़ लिया है अपने को इस विराट अस्तित्व से? किस अहंकार में अकड़े हो? कैसी जड़ता? झुको! अर्पित होओ! अस्तित्व से गलबहियां लो! अस्तित्व को आलिंगन करो! नाचो इसके साथ।
सपना यह संसार
ओशो
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