शांति सत्कर्मो से मिलती है
सुविख्यात दार्शनिक सुकरात उपदेश दिया करते थे कि मानव को जीवन के हर विषय का अनुभव होना चाहिए। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए। निराशा को कभी पास नहीं फटकने देना चाहिए। अपना कुछ समय तथा धन दीन -दुःखियों की सहायता में अवश्य लगाना चाहिए।
एक दिन उनका एक शिष्य उनके पास आया उसने कहा -'गुरुदेव मै वर्षो से आपका सत्संग कर रहा हूँ। आपके असंख्य उपदेश मैंने सुने,फिर भी मेरा मन अशांत रहता है मै शांति कैसे प्राप्त करूँ। कोई उपाय बताइये।
सुकरात ने पूछा -'क्या तुम जीवन में आने वाले कष्टो का सामना करने का तरीका जान चुके हो ?'
शिष्य ने उत्तर दिया -'ऐसा नहीं हो पाया,मैंने आनंद का जीवन जिया ही नहीं। मै तो सांसारिक साधनो को अपने से दूर रखता आया हूँ। '
सुकरात ने कहा -'जिसने मानव जीवन पाकर भी कर्म नहीं किया। परिवार तथा समाज के प्रति अपना कर्त्तव्य पालन नहीं किया,उसे इस जीवन में तो क्या मृत्यु के बाद भी शांति नहीं मिल सकती। मनुष्य के सत्कर्म और उसका कर्तव्यपालन ही उसके मन को संतुष्टि प्रदान करते है। अतः शांति -शांति की सनक से दूर रहकर कर्म करते रहो। स्वतः शांति मिल जायगी।
सुविख्यात दार्शनिक सुकरात उपदेश दिया करते थे कि मानव को जीवन के हर विषय का अनुभव होना चाहिए। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए। निराशा को कभी पास नहीं फटकने देना चाहिए। अपना कुछ समय तथा धन दीन -दुःखियों की सहायता में अवश्य लगाना चाहिए।
एक दिन उनका एक शिष्य उनके पास आया उसने कहा -'गुरुदेव मै वर्षो से आपका सत्संग कर रहा हूँ। आपके असंख्य उपदेश मैंने सुने,फिर भी मेरा मन अशांत रहता है मै शांति कैसे प्राप्त करूँ। कोई उपाय बताइये।
सुकरात ने पूछा -'क्या तुम जीवन में आने वाले कष्टो का सामना करने का तरीका जान चुके हो ?'
शिष्य ने उत्तर दिया -'ऐसा नहीं हो पाया,मैंने आनंद का जीवन जिया ही नहीं। मै तो सांसारिक साधनो को अपने से दूर रखता आया हूँ। '
सुकरात ने कहा -'जिसने मानव जीवन पाकर भी कर्म नहीं किया। परिवार तथा समाज के प्रति अपना कर्त्तव्य पालन नहीं किया,उसे इस जीवन में तो क्या मृत्यु के बाद भी शांति नहीं मिल सकती। मनुष्य के सत्कर्म और उसका कर्तव्यपालन ही उसके मन को संतुष्टि प्रदान करते है। अतः शांति -शांति की सनक से दूर रहकर कर्म करते रहो। स्वतः शांति मिल जायगी।